कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

हौलदार पंचम सिंह

🇮🇳   हौलदार पंचम सिंह  🇮🇳

      जो हमारे देश की रक्षा के लिए दिन-रात सीमा पर तैनात रहते हैं, जिनके लिए जाड़ा, गर्मी, उजाला, अंधेरा सब एकसमान रहता है, जो देशवासियों के लिए अपने परिवार से दूर हो जाते हैं, जो देश की रक्षा के लिए अपनी जान दे देते हैं, उनके लिए क्या लिखूँ ? 

      क्या लिखूँ मैं अपने पंचम के लिए ? प्रोफेसर सैप कहते हैं कि उनके लिए एक किताब लिख ! रिपोर्टर सैप कहते हैं कि उनके लिए एक रिपोर्ट लिख! कवि सैप कहते हैं कि उनके लिए एक कविता लिख ! अब माना कि मैं गाँव का सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा आदमी हूँ, लेकिन हूँ तो बी.ए. पास ही। मन तो क्याप-क्याप लिखने का करने वाला ठैरा। पंचम के लिए नहीं लिखूंगा, तो किसके लिए लिखूंगा ! लेकिन जैसे ही कलम उठती है तो मेरी अकल बैठ जाती है। समझ में नहीं आता कि क्या लिखूँ ! उस समय याद आती हैं बचपन में पढ़ी हुई कविताएँ और कहानियाँ। हिंदी में एक कविता थी, पुष्प की अभिलाषा, जिसके रचनाकार थे माखनलाल चतुर्वेदी। उसकी चार पंक्तियाँ तो मेरे दिमाग में छप गई हैं-

“मुझे तोड़ देना बनमाली, 
उस पथ पर तुम देना फेंक। 
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, 
जिस पथ जावें वीर अनेक।”

       इसी तरह वीर अब्दुल हमीद की कहानी भी मुझे मुख जबानी याद है। आखिर किस तरह से उसने दुश्मन के टैंकों को ध्वस्त किया। क्या हमारे पंचम ने भी इसी तरह से दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिये होंगे ? 

       पंचम हमारे बचपन का साथी था। एक ही गाँव में हम रहते थे। एक ही स्कूल में हमने पढ़ा। पंचम सिंह का नाम पंचम सिंह कैसे पड़ा, इसकी भी एक रोचक कथा है। दरअसल पंचम सिंह लोग छह-भाई बहन थे। पांचवें नंबर में पैदा होने के कारण पंडित जी ने उसका नाम पंचम सिंह रख दिया। 

        पंचम सिंह बचपन से ही बहुत शरारती था। खुरापात करने में माहिर। बचपन में हम गाँव से दूर टुणीधार में गाय-बकरियां चराने के लिए जाने वाले ठैरै। पंचम सिंह वहाँ बैलों की लड़ाई कराने वाला ठैरा। उसकी इस आदत से उनका एक बैल रतिया बहुत ही लड़ाकू बन गया। वह जहाँ भी दूसरे बैलों को देखता, उनसे लड़ने के लिए दौड़ लगा देता। यहाँ तक कि वह आदमियों के भी पीछे पड़ जाने वाला ठैरा। आगे-आगे आदमी और पीछे-पीछे भागते बैल को देखकर पंचम हंस-हंसकर लोट-पोट हो जाने वाला ठैरा। 

       एक दिन की बात है। फुन्नी कका अपने खेतों में बैल जोत रहे थे। खेत के ऊपर की चोटी में पंचम सिंह और हमारे बैल चर रहे थे। हल जोतने के बाद फुन्नी कका ने अपने बैल खोल दिये। पता नहीं फुन्नी कका के बैलों को जो हुआ होगा, वे जोर-जोर से हुआँ- हुआँ करने लगे। हुआँ- हुआँ की आवाज सुनकर पंचम के लड़ाकू बैल रतिया को जोश आ गया। उसने भी हुआँ- हुआँ करते हुए नीचे खेतों की ओर दौड़ लगा दी और मौका पाते ही अकेले दोनों बैलों से भिड़ गया। 

     रतिया दोनों बैलों से अकेले ही लोहा ले रहा था। देखते- ही- देखते वह दोनों बैलों पर भारी पड़ने लगा। फुन्नी कका जो डंडा खोज रहे थे, वे दौड़ते-दौड़ते आये और बैलों को छुड़ाने की कोशिश करने लगे। दो-चार डंडे उन्होंने रतिया की कमर में जमाये। रतिया को भी गुस्सा आ पड़ा। वह फुन्नी कका के बैलों को छोड़कर फुन्नी कका के पीछे दौड़ पड़ा। फुन्नी कका को दौड़ते-दौड़ते नानी याद आ गई। पंचम सिंह पहाड़ी में बैठा हुआ ही-ही करके हंस रहा ठैरा और साथ ही बैल की हौसला अफजाई भी कर रहा ठैरा- “शाबाश रतिया, शाबाश !”

