September 3, 2019
सोलह कलाओं वाला चांद
सोलह कलाओं वाला चांद
उसने नजर झुकाई
पलकें उठाई
निहारती रही
छत से।
कुछ देर बाद
भंवरे-सी गुनगुनाहट
हवा में बिखर गई।
वह मुस्कुराई
आगे बढ़ी
कहने लगी- “बाय।”
उस हाथ से
जिसमें क्षमता थी
कई लोगों का
भाग्य बदलने की।
फिर उसी हाथ से
संभाला
उसने दुपट्टा
और मुस्कुराती हुई
उतर गई
सीढ़ियों से नीचे
धीरे-धीरे।
मैं टकटकी लगाये
देखता रहा
उसे खिड़की से।
हैरान हूँ
पूर्णिमा नहीं आई
लेकिन चांद आ गया
पूरा खिला चांद
सोलह कलाओं वाला चांद।
© Dr. Pawanesh
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