पूरनचंद्र कांडपाल की कुमाउनी कविताएँ 1. इज है ठुल को ? न सरग न पताव न तीरथ न धाम, इज है ठुल क्वे और न्हैति मुकाम। आपूं स्येतीं गिल म हमूकैं स्येवैं वबाण, हमार ऐरामा लिजी वीक ऐराम हराण। इज क कर्ज है दुनिय में क्वे उऋण नि है सकन, आंचव में पीई दूद क
उत्तराखंड में लागू हो भू कानून- कह रहें हैं युवा कुमाउनी रचनाकार उत्तराखंड में भू-कानून यथाशीघ्र लागू किया जाना चाहिए, क्योंकि किसी भी क्षेत्र पर पहला हक वहाँ की जनता का है। भू-कानून लागू होने से ही यहाँ की जनता को उनका हक मिल पायेगा। ऐसा मानना है यहाँ के युवाओं का।
पुण्यतिथि विशेष: शेर सिंह बिष्ट ‘अनपढ़’ और उनकी चयनित कुमाउनी कविताएँ कुमाउनी कवि शेर सिंह बिष्ट ‘अनपढ़’ का जन्म 3 अक्टूबर,1933 को अल्मोड़ा बाजार से 2-3 किलोमीटर दूर माल गांव में हुआ था। आपके पिता का नाम बचे सिंह और माता का नाम लछिमी देवी था। जब शेरदा चार साल के
देव सतीकि कुमाउनी कविता १. पहाड़ै बात हरि भरि सारा म्येरि पहाड़ों की धारा दिन बानरूल रात सुवरूक उज्जाड़ा गर्मिक दिनों में पाणिक मारमारा खेत बाजि हैगीं हरि भरि सारा के कुनू ददा आपुण बाता दिन नै चैना नींद नै राता जंगोव कटिगी महल बनिगी आब नै रैगी खेत सीढ़ीदारा धोंतिले