कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

पहाड़ों में इन दिनों: असौज लागि रौ रे भुला


पहाड़ों में इन दिनों: असौज लागि रौ रे भुला

       “ए ब्वारि ऊनी किलै नि खड़्यूनी ! दिन भरि टी० भी० चैबेर हुछई ! असौज लागि रौ। तौ टी० भी०- सी० भी० खित भ्यार। धान चुटन हैरईं। तुकैं टी०भी० हैरै।” सासुल ब्वारि थैं कौ।

       ब्वारिल टी०वी० बटन बंद करौ और दौड़नी भ्यार ऐ।

        हमारे पहाड़ों में आजकल असौज लगा हुआ है। धान की फसल पक गई है। किसान जहाँ-तहां खेतों में धान चूटते हुए दीख रहे हैं। 

        धान के अलावा मडुवा, झुंगरा (मादिरा), मक्का, भट्ट, मास आदि फसलें भी तैयार हो चुकी हैं। कद्दू, ककड़ियां पककर पीली हो गई हैं।

       अमरूदों के पेड़ों में रौनक आ चुकी है। पके हुए अमरूदों की खुश्बू से वातावरण महक उठा है। नारंगी और संतरों से वृक्ष लद चुके हैं। 

      एक ओर जहाँ खेतीबाड़ी और काम-धाम से लोगों को फुरसत नहीं है, वहीं दूसरी और रामलीलाओं और उत्सवों की भरमार से पहाड़ों का वातावरण खुशहाल और व्यस्ततापूर्ण दिखाई दे रहा है। कुल मिलाकर असौज की रौनक पहाड़ों में अब भी बरकरार है। 

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