कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

शेर सिंह बिष्ट ‘अनपढ़’ कुमाउनी कविता पुरस्कार 2022 से डॉ. देवसिंह पोखरिया होंगे सम्मानित

शेर सिंह बिष्ट ‘अनपढ़’ कुमाउनी कविता पुरस्कार 2022 से डॉ. देवसिंह पोखरिया होंगे सम्मानित

अल्मोड़ा, कुमाउनी साहित्य में इस वर्ष का शेर सिंह बिष्ट ‘अनपढ़’ कुमाउनी कविता पुरस्कार कुमाउनी कवि डॉ. देवसिंह पोखरिया को दिया जाएगा। कविता पुुुरस्कार हेतु चयनित समिति के सदस्यों द्वारा विचार-विमर्श के बाद डॉ. देवसिंह पोखरिया (पिथौरागढ़) का नाम घोषित किया गया।

       डॉ. देवसिंह पोखरिया को यह पुरस्कार ‘कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति’ कसारदेवी, अल्मोड़ा व ‘पहरू’ कुमाउनी मासिक पत्रिका द्वारा आगामी 11, 12 व 13 नवम्बर, 2022 को हल्द्वानी में आयोजित होने वाले तीन दिनी 14 वेें ‘राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन’ में दिया जाएगा।

         पुरस्कार के रूप में उन्हें पांच हजार एक सौ रू. की नकद धनराशि, अंगवस्त्र व प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जायेगा। यह जानकारी समिति सचिव व ‘पहरू’. संपादक डॉ. हयात सिंह रावत ने दी।


पुरस्कार के विषय में-

शेर सिंह बिष्ट ‘अनपढ़’ कुमाउनी कविता पुरस्कार

     कुमाउनी कवि शेर सिंह बिष्ट ‘अनपढ़’ के नाम पर स्थापित शेर सिंह बिष्ट ‘अनपढ़’ कुमाउनी कविता पुरस्कार वर्ष 2009 से प्रत्येक वर्ष कुमाउनी के एक श्रेष्ठ कवि को प्रदान किया जाता है। पुरस्कार के रूप में पांच हजार एक सौ रू० की नकद धनराशि, अंगवस्त्र व प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है। वर्ष 2009 से अब तक इस पुरस्कार से पुरस्कृत होने वाले कुमाउनी कवि निम्नलिखित हैं-

1. वर्ष- 2009 : गोपाल दत्त भट्ट
2. वर्ष- 2010 : महंत त्रिभुवन गिरि
3. वर्ष- 2011 : जगदीश जोशी
4. वर्ष- 2012 : रतन सिंह किरमोलिया
5. वर्ष- 2013 : डॉ. शेर सिंह बिष्ट
6. वर्ष- 2014 : जुगल किशोर पेटशाली
7. वर्ष- 2015 : मथुरादत्त मठपाल 
8. वर्ष- 2016 : देवकी महरा
9. वर्ष- 2017 : दामोदर जोशी ‘देवांशु’
10. वर्ष- 2018 : हीरा सिंह राणा
11. वर्ष- 2019 : मोहन चंद्र जोशी
12. वर्ष-2021 : डॉ. कीर्तिबल्लभ शक्टा
13. वर्ष-2022 : डॉ. देवसिंह पोखरिया


विजेता के विषय में-

डॉ. देवसिंह पोखरिया

     डॉ. देव सिंह पोखरिया कुमाउनी लोकसाहित्य के विशेषज्ञ के रुप में जाने हैं। डॉ. पोखरिया का जन्म 7 जुलाई, 1953 को पिथौरागढ़ जनपद के डांगटी ( अस्कोट) गाँव में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री प्रेम सिंह पोखरिया व माता का नाम श्रीमती यशोदा देवी था। आपने हिंदी, संस्कृत विषयों से एम. ए. उत्तीर्ण किया व हिंदी में कुमाऊँ विश्वविद्यालय से पीएचडी (1979) व डीलिट (1994) की उपाधियाँ हासिल कीं। आपके पीएचडी का विषय ‘कुमाऊँ के लोक छंदों का शास्रीय अध्ययन’ और डीलिट का विषय ‘छायावादी काव्य का छंदशास्त्रीय अध्ययन’ रहा है। 

        आपने कुमाऊँ विश्वविद्यालय के सोबन सिंह जीना परिसर,अल्मोड़ा में चालीस वर्षों तक प्रवक्ता, उपाचार्य, आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष आदि पदों को सुशोभित करने के साथ ही समय-समय पर परिसर में कार्यक्रम अधिकारी, प्रोक्टर, अधिष्ठाता छात्र कल्याण, परिसर संकायाध्यक्ष, निदेशक परिसर, निदेशक महादेवी वर्मा सृजनपीठ आदि प्रशासनिक पदों पर भी कार्य किया। 

      डॉ. देव सिंह पोखरिया ने लगभग 30 पुस्तकों की रचना की है, जिनमें लोकसाहित्य पर आधारित पुस्तकों की संख्या सर्वाधिक है। डॉ. पोखरिया ने न्यौली सतसई (1987), कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति (1994), कुमाउनी लोकसाहित्य तथा कुमाउनी साहित्य (1994), कुमाउनी संस्कृति (1994), कृष्ण रूक्मिणी की गाथा(1995), भीमा कठैत की गाथा (1995), गड़देवी की गाथा (1995), नंदा जागर (1995), कसक (उपन्यास, 1995), कुमाउनी लोकगीत (1996), कुमाउनी लोकगाथाएं (1996), राफ (कुमाउनी कविता संग्रह, 2000), राजुला मालूशाही (2004), उत्तराखंड की लोकगाथाएं (2005), उत्तराखंड: लोक संस्कृति और साहित्य (2009), नीलकण्ठ (कविता संग्रह, 2011), भतकौवे (कहानी संग्रह, 2014) आदि पुस्तकें लिखीं हैं। डॉ. पोखरिया को कुमाउनी साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए जाना जाता है। 

      डॉ. पोखरिया को इससे पूर्व साहित्य सेवा हेतु गंगा प्रसाद साहित्य मंच टिहरी सम्मान (1983), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार (1995), उत्तराखंड भाषा संस्थान का डॉ. गोविंद चातक सम्मान (2011), मोहन उप्रेती लोककला सम्मान (2022) आदि सम्मानों से नवाजा जा चुका है। 

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