        पंचम सिंह की शरारतों की सूची बहुत लंबी है। एक दिन उसने एक बिल्ली और एक कुत्ते के बच्चे की पूंछ रस्सी से आपस में बांध दी। दोनों खेंचा-खेंची करते हुए दूसरे खेत में गिर पड़े। इसी तरह एक साल पंचम सिंह ने खतड़ू त्योहार के दिन दोपहर में चुपचाप जाकर खतड़ू जला दिया, जबकि खतड़ू शाम को जलाया जाने वाला हुआ। तब गाँव के लोगों ने उसे खूब खरी-खोटी सुनाई। बचपन में पंचम बहुत शरारती था, लेकिन समय बीतने के साथ-साथ उसमें समझदारी विकसित होती गई। 

           कक्षा छह, सात, आठ की पढ़ाई के दौरान हम चोर-पुलिस का खेल खेलने वाले हुए। इस खेल में पंचम सिंह पुलिस बनने वाला ठैरा। जैसे ही मैं चोर बनकर गोली चलाने वाला हुआ, वह भड़ाम-से वहीं पर गिर जाने वाला हुआ और दो मिनट तक वहीं पड़ा रहने वाला हुआ। मैं जब उससे पूछता था कि यार तू ऐसा किसलिए करता है, तब वह कहने वाला हुआ कि दुश्मन की गोली खाकर मरने का मजा तू क्या जाने !  तू तो चोर ठैरा। ऐसा जवाब सुनकर सब साथी चकित रह जाते थे। 

          हाईस्कूल की पढ़ाई के दौरान पंचम को फौज में भर्ती होने का सुर चढ़ा, क्योंकि उन्हीं दिनों मल्ला गाँव के किसन दा फौज में भर्ती हुये ठैरे। गाँव में फौज की नौकरी का उन दिनों बहुत अधिक क्रेज था। किसन दा भी अपने दोस्तों के साथ ऐसी गप्प हांकने वाले ठैरे कि गाँव के सब युवा लड़के फौज में भर्ती होने के लिए उत्साह से सराबोर रहने वाले हुए। वो अकसर दोस्तों में धाक जमाने के लिए अपने भर्ती होने का वृतांत नमक में शक्कर मिलाकर सुनाया करते थे- “माँ कसम, रेस तो मैंने ऐसे फाड़ी कि ढाई मिनट में ही पूरी कर दी। पहले तो मैं पीछे था, लेकिन दूसरे चक्कर में ही ढेड़ सौ लड़कों को पछाड़ दिया। रेस पूरी होने पर जब मैं पहले नंबर पर आया तो सब देखते रह गये। हवलदार, मेजर, सुबदार सबने शाबाशी दी। एक मेजर ने तो पीठ थपथपाकर कहा- शाबाश बेटा, तू हमारी रेजिमेंट का मिल्खा सिंह बनेगा। शादी भी तेरी पी.टी.ऊषा जैसी रेसर से ही करायेंगे।” 

         थोड़ी देर रूकने के बाद वो फिर कहते- “चीन अप तो मैंने लगातार बीस मार दिए थे। सब चकित रह पड़े। जब गड्ढा कूदने की बारी आई तो कोई लड़का दूसरी बार में गड्ढा पार करता तो कोई तीसरी बार में। मैंने पहली ही बार में पार कर दिया। सिपाही बोला- शाबाश यार, तुझे देखकर तो ऐसा लगा जैसे हनुमान जी ने समुद्र में छलांग लगाई हो।” किसन दा के ऐसे वृतांतों को सुनकर सब लड़के चकित रह जाते थे। ऐसे ही वृतांतों को सुनकर शायद पंचम सिंह भी किसन दा से प्रभावित हुआ होगा। छह महीने की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद जब किसन दा घर आये, तब पंचम सिंह ने उन्हें अपना गुरु बनाया। वह अब किसन दा की सलाह और उनके निर्देशन में भर्ती की तैयारी करने लगा। 

