पहाड़ की सौगात: तरूड़ तरूड़ एक पर्वतीय कंदमूल है, जिसे तौड़, तैड़ू आदि नामों से भी जाना जाता है। भारत में तरूड़ हिमालयी राज्यों विशेषकर उत्तराखण्ड, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, असम आदि राज्यों में समुद्र तल से 500 से 3200 मीटर तक की ऊंचाई वाले स्थानों पर पाया जाता
पिथौरागढ़ का सातूं-आठूं लोकपर्व पिथौरागढ़। सीमांत जनपद में सातूं-आठूं महोत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है। सातूं-आठूं भगवान शिव और पार्वती (गौरा- महेश्वर) को बेटी और जमाई के रूप में विवाह बंधन में बांधने का पर्व है। इस पर्व के दौरान गौरा और महेश के विवाह की रस्में निभाई जाती हैं और बेटी व
कवयित्री देवकी महरा का कुमाउनी साहित्य को योगदान कवयित्री देवकी महरा ज्यूक जनम 26 मई, 1937 को अल्मोड़ा जिला के कठौली (लमगड़ा) गाँव में हुआ। देवकी महरा हिंदी और कुमाउनी दोनों भाषाओं में लिखतीं हैं। उनकी हिंदी में प्रेमांजलि (1960), स्वाति (1980), नवजागृति (2005) तीन कविता संग्रह, अशोक वाटिका में सीता (खंडकाव्य)
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर विशेष: कुमाउनी के महावीर: डॉ० हयात सिंह रावत विगत 40 वर्षों से कुमाउनी भाषा व साहित्य के विकास हेतु संघर्ष कर रहे डा0 हयात सिंह रावत का जन्म 11 अक्टूबर, 1955 में अल्मोड़ा जिले के लमगड़ा ब्लाॅक के मल्ला सालम पट्टी के झालडुंगरा नामक गाँव में
अंतर्राष्ट्रीय महत्व का पर्व: घुघुतिया घुघुतिया उत्तराखंड का लोकप्रिय पर्व है। इस दिन आटे, दूध गुड़ अथवा चीनी आदि के मिश्रण से घुघुत नामक खाद्य पदार्थ बनाकर कौवों को खिलाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। घुघुतिया त्योहार के पहले दिन रात में घुघुत बनाये जाते हैं और दूसरे दिन
उत्तराखंड का बोधगया: काकड़ीघाट काकड़ीघाट नैनीताल जनपद की अल्मोड़ा सड़क पर स्थित वह जगह है, जहाँ पर अगस्त, 1890 में हिमालय यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद को एक पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। वर्तमान में वह पीपल का पेड़ यद्यपि अब मौजूद नहीं है, किंतु उसी स्थान पर
कविता- हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो, अज्ञानता के पर्दे पल में धो लो। हिंदी हमारी माता है, माता से बढ़कर दूजा नहीं। अपनी भाषा को अपना समझो, इससे बढ़कर कोई पूजा नहीं। हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो, अज्ञानता के पर्दे पल में धो लो। साहित्य अनौखा है
अल्मोड़ा दशहरा: रावण परिवार के भयानक पुतले अल्मोड़ा के दशहरे को विश्व पटल पर प्रतिष्ठित करने में यहाँ बनने वाले रावण परिवार के पुतलों का विशेष महत्व है। देखिए पिछले वर्ष के रावण परिवार के भयानक पुतले- Share this post
लोकपर्व: हरेला- राष्ट्रीय पर्व घोषित हो हरेेेेला समय रहते मनुज यदि अब भी, पर्यावरण हित न सोचेगा। घृणित अक्षरों से लिखा इतिहास उसको धिक-धिक कह नोचेगा।। शशांक मिश्र भारती की उपर्युक्त पंक्तियां पर्यावरण के प्रति मनुष्य को सचेत करती हैं। आधुनिक समय में पर्यावरण तेजी से बदल रहा है और पर्यावरण असंतुलन