कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

राष्ट्रीय पर्व घोषित हो हरेेेेला ( Harela: National festival should be declared )

लोकपर्व: हरेला-

राष्ट्रीय पर्व घोषित हो हरेेेेला

 समय रहते मनुज यदि अब भी,
पर्यावरण हित न सोचेगा।
घृणित अक्षरों से लिखा इतिहास
उसको धिक-धिक कह नोचेगा।।

       शशांक मिश्र भारती की उपर्युक्त पंक्तियां पर्यावरण के प्रति मनुष्य को सचेत करती हैं। आधुनिक समय में पर्यावरण तेजी से बदल रहा है और पर्यावरण असंतुलन के कारण भयावह स्थितियां उत्पन्न हो रही हैं। जल, जंगल, जमीन तीनों पर संकट मंडरा रहा है। वृक्षों के अंधाधुंध दोहन और अनियोजित विकास के कारण पर्यावरण में असंतुलन पैदा हो रहा है। विकास के नाम पर वृक्षों के कटान ने समस्त मानव जाति के समक्ष खतरा उत्पन्न कर दिया है। भारत ही नहीं वरन विश्व के तमाम देशों में वनों का विनाश तेजी से हो रहा है। धरती पर पेयजल संकट और वायुमंडल के गरमाने का कारण भी पृथ्वी पर हो रहा वन विनाश ही है। वन विनाश के कारण ही ब्राजील के विश्व प्रसिद्ध वर्षा वनों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। ये वर्षा वन धरती के फेफड़े कहे जाते हैं और पूरे विश्व के पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। इसके अलावा वृक्षों के कटान के कारण धरती और समुद्री क्षेत्रों में निरंतर गरमाहट उत्पन्न हो रही है। समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण समुद्री जीवों का जीवन खतरे में पड़ गया है। तापमान में तेजी से हो रही बढ़ोत्तरी के कारण जीवों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। करोड़ों साल पर पहले धरती से डायनासोरों के विलुप्त होने का कारण भी धरती के तापमान में वृद्धि होना ही था। वस्तुतः तब यह तापमान वृद्धि धरती पर एक उल्कापिंड के गिरने से हुई थी। इसी तरह धरती पर तापमान के कारण हजारों जीवधारियों, कीट पतंगों, पादपों एवं वनस्पतियों के ऊपर संकट घिर आया है। ओजोन परत के निरंतर क्षरण होने से धरती के तापमान में वृद्धि हो रही है और जीव- जंतुओं के भविष्य पर खतरा मंडरा रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि 40 वर्ष बाद धरती का तापमान 3.4 डिग्री सेल्सियस और बढ़ जायेगा, जिससे धुर्वों पर लाखों वर्षों से पड़ी बर्फ पिघलनी शुरू हो जायेगी। इस बर्फ के पिघलने से समुद्री भागों के जल में अपार वृद्धि होगी और समुद्री भागों में स्थित द्वीप पानी में डूबने लगेंगे। यह धरती पर किसी प्रलय से कम नहीं होगा। 


 

       इसके अलावा वृक्षों के कटान के कारण धरती के नम भूमि क्षेत्र तेजी से घट रहे हैं, जिसके कारण धरती पर पानी और पर्यावरण असंतुलन की समस्या उत्पन्न हो गई है। धरती पर ऊष्णता बढ़ने का यह भी एक महत्वपूर्ण कारण है। वृक्ष कटान और वनों की कमी के कारण ही ध्रुव प्रदेशों की बर्फ तेजी से पिघल रही है। धरती के मौसम में लगातार परिवर्तन के संकेत मिल रहे हैं। विश्व की वनस्पतियां और जीवधारी अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहे हैं। जीव जंतुओं और पादपों- वनस्पतियों की सैकड़ों प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। रेड डाटा बुक के आंकड़े इसके प्रमाण हैं। वृक्षों के दोहन के कारण ही भारत में बांज और बुरांश के जंगलों पर खतरा मंडरा रहा है। पिथौरागढ़ के धारचूला में पाई जाने वाली औषधि यारसा गंबू और हिमाचल प्रदेश के टेक्सस बकाटा नामक औषधिय पौधों के निरंतर दोहन से इनके अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है।इसी तरह जीवों में गिद्ध, कस्तूरी मृग, समुद्री कछुआ, भारतीय बाघ आदि के अस्तित्व का संकट बना हुआ है। भारतीय गिद्ध तो लगभग समाप्त हो चुके हैं।यही हालत विदेशों के वन्य जीवों और वनस्पतियों की भी है। ऐसे पर्यावरणीय संकट के दौर में हरेला पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है।

   

       हरेला प्रमुख रूप से उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र का त्योहार है। प्रतिवर्ष श्रावण मास के पहले दिन यह त्यौहार मनाया जाता है। हरेले से 10 दिन पहले किसी बर्तन में मिट्टी डालकर धान, मक्का, मटर, मास, चना आदि 5 या 7 या 9 प्रकार के अनाज बोए जाते हैं। 10वें दिन हरेले को काटकर गौरा- महेश्वर, गणेश- कार्तिकेय की मूर्तियों पर चढ़ाया जाता है और उसके बाद घर के लोगों के सिर पर रखा जाता है। इतना ही नहीं इस दिन कलम की हुई शाखों और नये पौधों को रोपने का भी रिवाज है। इस प्रकार इस त्यौहार का धार्मिक से अधिक पर्यावरणीय महत्व है। यह त्यौहार हरियाली के आगमन का भी सूचक है। हरेला जैसा कि नाम ही से विदित होता है हरा- भरा। इस प्रकार धरती को हरा- भरा रखने का संदेश हरेला देता है। यही कारण है कि हरेला अंतरारष्टीय महत्व का पर्व है। पर्यावरण पतन के इस दौर में इसकी महत्ता और भी अधिक बढ़ जाती है। यह पर्व वृक्षारोपण आंदोलन को बल प्रदान करने वाला पर्व है। राज्य सरकार द्वारा इस पर्व को व्यापक रूप में मनाने का जो निर्णय लिया गया है,वह सराहनीय है। निश्चित रूप से यह पर्व पर्यावरण संरक्षण में अपनी अग्रणी भूमिका निभा सकता है। राज्य सरकार को इसके पर्यावरणीय महत्व को देखते हुए इसे राष्ट्रीय पर्व घोषित करने की मांग केंद्र सरकार से करनी चाहिए यानीकि हरेला को राष्ट्रीय पर्व घोषित किया जाना चाहिए।

 आप सभी को हरेला पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।आइये वृक्षारोपण कर इस धरती को हरा-भरा बनायें।

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