नंदकिशोर आचार्य और उनकी कविताएँ
राजस्थान के हिंदी कवि नंदकिशोर आचार्य को ‘हिंदी’ में कविता संग्रह ‘छीलते हुए अपने को’ के लिए वर्ष 2019 का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया है। हमारी ओर से नंदकिशोर जी को हार्दिक बधाई।
साहित्यिक परिचय: नंदकिशोर आचार्य
जन्म– 31 अगस्त 1945, बीकानेर (राजस्थान)
भाषा– हिंदी
विधाएँ– कविता, नाटक, आलोचना, उपन्यास, अनुवाद।
मुख्य कृतियाँ-
कविता संग्रह- जल है जहाँ, शब्द भूले हुए, वह एक समुद्र था, आती है जैसे मृत्यु, कविता में नहीं है जो, रेत राग, अन्य होते हुए, चाँद आकाश गाता है, उड़ना संभव करता आकाश, गाना चाहता पतझड़, केवल एक पत्ती ने, अन्य होते हुए, इतनी शक़्लों में अदृश्य, छीलते हुए अपने को, मुरझाने को खिलते हुए, आकाश भटका हुआ, कवि का कोई घर नहीं होता।
नाटक संग्रह- देहांतर, पागलघर, गुलाम बादशाह।
आलोचना- रचना का सच, सर्जक का मन, अनुभव का भव, अज्ञेय की काव्य-तितीर्षा, साहित्य का स्वभाव तथा साहित्य का अध्यात्म।
उपन्यास– तथागत।
अन्य- कल्चरल पॉलिटी ऑफ हिंदूज, दि पॉलिटी इन शुक्रिनीतिसार (शोध), संस्कृति का व्याकरण, परंपरा और परिवर्तन, आधुनिक विचार और शिक्षा, मानवाधिकार के तकाजे, संस्कृति की सामाजिकी, सत्याग्रह की संस्कृति, सभ्यता का विकल्प।
अनुवाद- सुनते हुए बारिश (जापानी जेन कवि रियोकान), नवमानववाद (एम.एन.राय : न्यू ह्यूमनिज्म), विज्ञान और दर्शन (एम.एन.राय : साइंस एंड फिलॉसॉफी) के अतिरिक्त जोसेफ ब्रॉदस्कीम, ब्लाञदिमिर होलन, लोर्का तथा आधुनिक अरबी कविताओं का भी बड़ी संख्या में हिंदी में अनुवाद।
चौथा सप्तक में- अज्ञेय द्वारा संपादित चौथा सप्तक में कविताएँ संकलित।
सम्मान- मीरा पुरस्कार, बिहारी पुरस्कार, भुवनेश्वर पुरस्कार, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार।
संपर्क- सुथारों की बड़ी गुवाड़, बीकानेर – 334005 (राजस्थान), मो०- 9413381045
नंदकिशोर आचार्य की
10 कविताएँ
1. जल के लिए
जितना भी जला दे
सूरज
सुखा दे पवन
सूखी-फटी पपड़ियों में
झलक आता है
धरती का प्यार
जल के लिए—
गहरे कहीं जज्ब है जो ।
2. हर कोई चाहता है
साधु ने भरथरी को
दिया वह फल—
अमर होने का।
भरथरी ने रानी को
दे दिया
रानी ने प्रेमी को अपने
प्रेमी ने गणिका को
और गणिका ने लौटा दिया
फिर भरथरी को वह
— भरथरी को वैराग्य हो
आया।
वह नहीं समझ पाया
हर कोई चाहता है
अमर करना
प्रेम को अपने।
3. खामोशी हो चाहे
शब्द को
लय कर लेती हुई
ख़ुद में
ख़ामोशी क्या वही होती है
उस में खिल आती है।
क्या हो जाता होगा
उस स्मृति का
शब्द के साथ जो
उस में घुल जाती है।
तुम्हारा रचा शब्द हूँ
जब
और नियति मेरी
तुम्हारी लय हो जाना है—
ख़ामोशी हो चाहे
स्मृति मेरी
घुल रही है तुम में ।
4. झूठा है वह सच
झूठा है वह सच
सपना नहीं जो होता—
सपने में ही जीना
सपने को चाहे सच होना है उसका।
झूठ को जियो कितना ही
सच नहीं होता वह।
जिऊँ चाहे सपने-सा
तुम्हें
सच तुम ही हो मेरा।
5. सपना धरती का
फूल सपना है
धरती का
आकाश की ख़ातिर।
निस्संग है आकाश पर
खिल आने से उस के
जो एक दिन झर जाएगा
चुपचाप
धरती सँजोएगी उसे
मुर्झाए सपनों से ही अपने
ख़ुद को सजाती है वह
जिन में बसा रहता है
उस का खिलना।
सपनों के खिलने-मुर्झाने की
गाथा है धरती—
अपने आकाश की ख़ातिर ।
6. शरद
जा चुका बालापन
यौवन की दहलीज पर है शरद
नहीं पूनो, चौदस की रात
हवा में हल्की-सी ख़ुनकी
प्यार का जग रहा
जैसे पहला एहसास।
7. सब जो खिला था
वसन्त का दोष क्या इसमें
अब यदि गर्मियों ने जला दिया
सब जो खिला था
उसने तो खिला दिया
खिल पाया जितना भी
पतझर के बाद।
नहीं, रेगिस्तान बारिश के भरोसे नहीं
आसमाँ मेहरबाँ मुझ पर ज़रा होता-
मैं रेगिस्तान क्यों होता?
होगा अब जो होना होगा
कर्मगति जैसी हो
उसको ढोना होगा
ढो सके जब तक ढो
पर लहरों से अपनी
सपने बुनना मत खो
कभी मिले शायद
फिर वसन्त वो!
8. कहीं नहीं मैं दिखा
कभी देखता हूँ जैसा
वह लिखा
देखना चाहता हूँ जैसा
-वह भी कभी
दिखाना चाहते हैं कैसा
वे मुझको।
वह भी लिखा
पर इस सबमें
कहीं नहीं मैं दिखा।
अब मैं कैसा दिखता हूँ
अपने को
वैसा लिखता हूँ
मेरे दिखने में दिखेगा
जो दिखता-देखता है मुझे।
जिसमें मैं दिखता हूँ लेकिन
तुम वही दर्पण हो
इसलिए लिखना सभी मेरा
तुम्हें अर्पण हो
तुम्हारे ज़रिए जो भी दिखता है
मैं देख पाता हूँ
कविता में इसीलिए
कविता से देखी
दुनिया
बन जाता हूँ।
9. यादों में
एक उदास गंध है
सूख कर झरे सपनों की
दरख़्त के।
खुशबू के रँगों की
यादों में
डूबा है जो।
10. कविता सुनाई पानी ने
एक कविता सुनाई
पानी ने चुपके से धरती को।
सूरज ने सुन लिया उसको
हो गया दृश्य उसका।
हवा भी कहाँ कम थी
ख़ुशबू हो गई छूकर।
लय हो गया आकाश
गाकर उसे।
एक मैं ही नहीं दे पाया
उसे ख़ुद को
नहीं हो पाया
अपना आप ।।
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