मां नंदा की महिमा गाथा- माँ नंदा चालीसा
प्रिय पाठकों, क्या आपको पता है गोस्वामी तुलसीदास जी रचित ‘हनुमान चालीसा’ की तर्ज पर ‘माँ नंदा चालीसा’ की भी रचना की गई है। आइये जानते हैं इस पुस्तक के विषय में-
पुस्तक के विषय में-
माँ नंदा चालीसा
‘माँ नंदा चालीसा’ की रचना प्रसिद्ध रंगकर्मी ब्रजेंद्र लाल साह ने की। साह जी ने इस पुस्तक की रचना माँ नंदा की प्रेरणा से मात्र 2 घंटे की अवधि में माँ नंदा परिसर में परिक्रमा करते हुए नंदा राजजात सन् 2000 में की थी।ब्रजेंद्र लाल साह ने ‘माँ नंदा चालीसा’ को दोहा- चौपाई छंद में लिखा है। नंदा चालीसा की शुरुआत उन्होंने चार दोहों से की है। प्रारंभिक दोहा निम्न है-
जय नंदा जय पार्वती, जय गिरिराज कुमारि।
जय महिषासुर मर्दनी, चंड-मुंड असुरारि।
चार दोहों के पश्चात् वे चौपाई के माध्यम से रचना को विस्तार देते हैं और माँ नंदा की स्तुति करते हुए लिखते हैं-
जय माँ नंदे जग हितकारी।
जयति पार्वती शैल-कुमारी।।
रूप अनेक तुम्हारे छाए।
उन सबको हम शीश नवाएं।।…..
‘नंदा चालीसा’ का समापन भी वे चार दोहों के साथ करते हैं। अंतिम दोहा निम्न है-
जिसको भी कंठस्थ हो, यह देवी-आख्यान।
कृपा दृष्टि उस पर करें, नंदा देवि महान।।
‘माँ नंदा चालीसा’ पुस्तक में एक श्री नंदा भजन व श्री नंदा आरती भी दी गई है। नवरात्रि के अवसर पर भक्तों द्वारा इस पुस्तक को समय-समय पर प्रकाशित कर निशुल्क प्रसारित किया जाता है।
रचनाकार के विषय में-
ब्रजेंद्र लाल साह
रंगकर्मी व रचनाकार ब्रजेंद्र लाल साह का जन्म 13 अक्टूबर, 1928 को अल्मोड़ा में हुआ था। आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण की और विशेषकर हिंदी कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास आदि विधाओं में अपनी लेखनी चलाई। शैलसुता, अष्टावक्र और गंगानाथ इनकी प्रमुख हिंदी पुस्तकें हैं। आपके द्वारा बलिदान, कसौटी, आबरू, एकता, सुहाग दान, चौराहे की आत्मा, चौराहे का चिराग, शिल्पी की बेटी, पर्वत का स्वप्न, रेशम की डोर, रितुरैंण, खुशी के आंसू, पहरेदार, भस्मासुर, राजुला- मालूशाही आदि हिंदी नाटकों के लेखन व मंचन के अलावा कुमाउनी व गढ़वाली रामलीला का लेखन व मंचन किया गया।
सुप्रसिद्ध कुमाउनी गीत ‘बेड़ू पाको बारामासा’ की रचना भी आपके ही द्वारा की गई। आपकी कुमाउनी कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं में यत्र-तत्र बिखरी पड़ी हैं। आपने आकाशवाणी के लिए भी निरंतर लेखन किया। आपने सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के गीत एवं नाटक प्रभाग में विभिन्न पदों पर कार्य किया। सन् 2004 में साहजी इस लौकिक संसार को छोड़कर चल दिए।
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