कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

सोलह कलाओं वाला चांद

सोलह कलाओं वाला चांद

उसने नजर झुकाई

पलकें उठाई

निहारती रही

छत से।

कुछ देर बाद

भंवरे-सी गुनगुनाहट

हवा में बिखर गई।

 

वह मुस्कुराई

आगे बढ़ी

कहने लगी- “बाय।”

उस हाथ से

जिसमें क्षमता थी

कई लोगों का

भाग्य बदलने की।

 

फिर उसी हाथ से

संभाला

उसने दुपट्टा

और मुस्कुराती हुई

उतर गई

सीढ़ियों से नीचे

धीरे-धीरे।

 

मैं टकटकी लगाये

देखता रहा

उसे खिड़की से।

हैरान हूँ

पूर्णिमा नहीं आई

लेकिन चांद आ गया

पूरा खिला चांद

सोलह कलाओं वाला चांद।

 

© Dr. Pawanesh

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