कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

पहाड़ की सौगात: तरूड़

पहाड़ की सौगात: तरूड़

         तरूड़ एक पर्वतीय कंदमूल है, जिसे तौड़, तैड़ू आदि नामों से भी जाना जाता है। भारत में तरूड़ हिमालयी राज्यों विशेषकर उत्तराखण्ड, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, असम आदि राज्यों में समुद्र तल से 500 से 3200 मीटर तक की ऊंचाई वाले स्थानों पर पाया जाता है। तरूड़ की बेलें जंगलों में तो उगती ही हैं, साथ ही यह घरों में भी उगाया जाता है। उत्तराखंड में जंगली तरूड़ को बन तरूड़ और घरों में भी उगाये जाने वाले तरूड़ को घर तरूड़ कहते हैं। 

वानस्पतिक परिचय-

तरूड़ का वानस्पतिक नाम ‘डिस्कोरिया डेल्टोडिया’ है और इसे अंग्रेजी में ‘हिमालयन वाइल्ड यम’ नाम से जाना जाता है। वनस्पति वैज्ञानिकों के अनुसार, यह मूलतः ‘ट्रोपिकल क्षेत्र’ का पौधा है और विश्वभर में इसकी 600 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं।

कंदमूल के खोदे जाने का समय-

तरूड़ की बेल फरवरी-मार्च के महीनों में सूख जाती है और यही इसकी जड़-कंद को खोदे जाने का उचित समय होता है। तरूड़ के कंदमूल जमीन में 5-6 फिट या उससे अधिक की गहराई तक मिलते हैं। 

तरूड़ का भोजन के रूप में प्रयोग-

तरूड़ के कंदमूल को आलू की तरह उबालकर नमक के साथ खाया जाता है। इसे उबालने के बाद छोटे-छोटे टुकड़े बनाकर आलू के गुटखों की तरह भूनकर सब्जी के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। 

तरूड़ के संबंध में प्रचलित उक्तियाँ-

कहा जाता है कि तरूड़ खोदते समय बहुत अधिक भीड़ नहीं लगानी चाहिए, अन्यथा तरूड़ की भूमिगत बेल गायब हो जाती है। यह भी कहा जाता है कि जब तरूड़ खोदते समय दिखने लगता है तो देख कर उत्साहित नहीं होना चाहिए वरना नजर लग जाती है और यह जमीन के अंदर धँसने लगता है और गायब हो जाता है।

तरूड़ का धार्मिक महत्व-

उत्तराखंड में महाशिवरात्रि के दिन तरूड़ का फलाहार और प्रसाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। तरूड़ को भगवान शिव का प्रिय आहार माना जाता है। इसीलिए भगवान शिव को भी इसका भोग लगाया जाता है। 

स्वास्थ्य के लिए लाभदायक तरूड़-

स्वास्थ्य की दृष्टि से तरूड़ का अत्यधिक महत्व है। यह पौष्टिक होने के साथ-साथ पेट के पाचन तंत्र के लिए अत्यधिक लाभदायक होता है। यानिकि तरूड़ शरीर के लिए गुणकारी खाद्य पदार्थ है। 

तरूड़ का औषधिय उपयोग-

तरूड़ के कंद व कंद-रस का प्रयोग विभिन्न औषधियों के निर्माण में किया जाता है। इसका प्रयोग त्वचा, हड्डी, पेट आदि संबंधी रोगों के निवारण हेतु निर्मित औषधियों में किया जाता है।

बाजार में तरूड़-

बाजार में तरूड़ की कीमत 50 से 80 रुपये प्रति किलो लगभग रहती है। विशेषकर यह शिवरात्रि के एक हफ्ते पहले और एक हफ्ते बाद तक बाजार में बिक्री हेतु उपलब्ध रहता है। कुल मिलाकर बेडोल दिखने वाले इस पर्वतीय कंदमूल का सेवन शरीर के लिए लाभदायक है।

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