December 8, 2019
प्रिय बहना, मैं अभी जिंदा हूँ
हमारी वेबसाईट के कालम ‘कविता विशेष’ में आपके सामने जो पहली कविता रखी जा रही है, उसका शीर्षक है- ‘प्रिय बहना, मैं अभी जिंदा हूँ।’
कविता परिचय-
यह कविता साहित्यकार ‘बलवंत मनराल’ के ‘पहाड़ आगे: भीतर पहाड़’ कविता संग्रह से उद्धृत की गई है। कविता उत्तराखंड आंदोलन के समय रामपुर तिराहे के पास उत्तराखंड की महिलाओं, बेटियोंके के साथ हुए बर्बर जुल्मों से आहत होकर लिखी गई है। आज यह कविता पुनः प्रासंगिक हो उठी है, फर्क सिर्फ इतना है उस रात सत्ता के नुमाइंदों ने रावण का अवतार लिया था, अब जनता के बीच से ही रावण पैदा हो रहे हैं।
प्रिय बहना, मैं अभी जिंदा हूँ
प्रिय बहना !
धीर धरो, धीर धरो।
लाज से शर्म गड़कर
जीवन की अंधी गुफा छिपकर
आत्म-घृणा से भरकर
अपनी देह का परित्याग नहीं करो।
उठो, देखो
मेरा अदृश्य हाथ
तुम्हारे आंसू पोंछने
महसूस करो, पास आ गया है
तुम्हारा अज्ञात भाई..
मैं अभी जिंदा हूँ
आतताई को न छोड़ेंगे
मेरी तरह…
तुम्हारे लाखों भाई
वचन दे चुके हैं।
प्रिय बहना ! आंसू ? ना ! ना !
तुम पावन
महासती उमा
अब दुर्गा देवी बनो
ओ सिंह वाहिनी।
तुम्हारे आंखों में अंगारे
मुझे बहुत अच्छे लगते हैं
ये अग्निकण पी-पीकर
मैं प्रण करता हूँ
बलात्कारी के विरूद्ध
जीवन का हर साँस प्रयुक्त रहेगा।
अंधेरी हिंसक रात में
बंदूकधारी
पाशविक नंगी शक्ति द्वारा
लाज की खाई में
बलात् तुमको ठेला।
एक दिन वे
काल से इस प्रकार
अंधे कुओं में धकेले जायेंगे
कि उनका नाम बोलने वाला
कोई नहीं रहेगा।
लोक धर्म की अग्नि परीक्षा में
तुम खरी
सीता सम पूज्य होगी
प्रत्येक साल
दो अक्टूबर की पिछली रात
रावणी सत्ता
के पुतले का दहन होगा।
इतिहास साक्षी है..
पहले ऐसा हुआ था
अब ऐसा ही होगा
प्रिय बहना !
धीर धरो, धीर धरो
तुम्हारा भाई… मैं अभी जिंदा हूँ।।
* बलवंत मनराल उत्तराखंड के ऐसे जिजीविषा धर्मी साहित्यकार थे, जिन्होंने पक्षाघात जैसी असाध्य बीमारी के बावजूद अपना रचना कर्म नहीं छोड़ा।
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