उसे जीतने की आदत थी। उसे लगता था कि खुशी केवल जीतने से मिलती है। उस दिन जब वह प्रेमिका के चेहरे पर एक मुस्कुराहट देखने के लिए हार गया, तब उसे एहसास हुआ कि कभी-कभी हार की खुशी जीत की खुशी से कहीं अधिक सुखदायक होती है।
डॉ० पवनेश उत्तराखंड के बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न युवा हैं। ये शिक्षा, साहित्य और संस्कृति के प्रति समर्पित हैं। हिंदी और कुमाउनी दोनों मातृभाषाओं से इन्हें विशेष लगाव है। ये शिक्षण कार्य से जुड़े हैं और हिंदी और कुमाउनी में 27 से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं। कुमाऊं विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में पीएचडी उत्तीर्ण पवन सर ने पत्रकारिता में भी डिप्लोमा हासिल किया है।