कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

शेखर जोशी की गलता लोहा कहानी और गणनाथ कालेज के वे पुराने दिन

शेखर जोशी की गलता लोहा कहानी और गणनाथ कालेज के वे पुराने दिन

        साथियों आज हम आपको शेखर जोशी की कहानी के माध्यम से ले चलते हैं अल्मोड़ा के ताकुला ब्लॉक में स्थित गणानाथ मंदिर व गणानाथ इंटर कॉलेज की ओर… 

      साथियों, कक्षा 11 की एन सी ई आर टी की हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह- भाग ०1’ के गद्य खंड में एक पाठ है ‘गलता लोहा’। ‘गलता लोहा’ कहानी विधा की रचना है और इसके लेखक हैं कहानीकार शेखर जोशी। 

       ‘गलता लोहा’ कहानी जातिवाद पर आधारित है और इसका पूरा कथानक गणनाथ के ग्राम्य जीवन पर आधारित है। शेखर जोशी की इस कहानी का यह गणनाथ गाँव अल्मोड़ा जनपद से लगभग 45 किलोमीटर दूर स्थित है। अल्मोड़ा से ताकुला की दूरी 38 किमी० है और यहीं से उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर 7 किमी० की दूरी पर गणनाथ गाँव स्थित है।

      गणनाथ का नाम याद आते ही गलता लोहा के त्रिलोक सिंह मास्टर, मोहन, धनराम लुहार, बूढ़े वंशीधर याद आने लगते हैं। कहानी के प्रारंभ में ही वंशीधर मोहन से कहते हैं- “आज गणनाथ जाकर चंद्रदत्त जी के लिए रुद्रीपाठ करना था, अब मुश्किल ही लग रहा है। यह दो मील की सीधी चढ़ाई अब अपने बूते की नहीं।”

    वस्तुतः गणनाथ में ही भगवान शिव का मंदिर है। कहानी में वंशीधर मोहन से इसी मंदिर में जाकर रुद्रीपाठ करने की बात कह रहे हैं। 

1. गणनाथ मंदिर

        अल्मोड़ा ताकुला मार्ग पर गणनाथ गांव से दो मील की चढ़ाई पार करने के बाद गणनाथ मंदिर आता है। इसके अलावा अल्मोड़ा सोमेश्वर मार्ग पर रनमन से पैदल मार्ग द्वारा सात किलोमीटर की चढ़ाई पार करके भी गणनाथ मंदिर पहुंचा जा सकता है। गणनाथ मंदिर के लिए एक तीसरा रास्ता सोमेश्वर के नजदीक स्थित लोद नाम की जगह से भी जाता है। यह करीब दस किलोमीटर का रास्ता है और बहुत ही अधिक मुश्किल और पथरीला है। 

      समुद्रतल से 2116 मीटर की ऊंचाई पर बने गणानाथ के मंदिर को हिन्दी साहित्य में अल्मोड़ा से सम्बन्ध रखने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार मनोहर श्याम जोशी ने अपने उपन्यास ‘कसप’ में कई बार वर्णित किया है। यहाँ पर स्थापित भगवान शिव अपने चंड-मुंड गणों के स्वामी हैं। इसीलिए वे गणनाथ कहे जाते हैं। गणनाथ यानि गणों के नाथ। 

     यहाँ सघन वनों के बीच एक प्राचीन गुफा में भगवान शिव का लिंग स्थापित है। गुफा के ठीक ऊपर से बहकर आती जलधारा एक वटवृक्ष के ऊपर गिरती है जिसकी जटाओं को शिव की जटाएं कहा जाता है।इन्हीं से होकर गुजरने वाली बूँदें शिवलिंग पर टपकती रहती हैं। इस जलधारा के जल को बहुत पवित्र माना जाता है। गणानाथ में विष्णु भगवान की एक भव्य प्रतिमा भी स्थापित है जिसके बारे में जनश्रुति है कि वह पहले बैजनाथ में थी। इस मंदिर में भैरव, देवी और योगधारी की पुरानी प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। गणानाथ मंदिर में कार्तिक पूर्णिमा तथा होली के अवसरों पर मेले आयोजित होते हैं जिनमें बड़ी संख्या में लोगों की भागीदारी रहती है। 

