कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है


ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है

तेरी याद में निशदिन रह-रह अकुलाता है, 

ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है। 

 

अनगिनत ख्वाबों को संग में ले चले

उड़ते उड़ते तुम इतनी दूर उड़ चले

वापस आना भी चाहो तो मन जलाता है

ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।

 

दादी मां के किस्से तुझको पुकारते हैं

दादा के वो हाथ अब भी दुलारते हैं

देखो हमारा लाडला आज घर आता है

ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।

 

तुझको बुलाती है हीरा-मोती की जोड़ी

तुझको बुलाती है रम दा की कलिया घोड़ी

पूसी, झबरा को भी अब घर नहीं भाता है

ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।

 

तुझको बुलाते हैं गोलू , नंदा, महासू

तुझको बुलाते हैं मां के ढुलकते आंसू

बीमार पड़े अब्बा का मन ताड़ न पाता है

ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।

 

तुझको बुलाते हैं सूखे नौले-धारे

तुझको बुलाते हैं सूने आंगन सारे

खतड़ू, हरेला त्यारों का सीजन नहीं आता है

ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।

 

तुझको बुलाती है बंजर खेतों की उदासी

तुझको बुलाती है बाखलियों की खामोशी

झट्ट आ जा प्रिये रहा नहीं जाता है

ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।। 

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© Dr.  Pawanesh

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