कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

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कुमाउनी कवि पूरनचंद्र कांडपाल की कुमाउनी कविताएँ

पूरनचंद्र कांडपाल की कुमाउनी कविताएँ 1. इज है ठुल को ?  न सरग न पताव न तीरथ न धाम, इज है ठुल क्वे और न्हैति मुकाम। आपूं स्येतीं गिल म हमूकैं स्येवैं वबाण, हमार ऐरामा लिजी वीक ऐराम हराण। इज क कर्ज है दुनिय में क्वे उऋण नि है सकन, आंचव में पीई दूद क

उत्तराखंड में लागू हो भू कानून- कह रहें हैं युवा रचनाकार

उत्तराखंड में लागू हो भू कानून- कह रहें हैं युवा कुमाउनी रचनाकार       उत्तराखंड में भू-कानून यथाशीघ्र लागू किया जाना चाहिए, क्योंकि किसी भी क्षेत्र पर पहला हक वहाँ की जनता का है। भू-कानून लागू होने से ही यहाँ की जनता को उनका हक मिल पायेगा। ऐसा मानना है यहाँ के युवाओं का।

गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा’ का काव्य संग्रह: जैंता एक दिन तो आलो

गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा’ का काव्य संग्रह: जैंता एक दिन तो आलो कविता संग्रह के विषय में- जैंता एक दिन तो आलो     ‘जैंता एक दिन तो आलो’ कवि गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा’ का काव्य संकलन है। इस संकलन का पहला संस्करण वर्ष 2011 में पहाड़ प्रकाशन, नैनीताल से हुआ है। यह काव्य संग्रह दो खंडों

ललित शौर्य की कुमाउनी कविताएँ

 ललित शौर्य कि कुमाउनी कविता             १. शब्द ब्रह्म हुनि मैं लड़ते रूंल आज, भोल और पोर ही जाणेक तुम गोलि चलाला मैं कलम चलूल तुम मकें मार सकछा मेर शब्दन कै नी मार सकला कभै किलैकि शब्द  ब्रह्म हुनी और यो बात ध्यान धरिया जो ब्रम्ह छू उ अमर छू….। 
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