कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

अल्मोड़ा के कुमाउनी भाषा विभाग में होगी शिक्षकों की नियुक्ति- कुलपति प्रो० नरेंद्र सिंह भंडारी

अल्मोड़ा के कुमाउनी भाषा विभाग में होगी शिक्षकों की नियुक्ति– कुलपति प्रो० नरेंद्र सिंह भंडारी

*12 वें तीन दिवसीय राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन का द्वितीय दिवस। 
*स्थान- जी० बी० पंत राजकीय संग्रहालय, अल्मोड़ा।
*आयोजक संस्था- कुमाउनी भाषा, साहित्य व संस्कृति प्रचार समिति, कसारदेवी व ‘पहरू’ मासिक पत्रिका। 

मंचासीन अतिथि/साहित्यकार

     सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा में कुमाउनी भाषा विभाग में स्थाई शिक्षकों की नियुक्ति के प्रयास किये जाएंगे और विश्वविद्यालय में कुमाउनी भाषा के पठन-पाठन पर जोर दिया जायेगा। ये बातें अल्मोड़ा विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति प्रो० नरेंद्र सिंह भंडारी ने जी० बी० पंत राजकीय संग्रहालय, अल्मोड़ा में आयोजित हो रहे 12वें राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन के दूसरे दिन बतौर मुख्य अतिथि के रूप में कहीं। 

कार्यक्रम का शुभारंभ करते महंत त्रिभुवन गिरि महाराज

        इससे पूर्व मुख्य अतिथि की उपस्थिति में दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ किया गया। इसके पश्चात कुमाउनी कवि व पत्रकार नवीन बिष्ट ने अपने चित-परिचित अंदाज में कुमाउनी सरस्वती वंदना ‘इजुली दे वरदान’ प्रस्तुत की। 

कुलपति प्रो० नरेंद्र सिंह भंडारी जी का संबोधन

    कार्यक्रम में मुख्य अतिथि कुलपति प्रो० नरेंद्र सिंह भंडारी ने कहा कि हम अल्मोड़ा विश्वविद्यालय में कुमाउनी भाषा, साहित्य के पठन-पाठन को बढ़ावा देने हेतु प्रतिबद्ध हैं। अल्मोड़ा विश्वविद्यालय में कुमाउनी भाषा का अलग स्थाई विभाग बने और वहाँ स्थाई शिक्षकों की नियुक्ति हो। इस हेतु व्यापक स्तर पर प्रयास किये जायेंगे। सम्मेलन में उन्होंने अपनी मातृभाषा सोर्याली कुमाउनी में बात रखी और उनके अंदाज को सभी साहित्यप्रेमियों ने सराहा। 

व्याख्यान देते शिक्षक व आलोचक डॉ. कपिलेश भोज

       त्रिदिवसीय सम्मेलन के दूसरे दिन मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए शिक्षक व आलोचक डॉ. कपिलेश भोज ने कहा कि हिंदी के विकास में जो योगदान ‘सरस्वती’ मासिक पत्रिका ने दिया, आज वही योगदान कुमाउनी के विकास में ‘पहरू’ मासिक पत्रिका दे रही है। पहरू व डॉ. हयात सिंह रावत के प्रयासों से ही आज कुमाउनी में 800 से अधिक रचनाकार लेखन कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज कुमाउनी साहित्य को श्रेष्ठ समालोचकों की जरूरत है। जब साहित्यिक रचनाओं की आलोचना सही तरह से होगी, तभी श्रेष्ठ साहित्य सामने आ पायेगा। उन्होंने युवा लेखकों से आह्वान किया कि वे समालोचना हेतु आगे आएं। 

       उन्होंने भाषा, साहित्य व संस्कृति के प्रति क्षीण होती राजनीतिक इच्छाशक्ति के प्रति भी अपना आक्रोश व्यक्त किया और कहा कि जब तक हमारी सरकारें और शिक्षण संस्थान भाषा, साहित्य व संस्कृति के विकास हेतु कोई ठोस व स्थाई कदम नहीं उठाते, तब तक भाषा, संस्कृति का विकास होना संभव नहीं है। 

संबोधित करते नगरपालिका अध्यक्ष प्रकाश चंद्र जोशी

       इस अवसर पर नगरपालिका अध्यक्ष प्रकाश चंद्र जोशी ने कहा कि कुमाउनी साहित्यकारों को अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता फैलानी चाहिए और योग का प्रचार-प्रसार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि रचनाकारों को अपने लेखन में सरल कुमाउनी शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। 

