कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

कुमाउनी महाकाव्य: गोरिल, Kumauni Epic: Goril

कुमाउनी महाकाव्य: गोरिल, रचनाकार- त्रिभुवन गिरि
Kumauni Epic: Goril, Composer- Tribhuvan Giri

पुस्तक चर्चा के अन्तर्गत आज हम बात करेंगे, कुमाउनी महाकाव्य ‘गोरिल’ की। गोरिल महाकाव्य के रचयिता हैं- त्रिभुुवन गिरि। 

              

*गोरिल महाकाव्य के विषय में*

गोरिल महाकाव्य

      गोरिल महाकाव्य कुमाऊँ के न्याय देवता ‘गोलू देव’ पर आधारित है। इस महाकाव्य के प्रथम संस्करण का प्रकाशन 2017 में ऊं शिवम् कंप्यूटर्स, अल्मोड़ा से हुआ है। 460 पृष्ठ की इस किताब का मूल्य 251 रू. है। 

       रचनाकार ने मंगलाचरण से लेकर कैलाश गमन तक कुल 19 सर्गों में गोलू देवता के जीवन की कथा दी है। महाकाव्य में करूण रस प्रमुखता से सामने आया है। अन्य रसों में श्रृंगार, वात्सल्य और भक्ति रस प्रमुख हैं। संपूर्ण महाकाव्य छंदबद्ध और अलंकारों से सुसज्जित है। पुस्तक की भूमिका प्रो० शेर सिंह बिष्ट ने लिखी है। 

      पुस्तक से गोलू देवता के जन्म से जुड़ा प्रसंग नीचे दिया जा रहा है-

भानुमती लै बादी है छौ रे, पट्टी कालिंगा आंखन। 
कालिंगा कैं पत्त कांबै छौ, को छना वी आंख कांखन। 

ओ इजौ कैबेर जोरल, कालिंगा परचेत हैगै। 
हुणी देखो कसी हुणी हैं, ततुकै में वी भौ लै हैगै। 

भमै लै नि हुण दी भौ कैं, गोठन गोरू बकारां छिरै दे। 
हुण नि दी टिंहा चिंहा लै, फइ लपेटि सिल ल्वड़ सानी दे। ( पृष्ठ- 215 ) 

पुस्तक का नाम- गोरिल
विधा- महाकाव्य
रचनाकार- त्रिभुवन गिरि
प्रकाशक- ऊं शिवम् कंप्यूटर्स, अल्मोड़ा
पुस्तक का मूल्य- 251₹
पृष्ठ संख्या- 460

               

*रचनाकार के विषय में*

त्रिभुवन गिरि उर्फ राजेंद्र बोरा 

      28 अक्टूबर, 1946 को अल्मोड़ा जनपद के ऐंचोली गाँव में जन्मे त्रिभुवन गिरि का मूल नाम राजेंद्र बोरा है। हिंदी साहित्य से एम.ए. उत्तीर्ण बोरा जी वर्तमान में संन्यासी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। हिंदी और कुमाउनी साहित्य, हुक्का क्लब व रंगमंच को उनका विशेष योगदान रहा है। वे हिंदी और कुमाउनी दोनों भाषाओं में लिखते हैं। उनकी पहली किताब ‘बांजि कुड़िक पहरू’ नाम से 1984 में प्रकाशित हुई थी। यह एक कुमाउनी कविता संग्रह था। यह कविता संग्रह खासा चर्चित रहा। इसके पश्चात बोरा जी ने क्या पहचान प्रिया की होगी ( आंचलिक हिंदी खंडकाव्य ), भेट ( कुमाउनी काव्य संग्रह ), सुरजू कुंवर ( कुमाउनी नाटक संग्रह ), कल्याण ( कुमाउनी उपन्यास), नारद मोह ( कुमाउनी नाटक ), गोरिल (कुमाउनी महाकाव्य), महामाया जन्म ( हिंदी नाटक), भाना गंगनाथ (कुमाउनी काव्य) आदि पुस्तकें लिखीं। पर्वतीय नारी के जन-जीवन को चित्रित करने वाला ‘क्या पहचान प्रिया की होगी’ जैसा अत्यंत सरस और मार्मिक हिंदी खंडकाव्य शायद ही आज तक किसी लेखक ने लिखा हो।  

        साहित्य लेखन ही नहीं वरन् रंगमंच और क्षेत्रीय सिनेमा से भी आप लगातार जुड़े हैं। संभवतया बहुत कम लोगों को पता होगा कि कुमाउनी की पहली फिल्म ‘मेघा आ’ की कहानी व गीत भी त्रिभुवन गिरि जी ने ही लिखे हैं। बलि वेदना, शिवार्चन, आई गै बहार, पधानी लाली, आपण बिराण, अभिमान ठुल घरै चेलिक आदि फिल्मों में भी आपका योगदान रहा है। 
        भारत प्रसिद्ध ‘हुक्का क्लब’ की रामलीला का 55 वर्षों से भी अधिक समय तक आपने संपादन में योगदान दिया। रामलीला में आपने रावण, मेघनाद, दशरथ, परशुराम, अंगद, हनुमान, ताड़का आदि पात्रों का अभिनय भी किया।

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