कुमाउनी के महावीर: डॉ० हयात सिंह रावत
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर विशेष:
कुमाउनी के महावीर: डॉ० हयात सिंह रावत
विगत 40 वर्षों से कुमाउनी भाषा व साहित्य के विकास हेतु संघर्ष कर रहे डा0 हयात सिंह रावत का जन्म 11 अक्टूबर, 1955 में अल्मोड़ा जिले के लमगड़ा ब्लाॅक के मल्ला सालम पट्टी के झालडुंगरा नामक गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम श्री इन्द्र सिंह रावत था और माता का नाम श्रीमती बचुली देवी था। रावत जी बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। इनकी प्राइमरी शिक्षा प्राथमिक स्कूल झालडुंगरा में संपन्न हुई। कक्षा 6 व 7 तक की शिक्षा गाँव से 6-7 किमीटर दूर सरस्वती विद्यापीठ, बसंतपुर में और कक्षा 8 से 12 तक की शिक्षा सर्वोदय इण्टर कालेज, जयंती में प्राप्त की।
इन्होंने हाईस्कूल 1971 में विज्ञान वर्ग से और इण्टर साहित्यिक वर्ग से 1973 में उत्तीर्ण की। इन्होंने 1974 में बी0टी0सी0 का प्रशिक्षण लिया और 1976 में कुमाऊं विश्वविद्यालय से बी0ए0 की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1978 में इन्होंने एम0ए0 हिंदी विषय से पास किया और 1979 में बी0एड0 का प्रशिक्षण लिया। इन्होंने सन् 1980 में एम0एड0,1996 में एल0एल0बी0 और वर्ष 2005 में प्रो0 जगत सिंह बिष्ट के निर्देशन में कथाकार पानू खोलिया के साहित्य पर पी0एच0डी0 की।
डा0 हयात सिंह रावत युवा अवस्था से ही सामाजिक,सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियों में प्रतिभागिता करते थे। इन्होंने कक्षा 11 में पढते समय गांव में युवक मंगल दल की स्थापना की। युवक मंगल दल के माध्यम से उन्होंने तमाम सामाजिक कार्य सम्पन्न किए। 1974 में इन्होंने स्थानीय लोगों के सहयोग से रामसिंह धोनी विद्यापीठ झालडुंगरा की स्थापना की। वर्तमान में यह विद्यालय हाईस्कूल (राजकीय) बन चुका है। 1992 में रावत जी ने क्षेत्रीय समस्याओं के समाधान हेतु मल्ला सालम संघर्ष समिति का गठन किया। इस समिति के द्वारा रावत जी ने तमाम ग्रामीण समस्याओं के समाधान के प्रयास किए। इस दौरान आजीविका हेतु रावत जी ने शिक्षक, एल0आई0सी0 एजेंट आदि पदों पर काम किया।
रावत जी जब इंटर में पढ़ते थे तभी से इन्होंने पत्रकारिता में प्रवेश कर लिया था। 26 जनवरी, 1978 से इन्होंने ‘हिलाँस साप्ताहिक‘ पत्र का सम्पादन कार्य शुरू किया। हिलाँस का सम्पादन उन्होंने 1992 तक जारी रखा। एल0एल0बी0 करने के बाद इन्होंने आजीविका हेतु वकालत शुरू की, जो आज भी जारी है। वर्ष 1999-2000 में इन्होंने अग्रणी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामसिंह धौनी पर आधृत ‘राम सिंह धौनी स्मारिका‘ का सम्पादन किया।
डॉ. हयात सिंह रावत के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण व रोचक बातें-
1. गाँव में युवक मंगल दल का गठन- रावत जी ने अपने विद्यार्थी जीवन यानि वर्ष 1972 में अपने गाँव झालडुंगरा में युवक मंगल दल का गठन। इसके तहत अनेक स्वच्छता व जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया।
2. गाँव में पुस्तकालय की स्थापना- युवक मंगल दल के सहयोग से रावत जी ने गाँव में एक पुस्तकालय स्थापित किया।
3. बालीबाल टूर्नामेंट- युवावस्था में रावत जी प्रति वर्ष हर सिंह बिष्ट चल वैजंती बालीबाल प्रतियोगिता का आयोजन करते थे।
4. सत्य हरिश्चंद्र नाटक- 1973 में रावत जी ने गाँव में राजा हरिश्चंद्र नाटक का आयोजन/संचालन किया।
5. मल्ला सालम संघर्ष समिति आंदोलन- रावत जी के नेतृत्व में 1992 से वर्ष 1996 तक मल्ला सालम संघर्ष समिति आंदोलन चला। यह आंदोलन गाँव में बिजली, पानी, स्वास्थ्य, सड़क आदि की मांगों व गाँव के विकास हेतु चलाया गया था।
6. राम सिंह धौनी विद्यापीठ- रावत जी गाँव के राम सिंह धौनी स्कूल के संस्थापक थे। यह स्कूल वर्तमान में राजकीय हाईस्कूल बन चुका है।
7. गाँव में होली का प्रारंभ- रावत जी को गाँव में बंद हो चुकी होली को प्रारंभ करने का श्रेय भी झालडुंगरा गाँव के स्थानीय ग्रामीण देते हैं।
