कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

कुमाउनी कवि पूरनचंद्र कांडपाल की कुमाउनी कविताएँ

पूरनचंद्र कांडपाल की कुमाउनी कविताएँ

1. इज है ठुल को ? 

न सरग न पताव
न तीरथ न धाम,
इज है ठुल क्वे
और न्हैति मुकाम।

आपूं स्येतीं गिल म
हमूकैं स्येवैं वबाण,
हमार ऐरामा लिजी
वीक ऐराम हराण।

इज क कर्ज है दुनिय में
क्वे उऋण नि है सकन,
आंचव में पीई दूद क
क्वे मोल नि चुकै सकन।

दुख सुख में हरबखत
गिचम इज क नाम,
‘ओ.. इजा..’ कैते ही
मिलि जां सुख ऐराम। 

2. जिंदगीक हाल

जिन्दगी उकाव 
जिन्दगी होराव,
कभैं अन्यार औंछ येमें 
कभैं छ उज्याव। 

सुख दुखा बादल येमें 
आते जाते रौनी,
सिद बाट कम येमें
टयाण ज्यादै औंनी। 

कभैं यां तुस्यार जौ लागूं
कभैं तात मुछ्याव।
जिन्दगी… 

कैं खुशी का नौव येमें
कैं दुख कि गाड़,
कैं छ गुलाब- हांजरी
कैं कना कि बाड़।
कैं सुखी गध्यार येमें 

कैं पाणी का पन्याव।
जिन्दगी… 
जिन्दगी क म्यल मजी
मैंस कसा कसा,
गिरगिट जौस रंग देखूनी
आँसु मगर जसा।

कैं भुकणी कुकुर येमें
कैं घुरघुरू बिराउ।
जिन्दगी…

जिन्दगी में औनै रनी 
रस कसा कसा,
कैं कड़ुवा नीम करयाला
कैं मिठ बत्यासा।
कैं खट्ट अंगूर येमें 
कैं मिठ हिसाउ।
जिन्दगी…

कैहुणी नागफणी येमें
कैहुणी क्वैराव,
कैहुणी लंगण छीं यां 
कैहुणी रैंसाव। 
कैहुणी यौ मिठी शलगम
कैं क्वकैल पिनाउ।
जिन्दगी…

कैहुणी किरमाडू छ य
कैहुणी कांफोव,
कैहुणी बगिच कैहूणि
घनघोर जंगोव।
कैहुणी धान कि बालड़ि
कैहुणी पराव।
जिन्दगी…

कैहुणी छ झोल येमें
कैहुणी गुलाल,
क्वे उडूँ रौ मुफत की
कैक हूं रौ हलाल ।
क्वे मानछ धान ख़्वारम
क्वे लगूं दन्याव ।
जिन्दगी…

उकाव -होराव मजी
सब छीं रिटनै,
कैं दगड़ी मिलि जानी
हिटनै- हिटनै।
जै पर यकीन करौ
वील करौ छलाव।
जिन्दगी… 

के तू यां लि बेर आछै
के तू यां बै लि जलै
के ट्वील यां कमा
सब यां ई छोडि जलै।   
तेरि नेकी बदी कौ
रै जालौ लिखाव।
जिंदगी…। 

3. पर्यावरण बचावो

सौवा जंगवोंल पाणी बुसै है
डाव बोट काटणियांल जंगव धुसै है। 
जंगव उजाड़ि हलीं आग लगुणियांल
जड़ि बुटि उजाड़ि हलीं जाड़ खोदणियांल। 

प्लास्टिकै थैलिक ढेर पहाड़ पुजिगो
बखत पर द्यो निहुणल पहाड़ सुकिगो। 
अनाधून ख्वैरान पहाड़क हैगो
पाणि जंगव जमीन कैं माफिया खैगो। 

चौमासाक द्योक स्वैर हरैगीं
बदोव एकबटीण है पैली खरैगीं। 
नौव धार सीरक पाणि उजड़िगो
हरैगे हरयाइ पर्यावरण बिगड़िगो।

वैज्ञानिक संसारि गर्मी बतूंरीं
अटपट बिकास कैं रातदिन घतूंरीं। 
बचौ पर्यावरण तराण लगै दियो
जता लै द्यो हूं पाणि नि बगण दियो। 
कसिके लै द्वि चार डाव बोट लगौ
पनाणक पाणिल लै उम्मीद जगौ। 
थ्वाड़ कोशिश करो हिम्मत द्यखौ
पर्यावरण बचुणियां में नाम ल्यखौ। 

4. दिया या झन दिया लिफ्ट

टैम नि रैगोय आब 
अनजान कि मदद करण,
जो देखूंरौ दया भाव 
वीक है जांरौ मरण। 

एक न्यूतम बै रात 
दस बजी औं रौछी घर,
देर है गेछी मणि तेज 
चलूं रौछी स्कूटर। 

अचानक एक च्येलि ल म्यर 
स्कूटर रोकणक लिजी हात दे,
रातक टैम स्यैणी जात देखि 
मील स्कूटर रोकि दे। 

