कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

लाकडाउन के बाद सांस्कृतिक नगरी में पहली बार आयोजित हुआ हिंदी कवि सम्मेलन

लाकडाउन के बाद सांस्कृतिक नगरी में पहली बार आयोजित हुआ हिंदी कवि सम्मेलन

   अल्मोड़ा, देवभूमि उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला एवं विज्ञान शोध समिति के तत्वावधान में हिंदी कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ। 

दीप प्रज्ज्वलित करते मुख्य अतिथि त्रिभुवन गिरि महाराज

    कवि सम्मेलन का शुभारंभ अध्यक्ष व मुख्य अतिथि द्वारा सरस्वती के चित्र पर दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता मुख्य अतिथि साहित्यकार श्री त्रिभुवन गिरी महाराज ने की और विशिष्ट अतिथि रहे कवि एवं पूर्व विभागाध्यक्ष ( अंग्रेजी विभाग ) कुमाऊं विश्वविद्यालय, परिसर अल्मोड़ा के डॉ. सैैैयद अली हामिद। कार्यक्रम में हल्द्वानी, बाजपुर, अल्मोड़ा, जैंती, बागेश्वर, नैनीताल आदि स्थानों के कवियों ने प्रतिभाग किया।

विशिष्ट अतिथि डॉ. हामिद का स्वागत

       इस कवि सम्मेलन में शगुफ्ता, चन्द्रा उप्रेती, मनीष पन्त, त्रिभुवन गिरि, डॉ. हामिद, दीपांशु कुँवर, मयंक कुमार, रोहित केसरवानी, नीरज पंत, विवेक बादल बाजपुरी, ललित तुलेरा, पवनेश ठकुराठी, त्रिवेंद्र जोशी, विनीता जोशी, मीना पांडे, नीरज बावड़ी आदि कवियों द्वारा काव्य पाठ किया गया।

कविता सुनाती चंद्रा उप्रेती

    सर्वप्रथम कवयित्री शगु़फ्ता ‘कशिश’ द्वारा ‘मेरी हर शब्द का सुनहरा ख्वाब’ एवं ‘जिंदगी की मुश्किलें मेरा कुछ न बिगाड़ पाएंगी’ कविताएँ प्रस्तुत की गईं। चन्द्रा उप्रेती ने ‘कितना प्यारा राज्य हमारा उत्तराखंड’, ‘किसी के दुःख में साथ निभाना अच्छा लगता है’ कविताएं सुनाईं। पवनेश ठकुराठी ने ‘तेरी याद में रह-रह निस दिन अकुलाता है। ओ प्रवासी पंछी तुझे गांव बुलाता है’ कविता सुनाकर जहाँ रसिक समाज के समक्ष गांवों की वेदना रखी वहीं दूसरी ओर उन्होंने ‘एक पति की व्यथा कथा’ कविता सुनाकर श्रोताओं को हास्य के समंदर में गोता लगाने के लिए मजबूर किया।

कविता पाठ करते त्रिवेंद्र जोशी

     हल्द्वानी से आये कवि त्रिवेंद्र जोशी ने आपदा की विभीषिका को दर्शाते हुए कहा कि आपदा के कहर से देवभूमि सिहर गयी, सोचिये प्रकृति एक बार क्या इशारा कर गयी। दीपांशु कुंवर ने कहा ‘टोपी वाले इंसानों से डर लगता है, देश में बैठे गद्दारों से डर लगता है’। कवि मयंक कुमार ने अपनी अभिव्यक्ति कुछ इस तरह की- ‘मैं भोर का उगता सूरज और डूबती खूबसूरत शाम होना चाहता हूं।” 

कविता सुनाते ललित तुलेरा

     रोहित केसरवानी ने कहा ‘प्रकृति का तांडव होता है सर्वलोक तब रोता है’। विवेक बादल बाजपुरी ने अपनी कविता में देवभूमि के देवतत्व को दर्शाते हुए कहा- ‘वही भोले की नगरी है, वही कान्हा का वृन्दावन’। युवा कवि ललित तुलेरा ने कहा ‘पहाड़ अब शिक्षित हो चुका है, अब जागरूक हो चुका है’।

 

मुक्तक सुनाते मनीष पंत

     कवि मनीष पंत ने मुक्तक सुनाकर वाहवाही लूटी-‘अदावत में उठी आवाज को यूं छांट देता है लुटेरा लूट के दो चार सिक्के बांट देता है’। विनीता जोशी ने अपनी कविता में दुआ मांगी कि ‘बहे ना सुहागन की आँखों का काजल, महफूज़ रखना हर एक माँ का आँचल’।

कविता पाठ करतीं कवयित्री मीना पांडे

कवयित्री किरन पंत ‘वर्तिका’ का काव्य पाठ ( देखें वीडियो 👆 🎥 )

        कवयित्री मीना पांडे ने पहाड़ की पीड़ा व्यक्त की- ‘जड़ों से टूट ठूंठ रह जाता है, आदमी विस्थापितों के लिये बने दस्तावेजों में कैद’। किरन पंत द्वारा ‘जब आकाश धरा से कहता है तेरी कोख में जब कोई रोता है’ गीत सुनाया गया।

कविता पाठ के दौरान त्रिभुवन गिरि महाराज

      डॉ. हामिद ने मौलिक कविता ‘इन हिंदी’ सुनाने के साथ- साथ अनुदित कविता का भी पाठ किया। कवि नीरज पंत ने मोहक अंदाज में श्रृंगारिक गीत सुनाकर रसिक समाज को रस में डूबने के लिए विवश किया। त्रिभुवन गिरि जी ने अपनी लोकप्रिय कविता ‘बांजि कुड़िक पहरू’ और खंडकाव्य ‘क्या पहचान प्रिया की होगी’ की चुनिंदा काव्य पंक्तियों का पाठ सुनाकर कवि सम्मेलन को और अधिक रसमय बनाया। 

सम्मानित होते कवि नीरज पंत
सम्मानित होती कवयित्री शगुफ्ता
सम्मानित होते रोहित केसरवानी

       कार्यक्रम के अंत में सभी कवियों को स्मृति चिन्ह व पुस्तकें भेंट कर सम्मानित किया गया। कवि सम्मेलन का का संचालन मीना पांडे और संयोजन किरन पंत ‘वर्तिका’ द्वारा किया गया।

कवियों की सामूहिक तस्वीर

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