कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

मुसाफिर का कोई घर नहीं होता

मुसाफिर का कोई घर नहीं होता

 

गाँव, कस्बा या कोई शहर नहीं होता

आज यहाँ है तो कल वहाँ

यारो मुसाफिर का कोई घर नहीं होता। 

 

उम्मीदों के चिराग जलाये, रात-दिन घूमते हैं

मंजिल को याद कर पल-पल झूमते हैं। 

क्योंकि सपनों का कोई शिखर नहीं होता। 

यारो मुसाफिर का कोई घर नहीं होता। 

 

कैसी भी हो बाधा अनवरत चलते हैं

हर जख्म को मरहम में बदलते हैं

बुलंद हौसलों को किसी का डर नहीं होता। 

यारो मुसाफिर का कोई घर नहीं होता। 

 

सच के लिए जीवन जीते हैं

जमाने के दिए कटु अनुभव पीते हैं

लाखों की हो रिश्वत, फिर भी दृढ़ता पर असर नहीं होता

यारो मुसाफिर का कोई घर नहीं होता। 

 

जिंदगी एक सराय है, कल सभी को जाना है

कुछ पल की उदासी है, कुछ पल का तराना है

रंक तो रंक है साथी, राजा भी यहाँ अमर नहीं होता

यारो मुसाफिर का कोई घर नहीं होता। 

 

© Dr. Pawanesh

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