हेमंत कांडपाल की कुमाउनी कविताएँ
हेमंत कांडपालकि कुमाउनी कविता
1. प्रकृति
प्रकृति हमरि सबु हबै ठुल ईज
आज हमु हबे रिस्यै गे ।
कै दयो का धार, कै आग जौस घाम
कै हयूं पड़रौ मौत ल्यूडि
प्रकृति बेलगाम।
रिसी-काव, स्याव बणों बैं हरैगि
प्रकृति में सबै तरफ़ कोहराम।
प्लास्टिकक जहर घोई है जाग-जाग
हमूकै दिण पड़ाल यैक दाम।
जरा सोचो हमार पाडी़ धार, नौव, सिमार, और घट
कां गेन्हाल आज।
ईज बाबु कै गौं-घरोंमें छोड़बे
शहरों में के करि ल्हियौल समाज।
मैसोक यौ ईजक प्रति निरादर
भौतभल न्हैं।
इमै जरूरी छु सुधार
जब हम ईज कै इजक समान इज्जत दयुन तब ऊ लै करैलि प्यार।।
२.पलायनक को जिम्मेदार !
पहाड़क् पहाड़ हबेर ठुल समस्या पलायनक को जिम्मेदार?
यांक मैंस या यांक सरकार
बताओ जरा ?
बाखई बाखई खालि हैगीं
गौं- गौंनों में सुनसानी छू।
बानर, बरहा, सौल भुति रीं,
बेरोजगारी अलग परेशानी छु।
नई राज्यक स्वैण, स्वैणै रइ
पहाड़क विकास में।
एक संस्कृति मरणै आदु अधुर प्रयास में।।
*रचनाकार परिचय*
नाम- हेमंत कुमार काण्डपाल
जन्मतिथि- 15 सितम्बर, 1988
व्यवसाय- शिक्षक (रा० इ० का० असों-बागेश्वर)
मूल निवासी- गौं- कांटई, कौसाणि (अल्माण)
शैक्षिक योग्यता- एम. ए., बी.एड.
शौक- तैराकी, लेखन, घुमण-फिरण, सामाजिक काम आदि।
पहाड़ों में सुनसानी हैगे पलायन भौते हैगो