कविता- हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो, अज्ञानता के पर्दे पल में धो लो। हिंदी हमारी माता है, माता से बढ़कर दूजा नहीं। अपनी भाषा को अपना समझो, इससे बढ़कर कोई पूजा नहीं। हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो, अज्ञानता के पर्दे पल में धो लो। साहित्य अनौखा है
आप सभी को आंग्ल नूतन वर्ष-2020 की हार्दिक शुभकामनाएँ– नव वर्ष में कान्हा जी रहें ना किसी की पलकें प्यासी रहे ना किसी के घर में उदासी नव वर्ष में कान्हा जी, ऐसी बंशी मधुर बजाना। आतंकवाद का भय ना रहे घोटालों की जय ना रहे महंगाई का ना हो विस्तार बेईमानी का
मुसाफिर का कोई घर नहीं होता गाँव, कस्बा या कोई शहर नहीं होता आज यहाँ है तो कल वहाँ यारो मुसाफिर का कोई घर नहीं होता। उम्मीदों के चिराग जलाये, रात-दिन घूमते हैं मंजिल को याद कर पल-पल झूमते हैं। क्योंकि सपनों का कोई शिखर नहीं होता। यारो मुसाफिर का कोई घर नहीं
तुम्हारे जुल्मों की थाह नहीं तुम्हारे जुल्मों की थाह नहीं, मगर मेरे होंठों में आह नहीं। कभी दहेज के लोभ से कभी अपनी कुंठा के कोप से मिटा दी जाती है मेरे हाथों की मेंहदी कुचल दी जाती है मेरी भावनाएँ झुलसा दिए जाते हैं मेरे अरमान तुम तो जी लेते हो मगर
वीरों के गीत लिखूंगा ना सत्ता, ना सिंहासन, ना अमीरों के गीत लिखूंगा। मैं जब भी कलम चलाऊंगा, वीरों के गीत लिखूंगा।। भीषण गर्मी, जाड़े में जो, सरहद पर हैं डटे हुए। राष्ट्र हित की चाहत में जो, अपनों से हैं कटे हुए। मैं तो ऐसे बलशाली, धीरों के गीत लिखूंगा। मैं
ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है तेरी याद में निशदिन रह-रह अकुलाता है, ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है। अनगिनत ख्वाबों को संग में ले चले उड़ते उड़ते तुम इतनी दूर उड़ चले वापस आना भी चाहो तो मन जलाता है ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है। दादी मां के
मेरा गाँव पंछी गा रहे हैं शाखों पर शबनम नाच रही है पत्तों पर भंवरे मस्त हैं फूलों पर तितलियाँ झूल रही हैं झूलों पर डाकिया ले जा रहा है पत्र कच्ची पुलिया पर चलकर नदी के उस पार बारात गुजर रही है सरसों के खेतों से होकर गूंज रही है
पहाड़ की नारी पहाड़ पर पग धरते-धरते पहाड़ पर रंग भरते-भरते पहाड़-पहाड़ करते-करते पहाड़ की नारी पहाड़ पर रहते-रहते पहाड़ को सहते-सहते पहाड़-पहाड़ कहते-कहते पहाड़ की नारी पहाड़ पर नमक बोते-बोते पहाड़ पर पलक धोते-धोते पहाड़-पहाड़ ढोते-ढोते पहाड़ की नारी पहाड़ पर हंसते-रोते पहाड़ को खोते पाते पहाड़-पहाड़ होते-होते पहाड़ की नारी पहाड़ हो ही