ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है
ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है
तेरी याद में निशदिन रह-रह अकुलाता है,
ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।
अनगिनत ख्वाबों को संग में ले चले
उड़ते उड़ते तुम इतनी दूर उड़ चले
वापस आना भी चाहो तो मन जलाता है
ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।
दादी मां के किस्से तुझको पुकारते हैं
दादा के वो हाथ अब भी दुलारते हैं
देखो हमारा लाडला आज घर आता है
ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।
तुझको बुलाती है हीरा-मोती की जोड़ी
तुझको बुलाती है रम दा की कलिया घोड़ी
पूसी, झबरा को भी अब घर नहीं भाता है
ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।
तुझको बुलाते हैं गोलू , नंदा, महासू
तुझको बुलाते हैं मां के ढुलकते आंसू
बीमार पड़े अब्बा का मन ताड़ न पाता है
ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।
तुझको बुलाते हैं सूखे नौले-धारे
तुझको बुलाते हैं सूने आंगन सारे
खतड़ू, हरेला त्यारों का सीजन नहीं आता है
ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।
तुझको बुलाती है बंजर खेतों की उदासी
तुझको बुलाती है बाखलियों की खामोशी
झट्ट आ जा प्रिये रहा नहीं जाता है
ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।।
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© Dr. Pawanesh
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