कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

Category: डॉ. पवनेश की पहाड़ केंद्रित कविताएँ

ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है

ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है तेरी याद में निशदिन रह-रह अकुलाता है,  ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।    अनगिनत ख्वाबों को संग में ले चले उड़ते उड़ते तुम इतनी दूर उड़ चले वापस आना भी चाहो तो मन जलाता है ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।   दादी मां के

मेरा गाँव

मेरा गाँव   पंछी गा रहे हैं शाखों पर शबनम नाच रही है पत्तों पर   भंवरे मस्त हैं फूलों पर तितलियाँ झूल रही हैं झूलों पर   डाकिया ले जा रहा है पत्र कच्ची पुलिया पर चलकर नदी के उस पार   बारात गुजर रही है सरसों के खेतों से होकर गूंज रही है

पहाड़ की नारी

पहाड़ की नारी पहाड़ पर पग धरते-धरते पहाड़ पर रंग भरते-भरते पहाड़-पहाड़ करते-करते पहाड़ की नारी पहाड़ पर रहते-रहते पहाड़ को सहते-सहते पहाड़-पहाड़ कहते-कहते पहाड़ की नारी पहाड़ पर नमक बोते-बोते पहाड़ पर पलक धोते-धोते पहाड़-पहाड़ ढोते-ढोते पहाड़ की नारी पहाड़ पर हंसते-रोते पहाड़ को खोते पाते पहाड़-पहाड़ होते-होते पहाड़ की नारी पहाड़ हो ही
error: Content is protected !!