कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

Category: डॉ. पवनेश की प्रेम कविताएँ

जब से तुम गई

जब से तुम गई मिर्च का तीखापन मक्खन की कोमलता शहद की मिठास नींबू की खटास चावल की प्यास मसालों की महक प्रेशर कुकर की चहक खिचड़ी के खाद्य पदार्थों-सा अपनापन सब कुछ चला गया जब से तुम गई जिंदगी बेस्वाद हो गई है।   © Dr.  Pawanesh Share this post

तकदीर

तकदीर बड़ी मशक्कत के बाद मेरे दिल की खाली जगह में तेरा यूज हो गया। पर अचानक वोल्टेज बढ़ा और हमारे प्यार का बल्ब फ्यूज हो गया।   © Dr. Pawanesh   Share this post

सोलह कलाओं वाला चांद

सोलह कलाओं वाला चांद उसने नजर झुकाई पलकें उठाई निहारती रही छत से। कुछ देर बाद भंवरे-सी गुनगुनाहट हवा में बिखर गई।   वह मुस्कुराई आगे बढ़ी कहने लगी- “बाय।” उस हाथ से जिसमें क्षमता थी कई लोगों का भाग्य बदलने की।   फिर उसी हाथ से संभाला उसने दुपट्टा और मुस्कुराती हुई उतर गई

हर प्रेम मांगता है

हर प्रेम मांगता है कांटों के घेरे जख्मों के फेरे पर्वत, सागर, तूफान लांघता है। कभी त्याग के झौंके कभी तप का आसरा कभी बलिदानी पर हृदय टांगता है। जी हां, दर्द, दुख और बिछुड़न हर प्रेम मांगता है।   © Dr. Pawanesh Share this post

एकाग्रता

एकाग्रता हवा चलती है तो हिलती है पत्ती तुम आईं तो हिली मेरी पलकें और टिक गईं तुम पर तूफान आया बारिश हुई ओले बरसे बर्फ गिरी और भी न जाने क्या-क्या हुआ लेकिन मेरी पलकें अभी भी टिकीं हैं तुम पर।   © Dr. Pawanesh Share this post

तुम्हारे प्रेम में

तुम्हारे प्रेम में समुद्र में जैसे उठती है लहर वैसे ही मेरे मन में तुम्हारे लिए उठती है चाह। पल-पल प्रतिपल तुम तक पहुंचने की इस चौराहे से निकलती हैं कई राह। तुम्हारी अनुपस्थिति में गूंजती हैं अनवरत सिसकियां अनगिनत आह।   © Dr.  Pawanesh Share this post

उसके जाने से

उसके जाने से   बारिश की लाखों बूदें उतना नहीं भिगा पाई मुझे जितना उसके नयनों से गिरती दो बूदों ने भिगाया मुझे   दुखों की मार उतना नहीं रूलाती मुझे जितना उसकी यादों ने रूलाया मुझे   वो चली गई मुझे छोड़कर उसी तरह जिस तरह चला जाता है कोई अपना पुस्तैनी मकान छोड़कर

भरी दुपहरी में मैंने इक चांद देखा

भरी दुपहरी में मैंने इक चांद देखा    अंबर देखा, बादल देखे तारों का उन्माद देखा भरी दुपहरी में मैंने इक चांद देखा।   पानी के बुलबुले-सी उसकी हंसी धीरे से मेरे कानों में धंसी कुछ ही पलों बाद मैंने अरमानों का झुंड टहलता आबाद देखा। भरी दुपहरी में मैंने इक चांद देखा।   सिक्के

मुझे वह चुलबुली लड़की याद आती है

मुझे वह चुलबुली लड़की याद आती है   मुझे स्कूल के दिनों की चौथे नंबर की बैंच पर बैठने वाली वह चुलबुली लड़की याद आती है।    उसका हंसना उसका रोना पन्ने पलटते हुए उसका मुड़-मुड़ पीछे देखना उसका हर अंदाज उसकी हर बात याद आती है मुझे वह चुलबुली लड़की याद आती है।   

तेरे प्रेम में त्रिज्या से व्यास बन गई हूँ

तेरे प्रेम में त्रिज्या से व्यास बन गई  हूँ   हरी-भरी धरती थी अब तो नीला आकाश बन गई हूँ तेरे प्रेम में ओ पगले ! त्रिज्या से मैं व्यास बन गई हूँ।   तू क्या जाने मेरे जीवनवृत्त की एकमात्र परिधि तू ही है अब बावली होकर तेरे दिल की आनी-जानी सांस बन गई
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