कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ का कविता संग्रह- सिसौण

कुमाउनी कविता संग्रह: सिसौण
Kumauni Poetry Collection: Sisaun

‘सिसौण’ कुमाउनी कवि बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ का कविता संग्रह है। आइये जानते हैं पुस्तक और रचनाकार के विषय में-

कविता संग्रह के विषय में-

सिसौण

     ‘सिसौण’ कुमाउनी कवि बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ का कविता संग्रह है। इस संग्रह के पहले संस्करण का प्रकाशन 1984 में नंदा प्रकाशन, नैनीताल से हुआ है। इस किताब की भूमिका डॉ. त्रिलोचन पांडे जी ने लिखी है, जिसमें उन्होंने इस कविता संग्रह की विस्तृत समालोचना की है। ‘सिसौण’ में कुल 37 कुमाउनी कविताएँ संगृहीत हैं। 

        जिज्ञासु जी ने इस संग्रह की कविताओं की शुरुआत ‘जै जै माता सरसुती’ कविता से की है और समापन ‘उठौ, जागौ, अघिल बढ़ौ’ नामक प्रेरक कविता से किया है। जिज्ञासु जी ने अपनी कविताओं में पहाड़ की लोक संस्कृति व सामाजिक जीवन का सजीव चित्रण किया है। पहाड़ के गाँव, त्योहारों, पर्वों, प्रकृति, बसंत, देश प्रेम, संस्कार गीत, लोकगीत, सामाजिक परिवेश आदि को इन्होंने अपनी कविताओं का विषय बनाया है। इनकी कविताओं में ठेठ कुमाउनी भाषा का प्रयोग, अलंकारिकता, छंदबद्धता व बिंबों का प्रयोग दर्शनीय है। 

        इस संग्रह की शीर्षक कविता ‘सिसौण’ देश प्रेम से सराबोर कविता है, जो लोगों को अपने समाज, संस्कृति, भाषा, अपनी माटी की ओर लौटने का आह्वान करती है। इस कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं-

आपण गौं गाड़ै फाम करौ। 
छन बखतै
आपणि थातै सज समाव करौ। 
लौटि आओ भुला-भुलियो ! 
आपण माटी में लौटि आओ। 
आपण माट कैं पुजौ। 
यौक आशीर्वाद तुमन कैं
अजर अमर बणाल। 
जादे के कूं
मैं सिसौण छूं
भिसौंण छूं। ( पृ० 7 )


किताब का नाम- ‘सिसौण’
विधा- कविता-संग्रह
रचनाकार- बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’
प्रकाशक- नंदा प्रकाशन, नैनीताल
प्रकाशन वर्ष- 1984


रचनाकार के विषय में-

बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’

     कुमाउनी कवि बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ का जन्म 21 फरवरी, 1934 को अल्मोड़ा जनपद के नहरा गाँव में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री पुरूषोत्तम पाठक व माताजी का नाम श्रीमती आनंदी देवी था। सन् 1950 में इन्होंने शिमला से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। इन्होंने घर पर ही पिता के सानिध्य में संस्कृत भाषा का अध्ययन किया। सन् 1955 में आपका विवाह अल्मोड़ा निवासी देवकी से संपन्न हुआ। 

      बंशीधर पाठक जी की पहली कविता हिमांचल सूचना विभाग की पत्रिका ‘हिमप्रस्थ’ में ‘नवजात से’ शीर्षक से छपी थी। इसी तरह इनकी पहली कहानी ‘और जीवन खो गया’ अमृतसर से प्रकाशित झंकार पत्रिका में छपी थी। ये दोनों रचनाएँ हिंदी भाषा में थीं। जिज्ञासु जी को साहित्य से अत्यधिक लगाव था। उस काल की पत्र पत्रिकाओं में इनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती थीं। जिज्ञासु जी 1963 में आकाशवाणी लखनऊ से प्रसारित होने वाले उत्तरायण कार्यक्रम में विभागीय कलाकार बने और यहीं नौकरी करने लगे, क्योंकि यह कार्य उनकी रूचि का था।

          जिसासु जी का ‘सिसौण’ (1984) के अलावा एक हिंदी कविता संग्रह ‘मुझको प्यारे पर्वत सारे’ (1991) भी प्रकाशित हुआ। 20 फरवरी, 1994 को ये आकाशवाणी लखनऊ से सेवानिवृत्त हुए। साहित्य और कला की सेवा कर 8 जुलाई, 2016 को जिज्ञासु जी इस लौकिक संसार को छोड़कर चल बसे। 

Share this post

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!