कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

ज्योति तिवारी काण्डपाल की कुमाउनी कविताएँ

ज्योति तिवारी काण्डपालकि कुमाउनी कविता

             १. मीं एक चेलि छीं

एक तरफ चेलि अंतरिक्ष में पुंज गेईं।
वैज्ञानिक ले मंगलयान, तीसर चन्द्रयानक् तैयारी में छन ।
डीएम, एसपी, लेफ्टिनेंट, सचिव पदों पर लै चेलि छन।
यां तक कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश पद तक पुंज गईं।
हर रोज अघिल बढ़नक् होड़ मचि रै।
उनुमें लै आपुण आपुण पछ्याण बनूणक इच्छा जागृत हूंण रै।।

मीं ले तो इनुमें बेै एक छिं।
जो डॉक्टर बणनक स्वैंण ल्हीबेर भ्यार पढ़हैं गोई।
मिकै य आजाद देश में आजादील रूणक के हक निछ्यौ।
मेरि गलती के छि? 
मीं एक च्येलि छीं।।

म्यर लै के स्वैण छी, के अभिलाषा छी।
आपुण ईज- बाबुक् नौ रौशन करणक्।
भै-बणूक सहार बनणक्। 
देशकि सेवा करणक्
मीकैं के सोचणक हक ले नि भै।
गलती मेरि य भै कि मीं एक चेलि छीं-निर्भया।

सात साल बाद फिर ऊ घटना दोहराई ग्येयि।
इंसानियतक हद यां तक न्हें ग्येयि। 
ज्यून पराण पर पैट्रोलल् आग लगाई गेइ।
किले मीं इंसान नि छियौ के?
गलती मेरि य भै कि मीं एक चेलि छीं।  

य सब घटना तो उज्याव में ऐरीं।
कदू आजि डरक् कारण रोज बेज्जत हूंण रीं।
चेलि पर आपूणांक ले नजर खराब हूंरै।
कानून सबूत मांगनै रूं, इन्हरि हिम्मत बढ़ाते रूं।
सबूत मिटने रूंनि, अपराधी छुटनै रूंनि।
हरदिन क्वे ना क्वे चेलि,
यस दरिंदगिक् शिकार बणनै रैं।
जाणि कधिन हमर देश में ,
सैंणि जात् सुरक्षित रौलि??

हमर देशम् गार्गी, अपाला, लक्ष्मीबाई जस महान विभूति हाय ।
इन्हरि जीवनी पर बैे, सब सीख लिनै हाय!
दुर्भाग्य आज हर दिन को ना को, चेलि यस दुर्घटनाक् घटना शिकार हुणे।
गलती हमरि य भै कि हम चेलि भाय।
येक लिजी घिनौनी हरकत
हमू दगड़ी हुणे।
के ल हो दरिंदगी, दोष हमुकनी दी जां ।
कभैति हमर व्यवहार और कभै हमर कपड़ों कैं दोष दी जां।

हम पूछनूं , हम सब पुछनूं
उ ननाक् के गलती?
जनुकैं जाती बोध ले नि छी।
उनरि गलती य भै कि उं एक चेलि छी।
इज्जत करो चेलि की। 
हमर समाजम् सैंणिक् के इज्ज्त न्हेंति ।
समाज में आयेदिन भ्रूण हत्या हूंनै रूंनि। 
लोग चेलि-ब्वारि रिश्त ढूंढनै रूंनि।
चेली जै नीं रौली तो ब्वारि कां बै आलि?
इज्जत करो चेलि कि नतर
एक दिन हतन है जालि चेलि, हतन है जालि चेलि।।

                         २. घुघुती

स्वागत छू तुमर हंसमुख बसंत में।
वाकई में तुम चड़खुल छिये ना!
तुम तो स्वर्ग बैे आयी छा।
एकल एकलै तुम कतु मिट्ठ गीत कूंछा?
य गीतक् बोल तुमुकैं तैयार करणकि जरूरत न्हेंति।
तुम आपु आप में यस मगन हैरेछा।
जसि तुम गीतों कैं गाछा और गीत तुमुकें गानी।

धरती बेै आसमानकि उड़ान भरछा।
जसि आग बादो बन बे उडूं।
तुम ढलते हुए सूरजक् किरणों में दौड़ छा।
तब बादों ले चमकनी
तुम तो यस उड़छा मानो शरीर हो ना केवल रूह छा।
आत्मा छा जो कभै थाकनि न्हें।
ऊर्जा तो जसिकै कूट कूट बे भरि रै।
वाकई तुमर बखान असम्भव छू।।

तुम बिल्कुल एक तार् जस छा। 
जो रुं तो अकाश में पर दिन में नि दिखाई द्यूं।
तुमरि केवल आवाज सुणाई दीं।
आवाज संकेत दीं की
तुम आकाशै में छा।
तुमर पंख बिल्कुल तारोंक् चारि चमकनी।
जसिके चांद रात में चारों तरफ उज्याउ बिखेरूं।
ठीक उसीकें तुम आपूण गीतल सबुकेैं मन मोह लिछा।।

जसि चंद्रमा उज्याव पुर दुनी में राज करुं।
उसिकें तुमरि आवाज चारों दिशाओं में सुणाई दिरें।
जसि जुगनूक् केवल उज्याउ दिखाई द्यूं।
उसिकै तुमरि केवल आवाज सुणाई द्यूं
गुलाब क खुशबू चारि।
तुमरि ले केवल आवाज सुणाईम रे।।

तुम तो भौते सुंदर छा।
तुमर तारीफ में लिखण भौतै कठिन हूणों।।

                 ३. कस जमान आय

एक है बे एक बीमारी, सुनण में उण री 
फेसबुक, व्हाट्सएप, मल्टीमीडिया
फोन क नाम बतूण री 
आज मल्टीमीडिया फोन, सबु जरूरत हूंण री।
नना, ठुला, बुड़ा बाड़ी,
सबकें चैं फोन ठूलो भारी 
हाय जमाना हाय, कस जमाना आय। 

कॉलेज हैं जाण में, बस्त हैं जा भारी
पर उ कान पर लगे बे, फोन नि हुन भारी 
रत्तै हो या ब्याव हो, दिन हो या रात हो
फोन चलाणल , क्वे नि हनि थकान हो
हाय जमाना हाय, कस जमाना आय। 

पैलीं बे छत्तीस बाणी पकवान पाक छी
आज सेल्फी लिहुं छत्तीस बाणी मुखड़ बनाणी
कॉपि किताब हराय, फोनम हैरे पढ़ाई
हाय जमाना हाय, कस जमाना आय।

आजकल नई नई एप, सुनण में उण रयि ।
हेलो, एम वी, लाईकी, टिक टॉक, नौ बतूण रयि।
नना, ठुला यां तक कि बुढ़-बाड़ि ,
सबुकें लै गे इनरि बिमारी। 
हाय जमाना हाय, कस जमाना आय ।। 


                  *रचनाकार परिचय*

नाम- ज्योति तिवारी काण्डपाल 
जन्मतिथि- 08 जुलाई, 1992 
ईज- श्रीमती भगवती तिवारी 
बाब् – श्री भैरव दत्त तिवारी 
घरवाल – श्री चन्द्रशेखर काण्डपाल 
च्यल- रूद्रांश काण्डपाल 
सौरास- गौं- कांटई, कौसाणि (अल्माण)उत्तराखंड
शैक्षिक योग्यता – जनपदीय (सिविल) अभियन्त्रण में डिप्लोमा
शौक -अध्ययन, लेखन, सामाजिक काम आदि। 

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