कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

कुमाउनी कविता संग्रह: निशास (Kumauni Poetry Collection: Nishas)

कुमाउनी कविता संग्रह: निशास
Kumauni Poetry Collection: Nishas

    कवयित्री देवकी महरा कुमाउनी की प्रारंभिक महिला रचनाकारों में आती हैं। निशास उनका पहला कविता संग्रह है। आइये जानते हैं कविता संग्रह व रचनाकार के विषय में।

कविता संग्रह के विषय में-

निशास (कुमाउनी कविता संग्रह) 

    ‘निशास’ कवयित्री देवकी महरा का पहला कविता संग्रह है। इस संग्रह के पहले संस्करण का प्रकाशन 1984 में तक्षशिला प्रकाशन, नई दिल्ली से हुआ। इस किताब की भूमिका मोहन उप्रेती ने लिखी है। इस किताब में कुल 49 कविताएँ संगृहीत हैं। कविताओं में पहाड़ की संस्कृति और समाजिक जीवन का अच्छा चित्रण हुआ है। अधिकांश कविताओं में गीतात्मकता व लयबद्धता है। इस संग्रह से ‘लाखैं उमर’ कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं-

नि गंवावो रे
नि गंवावो
ये लाखों जिंदगी
पराई
जरा, जोरू, जमीन
कैं आंखि लगून में नि गंवावो
य संसार द्वी दिन छु। ( पृ० 45 )


किताब का नाम- निशास
विधा- कविता संग्रह
रचयिता- कवयित्री देवकी महरा
प्रकाशन वर्ष- 1984


रचनाकार के विषय में-

सम्मानित होती हुई कवयित्री

कवयित्री देवकी महरा

कवयित्री देवकी महरा का जन्म 26 मई, 1937 को अल्मोड़ा जनपद के कठौली गाँव में हुआ। आपके पुत्र महेंद्र महरा ‘मधु’ भी साहित्यकार हैं और कुमाउनी में गजल विधा की पुस्तक लिखने की शुरुआत कर चुके हैं। देवकी महरा हिंदी और कुमाउनी दोनों भाषाओं में सृजन करती हैं। आपके हिंदी में प्रेमांजलि (1960), स्वाति (1980), नव जागृति (2005) कुल तीन कविता संग्रह, अशोक वाटिका में सीता (खंडकाव्य) और एक उपन्यास ‘सपनों की राधा’ प्रकाशित हो चुके हैं। कुमाउनी में उनके दो कविता संग्रह निशास और पराण-पुंतुर प्रकाश में आये हैं। आपकी रचनाओं में पहाड़ की संस्कृति और नारी दशा का यथार्थ चित्रण हुआ है। 

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