कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

कुमाउनी खंडकाव्य-पंचप्रिया: डॉ. पीताम्बर अवस्थी

कुमाउनी खंडकाव्य-पंचप्रिया: डॉ. पीताम्बर अवस्थी

  साथियों, आज हम पिथौरागढ़ के लेखक व समाजसेवी डॉ. पीतांबर अवस्थी द्वारा रचित कुमाउनी खंडकाव्य ‘पंचप्रिया’ के विषय में चर्चा करते हैं- 

पुस्तक के विषय में-          

 पंचप्रिया  

 

       पंचप्रिया डॉ. पीतांबर अवस्थी जी का कुमाउनी खंडकाव्य है। यह खंडकाव्य वर्ष 2020 में अवस्थी जी के प्रकाशन संस्कृत पुस्तकालय, पिथौरागढ़ से प्रकाशित हुआ। अवस्थी जी ने इस खंडकाव्य को सात सर्गों में विभाजित किया है। 

        पंचप्रिया के पहले सर्ग में भारतीय नारी की वेदना और संघर्षों को मुखरित होने का मौका मिला है। खंडकाव्य के पहले सर्ग की शुरुआत में रचनाकार लिखता है- 

जीवन आपनो आस पराई, 
नारिको धर्म बड़ो कष्टदायी।
बांधि जांछी जब सिंदूरका बंधन, 
फिरिल्ये सुख ऊ कभै नि पायी। ( पृ०7) 

     पंचप्रिया में अवस्थी जी ने द्रोपदी के चीर हरण की पौराणिक घटना को आधार बनाकर नारी जीवन की पीड़ा को सामने रख दिया है। इस खंडकाव्य के दूसरे सर्ग में द्रोपदीक स्वयंवर और तिसरे सर्ग में द्रोपदी के पांच पांडवों की पत्नी बनने का चित्रण है। इस खंडकाव्य के चौथे सर्ग में पांडवों के द्वारा द्रोपदी को जुए में हारने का प्रसंग है। खंडकाव्य के पांचवे सर्ग में रचनाकार ने दुशासन द्वारा द्रोपदी के चीर हरण का मार्मिक चित्रण किया है-

बाल खींचि द्रौपदी कैं ल्याबेर, 
घोर करनरयो दुशासन पाप। 
द्रोपदि करनि विलाप, त्वै दुष्टस, 
प्रभु कराला कभै नि माफ। ( पृ०84) 

      इस खंडकाव्य के छठे सर्ग में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा साड़ि बढ़ाकर पंचप्रिया की लाज बचाने का वर्णन है-

डीठ पड़ि जब द्रोपदीकि, 
सामनि ठाड़ि रया गिरधारी। 
डर छू सगलो मन हैं भाजि ग्यो, 
चीर बढ़ून र्यान बनवारी। (पृ०115) 

     पंचप्रिया खंडकाव्य के आखिरी सर्ग में रचनाकार ने बहुपति प्रथा का विरोध करने के अलावा नारी को समाज में उचित सम्मान दिलाने की वकालत की है-

पांच पतिन संग एक नारिकि
इज्जत कसी कै है सकली। 
मर्दन में होलि छीना-झपटी, तब
धरती कसि कै बचि सकली। (पृ०163) 

     इस प्रकार डॉ. पीताम्बर अवस्थी जी का ‘पंचप्रिया’ खंडकाव्य एक पौराणिक घटना के माध्यम से समाज में नारी की दशा सुधारने पर जोर देता दीखता है। समाज में ‘बेटी बचाओ’ और ‘नशा उन्मूलन’ जैसे अभियान चलाने वाले डॉ. अवस्थी जी के व्यक्तित्व की छाप उनके इस खंडकाव्य में साफ नजर आती है।


किताब का नाम- पंचप्रिया
विधा- खंडकाव्य
लेखक- डॉ. पीतांबर अवस्थी
प्रकाशक- ज्ञान प्रकाश संस्कृत पुस्तकालय, पिथौरागढ़
प्रकाशन वर्ष- 2020


लेखक के विषय में-

डॉ. पीताम्बर अवस्थी

      डॉ. पीताम्बर अवस्थी सोरघाटी के लब्ध प्रतिष्ठित रचनाधर्मियों में एक हैं। डॉ. पीताम्बर अवस्थी का जन्म 1 मार्च, 1961 को अस्कोट ( पिथौरागढ़ ) के अवस्थीगांव में हुआ। आपके पिता का नाम श्री जयदेव अवस्थी और माता का श्रीमती हेमंती देवी है। आपने हिंदी, संस्कृत, समाजशास्त्र, हिंदी, राजनीति विज्ञान, इतिहास विषयों से एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की है। शोध कार्य में रूचि होने के कारण आपने पीएचडी भी की। 

     शिक्षण कार्य के अलावा डॉ. अवस्थी जनपद की सामाजिक गतिविधियों में भी निरंतर सक्रिय रहते हैं। आपने पिथौरागढ़ में संस्कृत पुस्तकालय की स्थापना की है। आप विगत 15 वर्षों से नशामुक्ति, बेटी बचाओ, पर्यावरण संरक्षण, शिक्षा एवं साहित्य संवर्धन, पशु हत्या निषेध आदि अभियानों का संचालन करते रहे हैं। इस कार्य में उनकी अर्द्धांगिनी श्रीमती मंजुला अवस्थी भी उनका सहयोग करती हैं। डॉ. अवस्थी गरीब और मेधावी विद्यार्थियों को अपनी माता जी के नाम पर हरूली आमा छात्रवृत्ति योजना भी प्रदान कर रहे हैं। 

      डॉ. पीताम्बर अवस्थी शिक्षण व सामाजिक कार्यों के साथ-साथ लेखन में भी निरंतर सक्रिय रहते हैं। कुमाउनी में परछाई (कविता संग्रह, 2018), पंचप्रिया ( खंडकाव्य, 2020) व हिंदी में मंजुल (कविता संग्रह, 2015), हिमालय (2018), उत्तराखंड के परंपरागत जलस्रोत (2019) आदि सहित एक दर्जन पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। 

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