        उत्तराखंड के इतिहास में गणानाथ के मंदिर का ऐतिहासिक महत्त्व भी है। 23 अप्रैल 1815 को अंग्रेजी सेना का सामना करता हुआ गोरखा सेनापति हस्तिदल चौतरिया यहीं मारा गया था। इसके पश्चात गोरखों ने अंग्रजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। 1815 में ही कुमाऊं के चाणक्य कहे जाने वाले हर्षदेव जोशी की मृत्यु भी गणानाथ में हुई थी, जहां उन्होंने अपना वसीयतनामा लिखा था। 

2. गणनाथ इंटर कॉलेज

      यद्यपि शेखर जोशी की गलता लोहा कहानी में गणनाथ के प्राइमरी स्कूल का चित्रण है, तथापि यहाँ के इंटर कॉलेज का इतिहास भी जानने योग्य है। गणनाथ का पुराना प्राइमरी स्कूल भी इसी इंटर कॉलेज के समीप था। 

     गणनाथ इंटर कॉलेज की स्थापना आजादी के एक साल बाद यानि 1948 ई० में हुई थी। ताकुला क्षेत्र के आसपास के इलाकों में यह सबसे पुराना स्कूल है। स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि तब इस इंटर कॉलेज में छात्र संख्या हजारों में होती थी। आठ-आठ किलोमीटर से पैदल ही विद्यार्थी यहां पढ़ने आते थे। गणनाथ ही नहीं वरना ताकुला, सुनौली, बसौली, चुराड़ी, भकूना, सारकोट, नाई, ढौल आदि तमाम गांवों के विद्यार्थी यहाँ पढ़ाई के लिए आते थे। इसीलिए उन दिनों कालेज की रौनक ही कुछ और हुआ करती थी। यहाँ राजकीय इंटर कॉलेज गणनाथ की पुरानी इमारत की तस्वीरें दी जा रही हैं-

 

 

 

       गणनाथ इंटर कॉलेज की पुरानी इमारत जर्जर हालत में पहुँच गई थी। इसीलिए बाद में इसकी नई इमारत बनाई गई। वर्तमान में गणनाथ इंटर कॉलेज में छात्र संख्या दो सौ से भी कम है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि पहले जहाँ इस इलाके का यह एकमात्र स्कूल हुआ करता था, वर्तमान में इस इलाके में 4 अन्य राजकीय इंटर कॉलेज खुल चुके हैं। ये इंटर कॉलेज हैं, रा० क० इंटर कॉलेज सारकोट, रा० इ० का० सुनौली, रा० इंटर कॉलेज भकूना, रा० इंटर कॉलेज नाई। इनके अलावा एक प्राइवेट इंटर कॉलेज श्रीराम इंटर कालेज बसौली भी यहाँ खुल चुका है। इसके अलावा एक रा० जूनियर हाईस्कूल गंगोलाकोटुली भी यहाँ मौजूद है। इसके अलावा गांवों से बढ़ता पलायन भी इसका एक प्रमुख कारण है। वर्तमान में उपयोग में लाये जा रहे इंटर कॉलेज के भवन की तस्वीरें-

   

     वर्तमान में गणनाथ इंटर कॉलेज एक आदर्श इंटर कालेज है। इसके प्र० प्रधानाचार्य श्री नीरज वर्मा हैं। इस कालेज के भूगोल प्रवक्ता आर० डी० सरोज अपने अध्यापन कौशल के लिए चर्चा में आ चुके हैं। उनकी भूगोल प्रयोगशाला ने राष्ट्रीय स्तर पर विद्यालय को पहचान दिलाई है। आपके अवलोकनार्थ कुछ तस्वीरें दी जा रहीं हैं-

    ‘गलता लोहा’ कहानी में कहानीकार ने एक नदी का भी उल्लेख किया है। संभवतया यह नदी बसौली से होकर बहने वाली बिनसर नदी ही होगी। यदि आप अल्मोड़ा भ्रमण पर आयें तो जरूर रमणीय स्थल पर बसे यहाँ के गणनाथ मंदिर के भी दर्शन करें और स्थानीय इंटर कॉलेज की सुरम्यता का भी आनंद लेना ना भूलें। 

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