कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

अल्मोड़ा से जागेश्वर, लखु-उड्यार और चितई गोलू मंदिर भ्रमण

अल्मोड़ा से जागेश्वर, लखु-उड्यार और चितई गोलू मंदिर भ्रमण

        आज प्रातः 8 बजे हम लोग इंद्रेश कुमार पांडे सर के नेतृत्व में कक्षा 9 और 11 के विद्यार्थियों के साथ शैक्षिक भ्रमण पर निकल पड़े। जी. आई. सी. नाई से अल्मोड़ा होते हुए हम लोग लगभग दोपहर 12 बजे जागेश्वर पहुंचे। यहाँ हमने मंदिर दर्शन के उपरांत पुरातत्व विभाग का संग्रहालय देखा। उसके पश्चात् वापसी में हमने लखु-उड्यार और चितई गोलू मंदिर के भी दर्शन किये। उपर्युक्त तीनों स्थलों का ऐतिहासिक, सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टियों से अत्यधिक महत्व है। 

1. जागेश्वर मंदिर

       उत्तराखंड के अल्मोड़ा से लगभग 36 किलोमीटर दूर स्थित जागेश्वर धाम के प्राचीन मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस क्षेत्र को सदियों से आध्यात्मिक शांति प्रदान कर रहे हैं। जागेश्वर मंदिर समूह में लगभग 125 मंदिर हैं। मुख्य मंदिर भगवान मृत्युंजय का मंदिर है। 

      जागेश्वर को पुराणों में हाटकेश्वर के नाम से जाना जाता है। पतित पावनी जटागंगा के तट पर समुद्रतल से लगभग 6200 फुट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र जागेश्वर की नैसर्गिक सुंदरता अतुलनीय है। लोक विश्वास और लिंग पुराण के अनुसार जागेश्वर भगवान शिव द्वारा स्थापित बारह ज्योतिर्लिगों में से एक है। यहाँ स्थित मंदिरों का निर्माण 7 वीं शती से आठवीं शती के मध्य हुआ है। इन मंदिरों को उत्तराखंड के प्रसिद्ध कत्यूरी राजवंश के राजाओं ने निर्मित करवाया। ये मंदिर भगवान शिव तथा योगेश्वर, मृत्यंजय, केदारेश्वर, नवदुर्गा, सूर्य, नवग्रह, लकुलीश, बालेश्वर, कालिका देवी आदि देवी देवताओं को समर्पित हैं। यहाँ मृत्यंजय मंदिर समूहों से पूर्व सड़क के किनारे ही पुरातत्व विभाग का संग्रहालय स्थित है, जिसमें प्राचीन मूर्तियाँ संगृहीत की गई हैं। इन मूर्तियों में पौण राजा की मूर्ति सर्वाधिक उल्लेखनीय है। 

2. लखु-उड्यार

       यह उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ मण्डल में अल्मोड़ा-सेराघाट मार्ग पर अल्मोड़ा से 13 किमी.की दूरी पर स्थित एक प्राचीन गुफा है। गुफा के भीतर एक चट्टान पर प्राचीन चित्र देखे जा सकते हैं। माना जाता है कि ये चित्र प्रागैतिहासिक काल में आदिमानवों द्वारा बनाये गए थे। इन चित्रों में उनके दैनिक जीवन, जानवर, शिकार के तरीकों और एकल व समूह नृत्य को काले, लाल और सफेद रंगों से उकेरा गया है। इस गुफा की खोज 1963 में की गई थी। 

3. चितई गोलू मंदिर-

        गोलू देवता को स्थानीय मान्यताओं में न्याय का देवता कहा जाता है। गोलू देवता अपने न्याय के लिए विदेशों में भी मशहूर हैं।हालांकि, उत्तराखंड में गोलू देवता के कई मंदिर हैं, लेकिन इनमें से सबसे लोकप्रिय अल्मोड़ा जिले में स्थिति चितई गोलू देवता का मंदिर है। गोलू देवता को स्थानीय संस्कृति में त्वरित न्याय के देवता के तौर पर पूजा जाता है। गोलू देवता का एक नाम भैरव भी है। गोलू देवता को भगवान शिव का ही एक अवतार माना जाता है। अपनी मनोकामना पूरी होने पर लोग मंदिर में घंटी चढ़ाते हैं। समस्याओं के निदान हेतु लोग मंदिर में पत्र प्रेषित करते हैं। माना जाता है कि गोलू देवता सभी के साथ न्याय करते हैं। 

 

       विद्यार्थियों के लिए आज का दिन खास तौर से विशेष था, क्योंकि उन्होंने नये स्थलों का भ्रमण किया और कई नई जानकारियाँ व अनुभव प्राप्त किये। कुल मिलाकर हम सबके लिए आज का दिन विशेष यादगार बन गया। 

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