कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

कुमाउनी समालोचना संग्रह: कुमाउनी साहित्य और कुमाउनी लोक साहित्य-विविध संदर्भ

कुमाउनी समालोचना की पहली पुस्तक: कुमाउनी साहित्य और कुमाउनी लोक साहित्यः विविध संदर्भ

        डॉ. पवनेश ठकुराठी की वर्ष 2016 में प्रकाशित पुस्तक ‘कुमाउनी साहित्य और कुमाउनी लोक साहित्यः विविध संदर्भ’ कुमाउनी समालोचना की पहली पुस्तक है। इस पुस्तक में कुल 10 समालोचनाएं संगृहीत हैं। ये समालोचनाएं क्रमशः गिर्दाकि कुमाउनी कविताओंक समग्र अध्ययन, शेरसिंह मेहता ‘कुमाउनी’कि कुमाउनी कविताओंक समग्र अध्ययन, कुमाउनी कविता और पिथौरागढ़ाक कवि, शिखर काव्य संग्रहक भाव पक्ष, कल्याण उपन्यास: कथ्य और शिल्प, बौधाण कहानि संग्रहक भाषा वैशिष्ट्य, कुमाउनीक तीन कहानिकार और उनरि कहानि, सफर यात्रावृतांत संकलनकि खासियत, कुमाउनी लोक साहित्यक भाषा वैशिष्ट्य और कुमाउनी लोक साहित्य में श्रृंगार रस हैं। ये सभी समालोचनाएं शोधपरक और वस्तुपरक हैं।

      गिर्दाकि कुमाउनी कविताओंक समग्र अध्ययन शीर्षक समालोचना में पवनेश ने कुमाउनी के लोकप्रिय आंदोलनधर्मी कवि गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा’ की कविताओं की समग्र दृष्टि से समालोचना की है। पवनेश के अनुसार, इनरि कुमाउनी कविताओं में प्रकृति और पर्यावरणक निरूपण हुनाक दगाड़ कुमाउनी समाज, संस्कृति, धर्म और राजनीतिक ले निरूपण हैरौ। ‘गिर्दा’ मूल रुपल जन-आंदोलनकारी छि, जैक कारण इनरि कवितान में समकालीन राजनीतिक विविध संदर्भ व्यक्त है रईं।

      दूसरी समालोचना में लेखक ने कवि शेरसिंह मेहता ‘कुमाउनी’ का परिचय देने के साथ-साथ उनकी कविताओं की समग्र दृष्टि से आलोचना की है। तीसरे समालोचना लेख में लेखक ने पिथौरागढ़ जनपद के मुख्य कवियों की कुमाउनी कविता पर प्रकाश डाला है। कुमाउनी के पहले रचनाकार गुमानी पंत के विषय में वे लिखते हैं: गुमानी नीति इनर सबहें जादे लोकप्रिय काव्य ग्रंथ छु। ऐल तक उपलब्ध प्रमाणों क आधार पर उन कुमाउनीक पैंल कवि छन। इनरि कविताओं में कुमाउनी समाज, लोकजीवन, रहन-सहन, प्रकृति आदिक चित्रण हैरौ। इनरि कुमाउनी कविताक एक उदाहरण तलि में दी राखौ-

‘‘हिंसालु को बाण बड़ी रिसालू,
जां-जां पर जांछे उधेड़ि खांछै।
ये बात को कोई गटो नि मान,
दुधाल की लात सौंनी पड़छै।‘‘

       पुस्तक की चौथी समालोचना ‘शिखर’ कुमाउनी कवि और ‘कुमगढ़’ पत्रिका के संपादक दामोदर जोशी ‘देवांशु’ के कविता संग्रह ‘शिखर’ कि कविताओं के भाव पक्ष को उद्घाटित करती हैै। पांचवी समालोचना में लेखक ने कुमाउनी के उपन्यासकार त्रिभुवन गिरि के उपन्यास कल्याण के वस्तु और शिल्प तथा छठी समालोचना में कहानीकार डा0 हयात सिंह रावत के कहानी संग्रह बौधाण की भाषिक विशेषताओं का उद्घाटन किया है। सातवीं समालोचना में लेखक ने कुमाउनी के तीन कहानीकारों डा. हयात सिंह रावत, अनूप तिवारी और महेन्द्र ठकुराठी की कहानियों की विवेचना की है। आठवीं समालोचना कुमाउनी मासिक ‘पहरू’ के संपादक डा. हयात सिंह रावत द्वारा ‘सफर’ नाम से संपादित कुमाउनी यात्रा वृतांत संकलन पर केंद्रित है।

   पुस्तक की अंतिम दो समालोचनाएं कुमाउनी लोकसाहित्य पर केंद्रित हैं। पहली समालोचना कुमाउनी लोकसाहित्य की भाषिक विशेषताओं का उद्घाटन करती है जबकि दूसरी समालोचना कुमाउनी लोकसाहित्य में निहित श्रृंगार रस का उद्घाटन करती है। पुस्तक शोधपरक एवं पठनीय है। कुमाउनी समालोचना की पहली पुस्तक होने के कारण इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है।

किताब का नाम- कुमाउनी साहित्य और कुमाउनी लोक साहित्यः विविध संदर्भ
विधा- समालोचना
रचनाकार- पवनेश ठकुराठी
प्रकाशक- सृजन से, गाजियाबाद। 
प्रकाशन वर्ष- 2015
मूल्य- 100 ₹

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