ब्रजेंद्र लाल शाह का कुमाउनी गीतिनाट्य: श्रीरामलीला ( Kumauni opera : ShriRamlila )
कुमाउनी गीतिनाट्य: श्रीरामलीला
Kumauni opera : ShriRamlila
साथियों, आज हम चर्चा करते हैं महत्वपूर्ण रचनाकार श्री ब्रजेंद्र लाल साह जी द्वारा रचित कुमाउनी गीतिनाट्य ‘श्रीरामलीला’ के विषय में।
गीतिनाट्य के विषय में-
श्रीरामलीला
श्रीरामलीला उत्तराखंड के मशहूर रंगकर्मी श्री ब्रजेंद्र लाल शाह जी द्वारा रचित गीति नाट्य ( संगीत नाटक ) है। इसके प्रथम संस्करण का प्रकाशन सन् 1982 में डा० शेर सिंह पांगती जी के प्रकाशन रामलीला कमेटी, दरकोट (मुनस्यारी) से हुआ है। यह गीति नाट्य उत्तराखंड की लोक धुनों पर रचा गया है। इस गीतिनाट्य में कुल 09 अंक हैं। गीतिनाट्य में देव स्तुति, श्रीराम जन्म से लेकर राम के रावण को मारकर अयोध्या आगमन तक की पूरी कथा का चित्रण है। गीतिनाट्य गीतात्मक है और इसमें कुमाउनी, गढ़वाली लोक धुनों का प्रचुरता से प्रयोग किया गया है।
उदाहरण के रूप में जब श्रीराम वन जाने के लिए तैयार होते हैं उसी समय सीता के साथ उनका संवाद होता है-
धुन- तारू छुआ बो- टिहरी, विलंबित लय।
सीता- तुम बण जाला, मैं यती के करूंलो,
म्यरा स्वामी, मैं यकली यती मरि जूंलो।
हो म्यरा स्वामी……
धुन- न्यौली- सोर्याली
सीता– बिन पानी की गाड़ स्वामी, बिन सूरिजा दीन।
बिन मैंसे को स्पैणीं हुणी, कै जागा न्हैं तीन।।
धुन- सुवा रे सुवा बनखंडी सुवा, अल्मोड़ा खास
राम- सुण मेरी प्यारी जनक दुलारी,
तू सीता बण नी आली…
डाना रे धुरा गाड़ ग्यारह
गैल पातला पाणि सितारा
कसी क्यै हिटली क्यै खाली,
तू सीता बण नी आली………!
रचनाकार के विषय में-
ब्रजेंद्र लाल साह
रंगकर्मी व रचनाकार ब्रजेंद्र लाल शाह का जन्म 13 अक्टूबर, 1928 को अल्मोड़ा में हुआ था। आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण की और विशेषकर हिंदी कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास आदि विधाओं में अपनी लेखनी चलाई। शैलसुता, अष्टावक्र और गंगानाथ इनकी प्रमुख हिंदी पुस्तकें हैं। आपके द्वारा बलिदान, कसौटी, आबरू, एकता, सुहाग दान, चौराहे की आत्मा, चौराहे का चिराग, शिल्पी की बेटी, पर्वत का स्वप्न, रेशम की डोर, रितुरैंण, खुशी के आंसू, पहरेदार, भस्मासुर, राजुला- मालूशाही आदि हिंदी नाटकों के लेखन व मंचन के अलावा कुमाउनी व गढ़वाली रामलीला का लेखन व मंचन किया गया।
सुप्रसिद्ध कुमाउनी गीत ‘बेड़ू पाको बारामासा’ की रचना भी आपके ही द्वारा की गई। आपकी कुमाउनी कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं में यत्र-तत्र बिखरी पड़ी हैं। आपने आकाशवाणी के लिए भी निरंतर लेखन किया। आपने सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के गीत एवं नाटक प्रभाग में विभिन्न पदों पर कार्य किया। सन् 2004 में शाहजी इस लौकिक संसार को छोड़कर चल दिए।
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ब्रजेंद्र लाल साह जी एक कुशल रंगकर्मी , कुशल रचनाकार थे।
डॉ० पवनेश जी एसे महान रचनाकार के बारे में नयी पीढ़ी को भी अवगत कराना काबिले तारीफ़ है।