पिथौरागढ़ की विशिष्ट लोक नाट्य परंपरा: हिलजात्रा
पिथौरागढ़ की विशिष्ट लोक नाट्य परंपरा: हिलजात्रा
पिथौरागढ़ जनपद के सोर घाटी में लगभग 400 सालों से हिलजात्रा लोक उत्सव की परंपरा चली आ रही है। वर्षा ऋतु के आगमन पर स्थानीय निवासियों के द्वारा सामूहिक रूप से इसका आयोजन किया जाता है। हिलजात्रा कृषि से जुड़ा लोकोत्सव है, जिसमें स्थानीय देवी- देवताओं की उपासना के साथ-साथ भगवान शिव के गण वीरभद्र जिसे स्थानीय भाषा में लखिया भूत कहा जाता है, इसको प्रसन्न करने के लिए उसकी आराधना की जाती है। लखिया भूत और हिरण-चीतल इस लोकनाट्य परमपरा के विशेष आकर्षण हैं। हिलजात्रा विशुद्ध रूप से लोक नाट्य परंपरा है, जिसमें कृषि संस्कृति के साथ- साथ यात्रा, परंपरा व मुखौटा नृत्य का प्रदर्शन होता है। पिथौरागढ़ के कुमौड़ व बजेटी गांवों की हिलजात्रा विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
विशेषत: सातूं-आठूं लोकपर्व के बाद पिथौरागढ़ में हिलजात्रा लोकनाट्य को मनाने की परंपरा है। पिथौरागढ़ के कई गांवों में हिलजात्रा का आयोजन किया जाता है। हिलजात्रा लोकनाट्य में विभिन्न पात्रों द्वारा मुखौटे पहनकर अभिनय किया जाता है। पिथौरागढ़ में हिलजात्रा हेतु मुखौटा बनाने कार्य ‘भाव राग ताल नाट्य अकादमी’ संस्था द्वारा किया जा रहा है। इस रचनात्मक अकादमी के संस्थापक व निर्देशक हैं कैलाश कुमार। मुखौटे खरीदने हेतु आप निम्न फोन नंबर पर संपर्क कर सकते हैं- 8126630622
हिलजात्रा लोकनाट्य संपूर्ण उत्तराखंड या देशभर में केवल पिथौरागढ़ में ही मनाया जाता है। यह इस सीमांत जनपद की विशिष्ट व अद्वितीय लोकनाट्य परंपरा है।
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