कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

आज मनाया जा रहा है संपूर्ण कुमाऊँ में लोकपर्व खतड़ुवा

आज मनाया जा रहा है संपूर्ण कुमाऊँ में लोकपर्व खतड़ुवा

   ‘खतड़ुवा’ पशुधन की समृद्धि की कामना के लिए मनाया जाने वाला कुमाऊँ का प्रमुख लोकपर्व है। इस दिन पशुओं को भरपेट हरी घास खिलायी जाती है। शाम के समय घर की महिलाएं खतड़ुवा (एक छोटी मशाल) जलाकर उससे गौशाला के अन्दर लगे मकड़ी के जाले वगैरह साफ करती हैं और पूरे गौशाला के अन्दर इस मशाल (खतड़ुवा) को बार-बार घुमाया जाता है और भगवान से कामना की जाती है कि वो इन पशुओं को दुख-बीमारी से सदैव दूर रखें। गांव के बच्चे किसी चौराहे पर जलाने लायक लकड़ियों का एक बड़ा ढेर लगाते हैं। गौशाला के अन्दर से मशाल और बिच्छू घास लेकर महिलाएं भी इस चौराहे पर पहुंचती हैं और इस लकड़ियों के ढेर में ‘खतड़ुआ’ समर्पित किये जाते हैं। ढेर को पशुओं को लगने वाली बिमारियों का प्रतीक मानकर ‘बुढ़ी’ ( कई प्रकार की घास से बनाई गई आकृति ) जलायी जाती है। यह ‘बुढ़ी’ गाय-भैंस और बैल जैसे पशुओं को लगने वाली बीमारियों का प्रतीक मानी जाती हैं, जिनमें खुरपका और मुंहपका जैसे रोग मुख्य हैं। इस चौराहे या ऊंची जगह पर आकर सभी खतड़ुआ जलती बुढ़ी में डाल दिये जाते हैं और बच्चे जोर-जोर से चिल्लाते हुए गाते हैं-

“भैल्लो जी भैल्लो, भैल्लो खतडुवा,
गै की जीत, खतडुवै की हार,
भाग खतड़ुवा भाग।”
अर्थात् गाय की जीत हो और खतड़ुआ (पशुधन को लगने वाली बिमारियों) की हार हो..।

        खतड़ू जलाने के बाद सभी को ककड़ी खिलाई जाती है और माथे पर राख और ककड़ी का मिश्रित टीका लगाया जाता है। देखिए खतड़ू लोकपर्व से जुड़ी तस्वीरें..

 



 

 

 

सभी तस्वीरें: विभिन्न मीडिया स्रोत
आप सभी को खतड़ू लोकपर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ

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