लोकपर्व: हरेला- राष्ट्रीय पर्व घोषित हो हरेेेेला  समय रहते मनुज यदि अब भी, पर्यावरण हित न सोचेगा। घृणित अक्षरों से लिखा इतिहास उसको धिक-धिक कह नोचेगा।।        शशांक मिश्र भारती की उपर्युक्त पंक्तियां पर्यावरण के प्रति मनुष्य को सचेत करती हैं। आधुनिक समय में पर्यावरण तेजी से बदल रहा है और पर्यावरण असंतुलन