विचार रखते समाजसेवी के. पीएस. अधिकारी

     कार्यक्रम में सेवानिवृत्त शिक्षक व समाजसेवी के० पीएस० अधिकारी ने कुमाउनी साहित्यकारों को पाठकों की रूचि का साहित्य लिखने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि ऐसा करने से रचनाकारों के समक्ष पाठकों का संकट उत्पन्न नहीं होगा। 

संचालन करते पहरू संपादक डॉ. हयात सिंह रावत

     सम्मेलन के दूसरे दिन कार्यक्रम का संचालन करते हुए समिति सचिव डॉ. हयात सिंह रावत ने समिति द्वारा किये जा रहे प्रयासों की जानकारी दी। उन्होंने यह भी कहा कि उत्तराखंड में निर्मित भाषा, संस्कृति सबंधी अकादमियों को सक्रिय रहकर कार्य करने की जरूरत है। जब से नई शिक्षा नीति निर्मित हुई है तब से भाषा, संस्कृति प्रेमियों में नई उम्मीद जगी है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में कुमाउनी, गढ़वाली भाषा अकादमी की स्थापना की जानी चाहिए।

      इस अवसर पर पत्रकार नवीन बिष्ट, अल्मोड़ा अर्बन बैंक के पूर्व अध्यक्ष आनंद सिंह बगडवाल, साहित्यकार त्रिभुवन गिरि ने कुमाउनी साहित्य के विकास में पहरू के प्रयासों को सराहनीय बताया।


सम्मेलन में पारित प्रस्ताव

1. उत्तराखंड में कुमाउनी व गढ़वाली भाषा अकादमियों की स्थापना हो। 
2. सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा में पूर्णकालिक कुमाउनी भाषा विभाग की स्थापना व स्थाई शिक्षकों की नियुक्ति हो।
3. प्रतिवर्ष लोकभाषाओं के रचनाकारों को पुस्तक प्रकाशन हेतु आर्थिक अनुदान दिया जाए। 
4. कुमाउनी, गढ़वाली भाषाओं के रचनाकारों हेतु राज्य स्तरीय पुरस्कारों की स्थापना हो। 
5. कुमाउनी, गढ़वाली को संविधान की 8वीं अनुसूची में स्थान मिले।


द्वितीय दिवस पर सम्मानित व पुरस्कृत होने वाले रचनाकार

सम्मानित होते साहित्य प्रेमी आनंद सिंह बगडवाल
सम्मानित होते नाटककार नवीन बिष्ट

      सम्मेलन के दूसरे दिन साहित्य प्रेमी श्री आनंद सिंह बगडवाल को ‘बहादुर सिंह बनौला स्मृति कुमाउनी साहित्य सेवी सम्मान’, कुमाउनी कवि नवीन बिष्ट को ‘गंगा अधिकारी स्मृति कुमाउनी नाटक लेखन पुरस्कार’, डॉ. पवनेश ठकुराठी को ‘भारतेंदु निर्मल जोशी कुमाउनी समालोचना लेखन पुरस्कार’ व ललित सिंह तुलेरा को ‘गोविन्द सिंह बिष्ट स्मृति कुमाउनी फिलम समीक्षा पुरस्कार’ प्रदान किये गए।

पुरस्कृत होते डॉ. पवनेश
पुरस्कृत होते युवा रचनाकार ललित तुलेरा

       सम्मेलन में डॉ. धाराबल्लभ पांडेय, दयानंद कठैत, डॉ. ललित जलाल, नीलम नेगी, मीनू जोशी, तफज्जुल खान, आनंद बल्लभ लोहनी, शिवदत्त पांडे, कृष्ण मोहन बिष्ट, नवीन चंद्र जोशी, शिवराज सिंह बनौला, डॉ. नवीन भट्ट, डॉ. संजीव आर्या, दिग्विजय सिंह बिष्ट, प्रमोद जोशी, किशन जोशी, चंदन नेगी, पी. सी. तिवारी, माया पंत, नवीन चंद्र पाठक, प्रताप सिंह सत्याल, राजेंद्र रावत, डॉ. चंद्र प्रकाश फुलोरिया, भास्कर भौर्याल, शंकर दत्त पांडे, महेंद्र ठकुराठी, शशि शेखर जोशी, रूप सिंह बिष्ट, नारायण सिंह थापा, महेंद्र सिंह, पूरन चंद्र तिवारी, गिरीश चंद्र मल्होत्रा, जे सी दुर्गापाल, तारारादत्त तिवारी, लक्षिता बिष्ट, रूचि बिष्ट आदि समेत अनेक साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे। 

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