गणगणानै कूंफैटी मीकैं 
छोड़ि दियो अघिल तक,
बस नि आइ भौत देर बटि 
चै रयूं एकटक। 

अच्याल कि दुनिय देखि 
मी पैली डर गोयूं,
वीकि डड़ाडड़ देखि 
फिर मी तरसि गोयूं। 

म्यर इशार पाते ही 
उ म्यार पिछाड़ि भैगे,
स्कूटरम भैटते ही झट
वीकि सकल बदलि गे। 

जसै मील स्कूटर अघिल बड़ा, 
कूंण लागी रुपै निकाल,
नतर मि हल्ल करनू 
मैंस आफी कराल त्यर हलाल। 

के करछी आपणी इज्जत 
बचूणक लिजी चणी रयूं
वील म्यार जेबम हात डावौ 
मी चुप पड़ी रयूंं। 

एक्कै पचासक नौट 
बचि रौछी उदिन म्यार पास
वील म्यार और जेब लै टटोईं, 
उकैं के नि मिल हैगे उदास।

थ्वाड़ देर बाद उ म्यार 
स्कूटरम बै उतरि गे
पचासक नौट ल्हिबेर 
जाते-जाते मीकैं धमकै गे। 

‘चुप रे हल्ल झन करिए, 
त्येरि सांचि क्वे निमानाल,’
मि कूल य मिकैं पकड़ि ल्या, 
सब म्यर यकीन कराल’।

जनै-जनै उ मीकैं य 
कहावत याद दिलैगे,
‘ज्वात लागा लाग, 
आज इज्जत बचिगे’। 

उदिन बटि मी 
भौत डरन है गोयूं,
लिफ्ट दिण क लिजी 
कतरां फै गोयूं। 
बचपन में पढी ‘बाबा 
भारती’ कि कहानि याद ऐगे,
जो डाकु खड़क सिंह हूं 
‘कहानि कैकं झन बतै’ कैगे। 

पर मी मदद करणी 
मनखियाँ कैं बतूंण चानू,
क्वे भल मानो या नक 
सांचि बात कै जानू। 

कैकं लै लिफ्ट 
दिण में खत्र भौत छ,
‘आ बल्दा मीकैं मार’ 
जसि अचानक मौत छ। 

तुमुकैं हिम्मत छ त लिफ्ट 
दीण क जोखिम उठौ,
नतर अणदेखी करो, 
चुपचाप आपण घर जौ। 


कवि परिचय

पूरन चंद्र कांडपाल

       वरिष्ठ साहित्यकार श्री पूरन चंद्र कांडपाल का जन्म 28 मार्च, 1948 को रानीखेत के खग्यार, पिलखोली नामक गाँव में हुआ। आपकी माताजी का नाम श्रीमती हंसी कांडपाल व पिताजी का नाम श्री बी.बी.कांडपाल था। ज्यू वाँ ग्राम-खग्यार, पिलखोली (राणिखेत) में भौ। आपने एम.ए. की परीक्षा राजनीतिशास्त्र विषय से उत्तीर्ण की और आजीविका हेतु स्वास्थ्य शिक्षक के रूप में कार्य किया। 

        पूरन चंद्र कांडपाल जी दिल्ली में रहते हुए हिंदी के साथ-साथ कुमाउनी भाषा के विकास में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। हिंदी और कुमाऊनी में इनके द्वारा लगभग 30 किताबें लिखी गई हैं। इनमें से हिंदी में 17 और कुमाउनी में 13 किताबें हैं। हिंदी में बचपन की बुनियाद, कारगिल के रणबांकुरे, स्मृति लहर, ये निराले, जागर, शराब धूम्रपान, इंडिया गेट का शहीद और कुमाउँनम में हामनखी, सांचि, छिलुक, बटौव, मुकस्यार, उज्याव, लगुल, हमरि भाषा हमरि पछ्याण किताबें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। 

        कांडपाल जी को उनकी साहित्य सेवाओं हेतु ‘आचार्य चतुर सेन सम्मान’, राष्ट्रीय सहारा का ‘प्रेरक व्यक्तित्व सम्मान’, साथी एवं उपवन पत्रिका से ‘कृति सम्मान’, हिंदी अकादमी दिल्ली सरकार का ‘बाल किशोर साहित्य सम्मान’ 2009, सर्व भाषा ट्रस्ट नई दिल्ली- ‘गिरदा साहित्य सम्मान’ 2018, गंगा मेहता स्मृति सम्मान, पहरू अल्मोड़ा 2013, ‘कलश साहित्य सम्मान’ 2014 नई दिल्ली, बहादुर सिंह बनोला स्मृति सम्मान पहरू अल्मोड़ा 2014, महाकवि ‘कन्हैयालाल डंडरियाल साहित्य सम्मान’ 2016 लोकभाषा साहित्य मंच, दिल्ली, हिमालय गौरव सम्मान 2018 आदि सम्मानों से नवाजा गया है। 

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