कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

Author: डॉ० पवनेश

पहाड़ की नारी

पहाड़ की नारी पहाड़ पर पग धरते-धरते पहाड़ पर रंग भरते-भरते पहाड़-पहाड़ करते-करते पहाड़ की नारी पहाड़ पर रहते-रहते पहाड़ को सहते-सहते पहाड़-पहाड़ कहते-कहते पहाड़ की नारी पहाड़ पर नमक बोते-बोते पहाड़ पर पलक धोते-धोते पहाड़-पहाड़ ढोते-ढोते पहाड़ की नारी पहाड़ पर हंसते-रोते पहाड़ को खोते पाते पहाड़-पहाड़ होते-होते पहाड़ की नारी पहाड़ हो ही

दोस्ती

दोस्ती गर्मियों के दिन थे, गाँव के बच्चों ने नदी में नहाने की योजना बनाई। रविवार को सभी बच्चे नदी की ओर चल दिए। जब सभी बच्चे नदी में नहा रहे थे, ठीक उसी समय मोहन का पैर फिसल गया और वह बहाव में बहने लगा। मोहन को बहते देख राकेश ने उस ओर छलांग

खामोशियाँ कुछ कह रही हैं

     खामोशियाँ कुछ कह रही हैं “देखो बेटा ! कितनी खामोशी है यहाँ ! तुम्हें लगता नहीं ये खामोशियाँ कुछ कह रही हैं।” देबू काका ने कहा। “हाँ, काका ! मैंने सपने में भी नहीं नहीं सोचा था कि पांच सालों में गाँव इतना बदल जायेगा। चारों ओर सन्नाटा ही सन्नाटा पसरा हुआ है।”

अब्राहम लिंकन का पत्र

बेटे के अध्यापक को अब्राहम लिंकन का पत्र अब्राहम लिंकन (12 फरवरी, 1809- 15 अप्रैल 1865) अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति थे। इनका कार्यकाल 1861 से 1865 तक था। ये रिपब्लिकन पार्टी से थे। उन्होंने अमेरिका को उसके सबसे बड़े संकट – गृहयुद्ध से निजात दिलाई तथा अमेरिका में दास प्रथा के अंत का श्रेय भी

छ्योड़ि पगली गै

      छ्योड़ि पगली गै बाँजक हरिया-भरिया जङ्व में सरसराट-फरफराट करनीं ठंडि-ठंडि हाव चलणैछि। घुघुतीकि घूर-घूर हौर चाड़-पिटांङोकि चड़-चड़, पड़-पड़ वातावरण कैं मोहक बणूंनैछि। याँ जानवर भौतछि चाड़-पिटांङ भौत छि लेकिन मनखि जातिक दूर-दूर तक क्वे निशान नै छि। ये जङवक दुहरि तरफ पारि डाण में एक गौं छि। ये गौं का बुड़-बाड़ी कूँछि कि ये

जिंदगी का हश्र

            जिंदगी का हश्र जिंदगी-जिंदगी कहता रहा, मगर जिंदगी को कभी जान न पाया। करता रहा दुनिया की बातें, मगर खुद को कभी पहचान न पाया।   कभी दौलत के पीछे कभी शोहरत के पीछे हर पल-हर दिन भागता रहा पर मुस्कुराने का कोई सामान न पाया। जिंदगी- जिंदगी कहता

जिंदगी की रीत

             जिंदगी की रीत कहीं पर है नफरत, कहीं पर है प्रीत साथिया बड़ी अजब-सी है, जिंदगी की रीत साथिया ।   कोई हंसता है, महलों के पीछे कोई तड़पता है, आसमां के नीचे कहीं पर जागते हैं, अरमां रात भर कहीं पर है नींद साथिया। बड़ी अजब-सी है, जिंदगी

हार की खुशी

                      हार की खुशी उसे जीतने की आदत थी। उसे लगता था कि खुशी केवल जीतने से मिलती है। उस दिन जब वह प्रेमिका के चेहरे पर एक मुस्कुराहट देखने के लिए हार गया, तब उसे एहसास हुआ कि कभी-कभी हार की खुशी जीत की खुशी

शिक्षक : संसार के निर्माता

शिक्षक इस जगत के असली निर्माता हैं “जय शिक्षक जय ज्ञान के दाता जय हो तुम्हारी जय जय हो।” भक्तिकालीन संत कबीरदास जी ने कहा है कि गुरू सम दाता जग में कोई नहीं। अर्थात गुरू के समान दाता यानी देने वाला कोई नहीं है। गुरू अर्थात शिक्षक ही है जो अपने ज्ञान से व्यक्ति

मंजिल की ओर

मंजिल की ओर रमेश कक्षा तीन में पढ़ता था। वह पढ़ने में अत्यधिक होशियार था। इसी वजह से रमेश के पिताजी उसे कक्षा तीन से सीधे कक्षा पांच में एडमिशन दिलाना चाहते थे। जब रमेश ने तीसरी कक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की तब रमेश के पिता ने विद्यालय के प्रधानाचार्य जी से कहा-
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