कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

Author: डॉ० पवनेश

गांधी और शास्त्री जयंती, 2019

जी० आई० सी० नाई में गाँधी जयंती और शास्त्री जयंती हर्षोल्लास से मनाई गई            अल्मोड़ा, आज दिनांक 2 अक्टूबर, 2019 को जी० आई० सी० नाई के विद्यालय सभागार में गांधी व शास्त्री जयंती समारोह उल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम की मुख्य अतिथि उत्तराखंड की उदीयमान स्टेज एंकर

किरौला जी को संपादक रत्न सम्मान

उदय किरौला को मिला ‘संपादक रत्न’ सम्मान  नाथद्वारा (राजस्थान)।  साहित्य मंडल श्रीनाथद्वारा हिंदी दिवस के अवसर पर 14, 15 तथा 16 सितंबर, 2019 को आयोजित हिंदी लाओ देश बचाओ समारोह के तीसरे दिन उत्तराखंड से प्रकाशित बच्चों की  त्रैमासिक पत्रिका बालप्रहरी तथा मासिक ज्ञान विज्ञान बुलेटिन के संपादक उदय किरौला को’ संपादक रत्न की उपाधि

वीरों के गीत लिखूंगा

वीरों के गीत लिखूंगा     ना सत्ता, ना सिंहासन, ना अमीरों के गीत लिखूंगा।  मैं जब भी कलम चलाऊंगा, वीरों के गीत लिखूंगा।।   भीषण गर्मी, जाड़े में जो,  सरहद पर हैं डटे हुए।  राष्ट्र हित की चाहत में जो,  अपनों से हैं कटे हुए।  मैं तो ऐसे बलशाली,  धीरों के गीत लिखूंगा। मैं

ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है

ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है तेरी याद में निशदिन रह-रह अकुलाता है,  ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।    अनगिनत ख्वाबों को संग में ले चले उड़ते उड़ते तुम इतनी दूर उड़ चले वापस आना भी चाहो तो मन जलाता है ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।   दादी मां के

हम बच्चे हैं हमेें मुस्कुराने दो

हम बच्चे हैं हमेें मुस्कुराने दो एक लंबा अरसा बीत गया किसी बच्चे को नहीं देखे हुए। आजकल के बच्चों को बच्चा कौन कहेगा भला। तीन साल की उम्र में ही सयाने हो जाते हैं। ऐसी ऐसी बातें करने लगते हैं कि बड़े भी दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर हो जाते हैं। आजकल के बच्चों

एक बिल्ले की प्रेमकथा

एक बिल्ले की प्रेमकथा         “म्याऊँ… म्याऊँ…. बिल्लो रानी कहो तो अभी जान दे दूं….”- डब्बू बिल्ला पूसी बिल्ली को मनाने के लिए यह गीत गा रहा था, लेकिन पूसी पर गीत का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था। तब डब्बू बिल्ले ने गीत के कुछ शब्दों में परिवर्तन करके यह गीत

लोकपर्व खतड़ुवा: पशुधन की समृद्धि का पर्व है ना कि किसी राजा की विजय का।

लोकपर्व खतुड़वा: पशुधन की समृद्धि का पर्व है ना कि किसी राजा की विजय का      कुमाऊँ में लोक और जनमानस की समृद्धि की कामना हेतु अनेक पर्व मनाये जाते हैं। इन्हीं लोकपर्व में एक पर्व है खतड़ुवा।          खतुड़वा पर्व यद्यपि पशुधन की समृद्धि की कामना हेतु मनाया जाता है,

मेरा गाँव

मेरा गाँव   पंछी गा रहे हैं शाखों पर शबनम नाच रही है पत्तों पर   भंवरे मस्त हैं फूलों पर तितलियाँ झूल रही हैं झूलों पर   डाकिया ले जा रहा है पत्र कच्ची पुलिया पर चलकर नदी के उस पार   बारात गुजर रही है सरसों के खेतों से होकर गूंज रही है

एक फौजी की प्रेम कहानी

 एक फौजी की प्रेम कहानी मुझे भरोसा है अपने ईष्ट देव पर। वो एक दिन जरूर वापस आयेंगे। कुमाऊँ रेजिमेंट में भर्ती हुए अभी उनको पूरे ढाई साल भी नहीं हुए हैं और आर्मी वाले कहते हैं कि गायब हो गये ! अरे भाई, ऐसे ही गायब हो जाता कोई सेना से। राजू की ड्यूटी

मंगल ग्रह पर

     मंगल ग्रह पर वैज्ञानिक डॉ० राणा मंगल ग्रह पर पहुँचे। उन्होंने पाया कि पृथ्वी की तरह वहाँ भी जीवन है। डॉ० राणा को खोज करते समय वहाँ आदिमानव जैसे तीन लोग मिले। वो अजीब भाषा में बोल रहे थे, लेकिन लैंग्वेज कन्वर्टर मशीन के माध्यम से डा० राणा उनकी बात समझ पा रहे
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