कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

कुमाउनी- गढ़वाली लोकभाषाओं को संविधान की 8वीं अनुसूची में स्थान मिले- डॉ. रावत

कुमाउनी-गढ़वाली को संविधान की 8वीं अनुसूची में स्थान मिले- डॉ. रावत

*12 वें तीन दिवसीय राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन का अंतिम दिवस। 
*स्थान- जी० बी० पंत राजकीय संग्रहालय, अल्मोड़ा।
*आयोजक संस्था- कुमाउनी भाषा, साहित्य व संस्कृति प्रचार समिति, कसारदेवी व ‘पहरू’ मासिक पत्रिका। 

मंचासीन अतिथि

     सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा में कुमाउनी भाषा विभाग को हिंदी भाषा से पृथक एक अलग स्वतंत्र विभाग बनाने का प्रयास किया जायेगा। यह वक्तव्य अल्मोड़ा विश्वविद्यालय के वर्तमान हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो० जगत सिंह बिष्ट ने जी० बी० पंत राजकीय संग्रहालय, अल्मोड़ा में आयोजित हो रहे 12वें राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन के तीसरे दिन बतौर मुख्य अतिथि के रूप में कहीं। 

     इससे पूर्व मुख्य अतिथि की उपस्थिति में दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ किया गया। इसके पश्चात कुमाउनी कवि कंचन तिवारी ने अपने कुमाउनी सरस्वती वंदना ‘वीणावादिनी दी दिए ज्ञान’ प्रस्तुत की। 

प्रो० जगत सिंह बिष्ट का संबोधन

       कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मुख्य अतिथि प्रो० जगत सिंह बिष्ट ने कहा कि हम अल्मोड़ा विश्वविद्यालय में कुमाउनी भाषा विभाग को एक स्वतंत्र विभाग बनाने के प्रयास करेंगे और कुमाउनी साहित्य के पठन-पाठन को बढ़ावा देने पर जोर देंगे।

अपनी बात रखते प्रवीण सिंह कर्मयाल

     समिति के पूर्व अध्यक्ष प्रवीण सिंह कर्मयाल ने डॉ. हयात सिंह रावत व पहरू के योगदान पर शोध किए जाने की जरूरत बताई और कहा कि समिति के प्रयासों से कुमाउनी भाषा, साहित्य का तेजी से विकास हो रहा है। 

विचार रखते देव सिंह पिलख्वाल

      नवनिर्वाचित अध्यक्ष भू०प्र० देव सिंह पिलख्वाल ने कहा कि वे दी गई जिम्मेदारी का कर्तव्यपरायणता के साथ निर्वहन करेंगे, साथ ही उन्होंने कुमाउनी साहित्यकारों को विविध विषयों पर लेखन कार्य करने के लिए प्रेरित किया।

संचालन करते डॉ. हयात सिंह रावत

      कार्यक्रम का संचालन करते हुए पहरू संपादक व संस्था सचिव डॉ. हयात सिंह रावत ने कहा कि कुमाउनी, गढ़वाली लोकभाषाओं को संविधान की 8वीं अनुसूची में स्थान दिया जाना चाहिए। इससे भाषा व साहित्य के विकास को बल मिलेगा। 


    तृतीय दिवस के दिन कुमाउनी भाषा, साहित्य और संस्कृति प्रचार समिति, कसारदेवी संस्था की नवीन कार्यकारिणी का भी गठन किया गया। कार्यकारिणी के सर्वसम्मति से चयनित पदाधिकारी व सदस्य निम्न प्रकार हैं-

समिति के नवनिर्वाचित पदाधिकारी

1. अध्यक्ष– भू०प्र० व समाजसेवी देव सिंह पिलख्वाल
2. उपाध्यक्ष– एडवोकेट जमन सिंह बिष्ट
3. कोषाध्यक्ष– सामा० कार्यकर्ता महिपाल सिंह बिष्ट
4. सचिव– डॉ. हयात सिंह रावत
5. उपसचिव– ललित तुलेरा

सदस्य-

1. प्रवीण सिंह कर्मयाल
2. ब्रिगेडियर धीरेश जोशी
3. जगत सिंह महरा
4. डॉ. पीताम्बर अवस्थी
5. गिरीश बिष्ट ‘हंसमुख’
6. किशन सिंह मलड़ा

विशेष आमंत्रित सदस्य-

1. प्रो० देव सिंह पोखरिया
2. देवकीनंदन कांडपाल
3. श्रीमती नीलम नेगी
4. डॉ. दीपा कांडपाल
5. नीरज पंत। 


     कुमाउनी भाषा सम्मेलन में निम्नलिखित प्रस्ताव भी सर्वसम्मति से पारित किए गए-

पारित प्रस्ताव

1. कुमाउनी, गढ़वाली लोकभाषाओं को संविधान की 8वीं अनुसूची में स्थान मिले। 
2. कुमाउनी भाषा के विकास के लिए उत्तराखंड में ‘कुमाउनी भाषा अकादमी’ की स्थापना हो। 
3. उत्तराखंड में प्राइमरी से उच्च शिक्षा तक विद्यालयी पाठ्यक्रम में एक विषय के रूप में कुमाउनी भाषा की पढ़ाई हो और पाठ्यक्रम निर्माण की प्रक्रिया अविलंब शुरू की जाए। 
4. उत्तराखंड में हिंदी अकादमी व उत्तराखंड भाषा संस्थान की गतिविधियाँ शुरू की जाएं। पुस्तक प्रकाशन व लेखकों का सम्मान किया जाए। 
5. उत्तराखंड में स्थापित विविध अकादमियों में क्षेत्रीय भाषा के रचनाकारों को शामिल किया जाए। 
6. सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा में कुमाउनी भाषा विभाग की स्थापना हो और स्थाई शिक्षक नियुक्त किए जाएं। 


पुरस्कृत रचनाकार

पुरस्कृत होती डॉ. प्रीति आर्या
पुरस्कृत होती डॉ. दीपा कांडपाल

      सम्मेलन के तीसरे दिन तीन रचनाकार पुरस्कृत हुए। इस दिन डॉ. प्रीति आर्या को भारतेंदु निर्मल जोशी कुमाउनी समालोचना पुरस्कार, डॉ. पवनेश ठकुराठी को पुष्पलता जोशी कुमाउनी कहानी पुरस्कार, डॉ. दीपा कांडपाल को जमुनादेवी खनी स्मृति कुमाउनी बाल कहानी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 

पुरस्कृत होते डॉ. पवनेश

     कार्यक्रम के अंत में सचिव डॉ. हयात सिंह रावत ने सभी का आभार जताया। इस अवसर पर उदय किरौला, जगदीश चंद्र जोशी, आनंद बल्लभ जोशी, रमेश प्रकाश पर्वतीय, राजेन्द्र रावत, महेन्द्र ठकुराठी, शशि शेखर जोशी, डॉ. कपिलेश भोज, दयानंद कठैत, कैलाश चंद्र बिनवाल, माया रावत, सुरेन्द्र सिंह, मीनू जोशी, शिवदत्त पांडे, भास्कर भौंर्याल, डॉ. ललित जलाल, डी.के.फोनिया, राकेश चंद्र, विनीता जोशी, भुवन चंद्र जोशी आदि समेत कई भाषा प्रेमी मौजूद थे। 

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