कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

लोकगायक प्रहलाद मेहरा: जीवन एवं लोकसंगीत

लोकगायक प्रहलाद मेहरा: जीवन एवं लोकसंगीत 

आज समाचार चैनलों के माध्यम से यह सुनने को मिला कि ह्दयगति रूकने से कुमाउनी लोकगायक प्रहलाद मेहरा का निधन हो गया। यह स्तब्ध करने वाली खबर है। मेहरा जी का जाना एक ऐसे लोकगायक का जाना है जिसने कुमाउनी लोकसंगीत को अपनी जमीन से बिछुड़ने नहीं दिया। कुमाउनी के कालजयी लोकगायक को विनम्र श्रद्धांजलि।

       


              प्रहलाद सिंह मेहरा

जन्मतिथि: 4 जनवरी, 1971
जन्मस्थान: महरूड़ा- चामीगांव, नाचनी (पिथौरागढ़) 
पिता: श्री हेम सिंह
माता: श्रीमती लाली देवी
शिक्षा: इंटरमीडिएट
लोकगायक श्रेणी: आकाशवाणी से लोकगायन में बी हाई श्रेणी। 
सांस्कृतिक दल: जन जागृति सांस्कृतिक कला समिति (1997)
पहला ऑडियो कैसिट : पतरौला दाज्यू (1989)
गीतों का संकलन: म्यर सदाबहार लोकगीत (2016) 
निधन: 10 अप्रैल, 2024


      लोकगायक प्रहलाद सिंह मेहरा का जन्म 4 जनवरी, 1971 को पिथौरागढ़ जनपद के चामीगांव के महरूड़ा (नाचनी) नामक स्थान में हुआ था। आपके पिता का नाम हेम सिंह और माता का नाम लाली देवी है। मेहरा जी ने इंटरमीडिएट तक की शिक्षा ग्रहण की और लोकगायन में रूचि होने के कारण आपने गायन को ही आजीविका का माध्यम बनाया। 

     मेहरा जी विद्यार्थी जीवन से ही गीत गायन में रूचि रखते थे। 187-88 के दौरान नाचनी इंटर कॉलेज के हिंदी प्रवक्ता मथुरादत्त जोशी ने इन्हें प्रेरित किया। बाद में आकाशवाणी अल्मोड़ा के चंदन सिंह बोरा और लोकगायक चंद्र सिंह राही के संपर्क में रहने से इनकी गायकी में निखार आया। 

      प्रहलाद सिंह मेहरा ने आकाशवाणी से बी हाई ग्रेड में स्वर परीक्षा उत्तीर्ण की। आपके अनेक गीतों का प्रसारण आकाशवाणी व दूरदर्शन से हुआ। मेहरा जी के बीस से अधिक आडियो-वीडियो कैसिटों में 150 से अधिक गीत प्रकाश में आये। तदुपरांत यूट्यूब के प्रचलन के कारण इनके अनेक गीत यूट्यूब वीडियोज के माध्यम से सामने आए। 

   लोकगायन के क्षेत्र में गोपाल बाबू गोस्वामी को प्रेरणास्रोत मानने वाले प्रहलाद मेहरा का पहला आडियो कैसिट पतरौला दाज्यू शीर्षक से सन 1989 में सामने आया। इसके निर्माता जै कालिका मैया छाप कैसिट, हिरदा कुमाउनी थे। इसके बाद इनके रबड़बैंड, ऋतुरैंण, शैलस्वर, छिलबिलाट, खिमुली पधानी, जलेबिक डाब, पारू पराणी, नीलमा ओ नीलमा, मयाली मुखड़ी, आपण मुलुक त्वैकणी घुमूलो, झुमक्याली आदि आडियो कैसिट निकले। 

   मेहरा जी ने 1997 में जन जागृति सांस्कृतिक कला समिति नाम से एक सांस्कृतिक दल भी बनाया। इस दल में 24-25 लोक कलाकार काम करते थे। इस दल ने लखनऊ, चंडीगढ़, राजस्थान, कुल्लू मनाली, उत्तराखंड आदि अनेक स्थानों में लोक सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुतियाँ दीं। 

 

     यू ट्यूब पर मेहरा जी के छक्क छिना, शेरू मर्तोलिया, रूमा बिजुली झुम, रंगभंग, ऐजा मेरा दानपुरा, पंछी उड़ी जानी, देवीधूरा बग्वाल, जी रया जागि रया, रंग में होली, पहाड़ै की चेली, चांदी बटना, जलेबिक डाब, सौणेकी रात, जय सुंदरी नाग आदि गीतों के वीडियो मौजूद हैं। इनके गीतों को चांदनी इंटरप्राइजेज, छिला दिगा प्रोडक्शन, नीलम कैसेट्स, हिरदा कैसेट्स आदि ने प्रकाशित किया है।

     इन्होंने गोपी भिना आदि कुछ कुमाउनी फिल्मों के गीत भी गाए। मेहरा जी को लोकगायन हेतु स्व. मोहन उप्रेती लोक संस्कृति सम्मान (2013), उत्तराखण्ड सिने अवार्ड द्वारा सर्वश्रेष्ठ लोक गायक सम्मान (2016) आदि अनेक सम्मानों से अलंकृत किया गया है।  

     प्रहलाद मेहरा की कुमाउनी लोकसंगीत में वही भूमिका रही है, जो गढ़वाली लोकसंगीत में नरेंद्र नेगी की। प्रहलाद मेहरा ने कुमाउनी में विविध विषयों के गीत गाए। उनके गीतों का एक संकलन ‘म्यर सदाबहार लोकगीत’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। कुमाउनी लोक संस्कृति के प्रति चिंतित व सजग रहने वाले और कुमाउनी लोकसंगीत का विद्यालय खोलने की ख्वाहिश रखने वाले हंसमुख और मधुरभाषी व्यक्तित्व के धनी लोकगायक का निधन होना, निश्चित रूप से कुमाउनी लोकसंगीत की अपूरणीय क्षति है। 

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