      पंचम सिंह जैसे ही हाईस्कूल द्वितीय श्रेणी में पास हुआ, वैसे ही उसने भर्ती की तैयारी जोर-शोर से शुरू कर दी। अब वह सुबह-सवेरे उठकर दौड़ने के लिए चला जाता। इसी बीच रानीखेत के सोमनाथ ग्राउण्ड में दौड़ते समय वह गिर पड़ा। जिस कारण वह भर्ती नहीं हो पाया, लेकिन उसने अपनी मेहनत जारी रखी। एक साल बाद दोबारा पिथौरागढ़ बी.आर.ओ. में भर्ती आई। इस बार उसने रेस भी एक्सीलेंट निकाली, रिटन पास भी किया और मेडिकल भी वह फिट हो गया था। फिर क्या था ! कुमाऊँ रेजीमेंट ने उसे ट्रेनिंग के लिए सीधे रानीखेत भेज दिया। छह महीने की ट्रेनिंग के बाद जब वह घर आया तो मैं उसे पहचान ही नहीं पाया, क्योंकि वह पहले से ज्यादा कमजोर दिखाई दे रहा था, बावजूद इसके वह खुश था। हंसा काकी बता रही थी कि एक दिन नींद में भी वह लैफ्ट रैट, लैफ्ट रैट चिल्ला रहा था। 

       पंचम मनमौजी स्वभाव का सिपाही था। अपने दोस्तों के साथ वह खूब हंसी-मजाक करता था। साथ ही उनको पहाड़ी गीत भी सुनाता था-

“भर्ति है गयूं ओ इजू कुमाऊँ रजीमेंट में। 
टेनिंग करनयूं ओ इजू राणिखेत सेंटर में।”
( माँ, मैं कुमाऊँ रेजिमेंट में भर्ती हो गया हूँ। 
माँ, मैं रानीखेत सेंटर में ट्रेनिंग कर रहा हूँ। ) 

      पंचम सिंह जब घर आया तो परिवार में खुशी का माहौल था, लेकिन जब घरवालों को पता चला कि उसकी पोस्टिंग कश्मीर बौर्डर में हुई है, तो उनकी खुशी चिंता में बदल गई। हंसा काकी की आंखों में आंसू घूमने लगे। वह हर समय एक ही बात दुहराती थी- “बेटा, कश्मीर में तो हर समय लड़ाई लगी रहती है। तू अपना ख्याल रखना हां !” पंचम कहने वाला हुआ- “इजा, तू चिंता मत कर। सुबदार सैप का बेटा हूँ। जब तलक दुश्मन के दांत खट्टे नहीं कर दूंगा तब तलक कुछ नहीं होगा मुझे। तू घर में अपना और पिताजी का खयाल रखना।”

        माँ की माया और बरगद की छाया बहुत गहरी होती हैं। हंसा काकी को बेटे की बात से कुछ भी आराम नहीं मिलने वाला हुआ। वह कहने वाली ठैरी- “बेटा, अगले साल जब घर आयेगा तो तेरे लिए एक सुंदर ब्यौली खोज दूंगी। बस तू सकुशल घर आना।” एक दिन पंचम का घर से विदा लेने का समय आ ही गया। मैं उसे पहुंचाने के लिए उसकी अटैची पकड़कर बस स्टेशन तक गया। आंखों में आंसू भरकर मैं उससे इतना ही कह पाया- “आपना खयाल रखना यार…।”

        समय बीतता गया। पंचम को फौज में नौकरी करते हुए सात साल हो गये थे। अब वह सिपाही से हौलदार बन गया था। दो साल पहले जब वह छुट्टियों में घर आया तो हंसा काकी ने उसका विवाह कर दिया। बारात भनार गाँव के पधान ज्यू के घर गई। खूब झरफर हुई। आधे बाराती शराब पीकर टैट हो गये थे। किसन दा पर भी दारू का रंग खूब चढ़ा था। फौजी की शादी हो और शराब न मिले ऐसा कैसे हो सकता है ! सब दारू पीकर नाच रहे थे। मैं भी छाता पकड़कर बर जी के पीछे-पीछे चला जा रहा था। दो पैक सुबह-सुबह मैंने भी लगा दिए ठैरे। 

     फागुन का महीना था। खेतों में सरसों हौले-हौले मुस्कुरा रही थी। चोटियों में बुरांश खिलखिला रहा था। आड़ू , मेहल और क्वेराल के सफेद फूल मन में कुत्क्याली लगा रहे थे। बारात जब सरसों के खेतों के बीच से गुजरी तो रंगत ही आ पड़ी। आगे-आगे छलिया, पीछे-पीछे बाराती। गिदार जब बीच-बीच में गीत सुनाने वाला हुआ तो पंचम मेरी ओर देखकर मुस्कुराने वाला हुआ। इसी दौरान गिदार ने एक जोड़ मारा-

“आलू , गोबी को साग मटर में मिलै दे। 
वनडे छू बरयात, झट्ट बट्यै दे।”
( आलू , गोभी की सब्जी मटर में मिला दे। 
वनडे शादी है, जल्दी तैयार कर दे। ) 