8. होलियों में स्वांग- रावत जी व उनके पिता गाँव की होलियों में स्वांग करते थे। अधिकांशतः रावत जी स्वांग में महिला पात्र का अभिनय करते थे।
9. पहली वनडे शादी- रावत जी का विवाह शिक्षिका कु० माया से हुआ। झालडुंगरा व उसके आसपास के 10-12 इलाकों में रावत जी शादी पहली वनडे शादी के रूप में चर्चा का केंद्र रही।
10. बीडीसी मेंबर का चुनाव- रावत जी ने बीडीसी मेंबर का चुनाव भी लड़ा किंतु वे इस चुनाव में हार गये।
रावत जी कुमाउनी भाषा, साहित्य और संस्कृति के विकास हेतु सदैव तत्पर रहते हैं। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु उन्होंने कुछ समर्पित सहयोगियों के साथ मिलकर कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति, कसारदेवी, अल्मोड़ा की स्थापना की। इसी के माध्यम से उन्होंने नवंबर, 2008 से एक कुमाउनी मासिक पत्रिका ‘पहरू‘ का संपादन शुरू किया। वर्तमान में भी यह पत्रिका निरंतर प्रकाशित हो रही है और कुमाउनी साहित्य के विकास में अपना अग्रणी योगदान दे रही है। पत्रिका के माध्यम से रावत जी तमाम नये पुराने रचनाकारों को कुमाउनी में लिखने हेतु प्रोत्साहित करते रहते हैं। वे साल में एक बार राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन का आयोजन भी करवाते हैं।
रावत जी ने कुमाउनी में क्वीड़ (कुमाउनी का प्रथम निबंध संग्रह) और ‘बौधाण (कुमाउनी कहानी संग्रह) नामक पुस्तकें भी लिखी हैं। क्वीड़ साल 2000 में प्रकाशित हुई और बौधाण 2005 में। इसके अलावा इन्होंने वर्ष 2013 में कुमाउनी यात्रा-वृतांत संग्रह ‘सफर‘ का संपादन भी किया। इनके अलावा ‘कथाकार पानू खोलिया: व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ नाम से इनका एक शोध प्रबन्ध भी वर्ष 2014 में प्रकाशित हो चुका है।
कुमाउनी भाषा में ‘पहरू‘ के प्रकाशन के विषय में उनका कहना है कि कुमाउनी भाषा में साहित्य की सभी विधाओं में रचनाएं सामने लाने के उद्देश्य से पहरू का प्रकाशन शुरू किया, ताकि कुमाउनी भाषा भी अन्य भाषाओं के समकक्ष एक समृद्ध भाषा के रूप में खड़ी हो सके।उनका जोर देकर कहना है कि कुमाउनी को संविधान की 8वीं अनुसूची में स्थान दिया जाना चाहिए।
इस प्रकार डॉ. हयात सिंह रावत कुमाउनी भाषा और साहित्य के अद्वितीय उन्नायक के रूप में हमारे सामने आते हैं। जिस प्रकार हिंदी साहित्य में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी (1864–1938) ने वर्ष 1903 से 1920 तक कुल 17 वर्ष ‘सरस्वती’ मासिक पत्रिका का संपादन कर हिंदी साहित्य की अप्रतिम सेवा की उसी प्रकार डॉ० हयात सिंह रावत विगत 12 वर्षों से ‘पहरू’ मासिक पत्रिका का अनवरत प्रकाशन कर कुमाउनी साहित्य की निस्वार्थ सेवा कर रहे हैं। उन्हीं के प्रयासों का प्रतिफल है कि आज कुमाउनी में साहित्य की प्रत्येक विधा में रचनाएँ व पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं।
रावत जी के संपादन में ‘पहरू’ पत्रिका ने विगत 12 वर्षों में शेर सिंह बिष्ट अनपढ़ विशेषांक, गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ विशेषांक, मोहम्मद अली ‘अजनबी’ विशेषांक, शेर सिंह मेहता ‘कुमाउनी’ विशेषांक, पप्पू कार्की विशेषांक, शमशेर सिंह बिष्ट विशेषांक, महिला विशेषांक, युवा विशेषांक आदि समेत एक दर्जन से भी अधिक संग्रहणीय व उल्लेखनीय विशेषांक प्रकाशित किये हैं। पत्रिका के माध्यम से समय-समय पर प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं और अनेक लेखकों को सम्मानित व पुरस्कृत कर प्रोत्साहित किया जाता है। अतः डॉ. हयात सिंह रावत को कुमाउनी का महावीर कहा जाय तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
डा0 हयात सिंह रावत को उनके साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यों हेतु आदित्य राम नवानी लोक भाषा सम्मान (2011) हिलाँस अवार्ड (2013), साहित्य प्रभा सरस्वती रत्न सम्मान (2014), मोहन उप्रेती समिति सम्मान (2020) आदि सम्मान प्राप्त हो चुके हैं, किंतु उनके साहित्यिक और सामाजिक कार्यों का सम्यक् मूल्यांकन होना अभी बाकी है।
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