कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

Category: डॉ. पवनेश की अन्य कविताएँ

हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो

कविता- हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो, अज्ञानता के पर्दे पल में धो लो।  हिंदी हमारी माता है, माता से बढ़कर दूजा नहीं।  अपनी भाषा को अपना समझो, इससे बढ़कर कोई पूजा नहीं।  हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो, अज्ञानता के पर्दे पल में धो लो।  साहित्य अनौखा है

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ- नव वर्ष में कान्हा जी

आप सभी को आंग्ल नूतन वर्ष-2020 की हार्दिक शुभकामनाएँ– नव वर्ष में कान्हा जी    रहें ना किसी की पलकें प्यासी रहे ना किसी के घर में उदासी नव वर्ष में कान्हा जी, ऐसी बंशी मधुर बजाना।    आतंकवाद का भय ना रहे घोटालों की जय ना रहे महंगाई का ना हो विस्तार बेईमानी का

मुसाफिर का कोई घर नहीं होता

मुसाफिर का कोई घर नहीं होता   गाँव, कस्बा या कोई शहर नहीं होता आज यहाँ है तो कल वहाँ यारो मुसाफिर का कोई घर नहीं होता।    उम्मीदों के चिराग जलाये, रात-दिन घूमते हैं मंजिल को याद कर पल-पल झूमते हैं।  क्योंकि सपनों का कोई शिखर नहीं होता।  यारो मुसाफिर का कोई घर नहीं

तुम्हारे जुल्मों की थाह नहीं

तुम्हारे जुल्मों की थाह नहीं   तुम्हारे जुल्मों की थाह नहीं, मगर मेरे होंठों में आह नहीं।    कभी दहेज के लोभ से कभी अपनी कुंठा के कोप से  मिटा दी जाती है मेरे हाथों की मेंहदी कुचल दी जाती है मेरी भावनाएँ झुलसा दिए जाते हैं मेरे अरमान तुम तो जी लेते हो मगर
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