कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

देव सती की कुमाउनी कविताएँ

देव सतीकि कुमाउनी कविता

        १. पहाड़ै बात

हरि भरि सारा म्येरि पहाड़ों की धारा
दिन बानरूल रात सुवरूक उज्जाड़ा
गर्मिक दिनों में पाणिक मारमारा
खेत बाजि हैगीं हरि भरि सारा
के कुनू ददा आपुण बाता
दिन नै चैना नींद नै राता
जंगोव कटिगी महल बनिगी
आब नै रैगी खेत सीढ़ीदारा
धोंतिले बनाई खेतै की बाढ़ा
सवाक पेड़ोंक है रै भरमारा
नौला धारा सब बुसिगी
बांज बुरास उतिस सब सुकिगी।।

 २. एमए-बीए सब बेकार

नानतिनों कें करैबै एमए बीए पास
आब धरल्यों तुम उपवास
पढ़ाई लिखाई कैं पढ़गो बज्जर
नौकरी ढुढनें थाकिगी बेरोजगार
वोट बैंक क भूख
मैसों कें लगै दियो डिग्रीयूक भोग
छोड़द्यों घरवार हिटों हरद्वार
लि ल्यों जोग
नौकरी मिल रई ना छौकरी
सब करै रई चम्चागिरी
पहाड़ों में बेरोजगारीक मार
सरकार नी दी सकै रई रोजगार
सरकारे है एक्कै दरकार
हमर ले द्विर्वटाक कर दयों जुगाड़
घरवाल क्यै जाणनी
उनार लिजी एमए बीए सब बेकार।

       ३. नई फैशन

चलि रौ कलयुगी दौर
कब होलि जीवनैक भौर
अंधाधुंध सब दौड़ री
नई फैशनकैं ओढ़ री
पली बटिक टाल वाल पैंट में शरम लागछी
आज टाल लगई जींस हजार में खरिदै रई
बिन फैशनै जीवन कस
अनपढ गवार मुर्ख जस
आङ त्यरछ जस लै हो
उल्ट सीध कस लै हो
बस नई फैशन के देखने रौ
चाहै है जो अंग प्रदर्शन
पर नी ओ फैशन में अड़चन
फैक हैलो लाज शरम उतारि
कर हैलि हमरि संस्कृति पर प्रहार
मर्यादा में सब भाल
घाम पाणी हाव रौल
दि भगवानुल सुन्दर रुप
किलै बणुछा इकै कुरुप।

      ४. कां बै

मैं भारतक नागरिक छु
मिकें लड्डू द्विये हाथ चैं
बिजूलि मि बचूल ना
बिल मिकें माफ चैं
पेड़ मि लगूल ना
मौसम मिकैं साफ चैं
शिकैत मि करूल ना
कारवाई जल्दी चैं
बिन लिई दिये के काम नि करूं
पर भ्रष्टाचार क अंत चैं
घरों भ्यार दलदर खैडूल
गों बाखई साफ चैं
काम करुल ना महैणम दस दिन
मजूरी दस हजार चैं
लोंन मिलो बिल्कुल सस्त
बचत पर ब्याज बढी चैं
जाति क नाम पर वोट दिबैर
अपराध मुक्त राज्य चैं
खैती बाड़ी करुल ना
प्याज रुपै किलों चैं।।

         ५. फाम

क्वै दिना खोदि मैलै बाज खेता
कस हूछी मडूवा ए जछी सेता
के भला देखिछी हरिया खेता
धानू क टुपरा ग्यू क भकारा
भल लागछी झूगंरी भाता
य जमानेकि शान छ ठूली
ए गैछ आब खराब घड़ी
पलायनैकी मार हैगै आजा
पहाड़ोंक कुड़ी बाढ़ि बाजा
फल फूलोंक पैड गई सुखी
गोरुक गौशाव सब सुन्न है गी
पहाड छोड़ सब मैंस शहर न्हैगी
पहाड़ सब सुन्न हैगी।।

              * रचनाकार परिचय*
नाम- देवेन्द्र सती (मस्त पहाड़ी)
बौज्यूक नाम – स्व.श्री चन्द्रादत सती
रचना- पत्र-पत्रिकाओं में कुमाउनी कविता प्रकाशित।
गौं- पपनैपुरी (पाखुड़ा)
डाकखाण- उप्राड़ि, राणिखेत
जिल्ल- अल्माड़, पिन- 263645
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