      जोड़ गीत के बाद ज्योंही छलिया नाचने लगे, तो उससे रहा नहीं गया और मेरे कान के समीप मुंह लगाकर वह बोला- “यार मेरा भी नाचने का मन कर रहा है।”  मैंने कहा- “चुप रह यार। तेरा काम है रौब से चलना। नाचने का काम बरातियों और छलियाओं का है।” तब उसने मजाक की- “यार नाचने का काम तो मेरा भी है, लेकिन अभी नहीं, जब तेरी भाभी आ जायेगी तब।” इसके बाद एक जोरदार हंसी हवा में बिखर गई। 

        शादी के एक सप्ताह बाद पंचम दोबारा ड्यूटी के लिए कश्मीर चला गया था। इसी दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर तनाव लगातार बढ़ता चला जा रहा था। दुश्मन की सेना भारत की सीमा में बार-बार घुसपैठ कर रही थी। एक दिन खबर आई कि कारगिल सेक्टर में दुश्मन ने भारत की सीमा में घुसकर अत्यधिक गोलाबारी की। दिल्ली से रक्षामंत्री का आदेश आया कि दुश्मन की गोली का जवाब गोली से दो और दुश्मन को बौर्डर से बाहर खदेड़ो। बस फिर क्या था ! बौर्डर पर लड़ाई छिड़ गई। गोलियों की बारिश होने लगी। तोप, बम, गोले, बारूद सभी का इस्तेमाल हुआ। बौर्डर को चारों ओर से खाली कर दिया गया। समाचार आया कि हमारा पंचम भी कारगिल सेक्टर में तैनात है। 

       भारतीय सेना नीचे थी और दुश्मन ऊपर से बम बरसा रहा था। ऐसी हालत में भी भारत के फौजी भारत माता की जै, हर-हर महादेव के नारे लगाते हुए ऊपर चढ़ रहे थे। इसी बीच खबर आई कि कारगिल सेक्टर में दुश्मन के साथ मुठभेड़ में भारतीय सेना के पांच जवान शहीद हो गये हैं, जिनमें से एक पिथौरागढ़ का निवासी भी है। पिथौरागढ़ का निवासी सुनकर मेरा दिमाग सकपकाया। मेरा शक सही निकला। वह हमारा पंचम सिंह ही था। 

        हौलदार पंचम सिंह का पार्थिव शरीर ससम्मान लाया गया। घाट के नजदीक उसका अंतिम संस्कार किया गया। जिस समय ताबूत घर लाया गया उस समय हंसा काकी और बिंदु भौजी का रो-रोकर बुरा हाल हुआ था। परिवार में कोहराम मच गया था। भौजी तो पछाड़ खाकर बेहोश हो गई थी। भरी जवानी में उसके मांग का सिंदूर मिट गया था। छोटी बच्ची मीना के सिर से पिता का साया उठ गया था। हंसा काकी और रघु कका का लाड़ला बेटा, मेरा जिगरी दोस्त हमेशा के लिए चला गया था, हम सबको अकेला छोड़कर। 

        हौलदार पंचम सिंह भारत माता का सच्चा सिपाही था। वह भारत माता का सच्चा बेटा था। उसने देश के लिए बलिदान दिया। उसके तमाम साथी बरबादी की राह में खड़े हैं। कोई शराब पीकर रास्ते में गिरा रहता है, तो कोई जुआ खेलकर जीवन बर्बाद कर रहा है। दो साल पहले जगति कैंसर से बीमार होकर चल बसा। पिछले साल लछमी चट्टान से नीचे गिर पड़ा। अधिकतर मनुष्य ऐसे ही अपना जीवन बर्बाद कर देते हैं, लेकिन पंचम ने अपनी जिंदगी आबाद की और देश के लिए जान देकर अपना जीवन सफल किया। 

        शहीद कभी मरता नहीं वह अमर हो जाता है। सच कहूँ तो यह देश सबसे पहले उन जवानों का है, उन वीरों का है, जो देश की रक्षा के लिए चौबीसों घंटे सीमा पर तैनात रहते हैं। देश की खातिर अपना सर्वस्व लुटाने के लिए तैयार रहते हैं। हौलदार पंचम सिंह जैसे वीरों के कारण भारत ने लड़ाई जीती और अपनी सीमाएँ दोबारा हासिल कीं। भारत माता ऐसे वीरों की हमेशा कर्जदार रहेगी और कर्जदार रहेगी छप्पन सिंह की यह कलम। जय हिंद ! जय भारत !! 

© Dr. Pawanesh. 

  • “आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।”🇮🇳🇮🇳🇮🇳
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