पहाड़ की सौगात: काफल काफल उत्तरी भारत और नेपाल के पर्वतीय क्षेत्र, मुख्यत: हिमालय की तलहटी के 1200 से 2100 मीटर की ऊंचाई के जंगलों में पाया जाने वाला एक वृक्ष है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘मिरिका एस्कुलेंटा (myrica esculata)’ है। ग्रीष्मकाल (चैत्र-बैशाख) में काफल के पेड़ पर लगने वाले फल पहाड़ी इलाकों
वर्ष 2021 के बहादुर बोरा श्रीबंधु कुमाउनी कथा साहित्य पुरस्कार से पुरस्कृत होंगे मोहन चंद्र कबडवाल बागेश्वर, भगवान बागनाथ की नगरी में आगामी 25, 26, 27 दिसम्बर 2021 को आयोजित हो रहे 13वें राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैै। इसी बीच कुमाउनी भाषा सम्मेलन को लेकर दूसरी
ललित तुलेरा ने आठ पीढ़ी की वंशावली महज बीस वर्ष की उम्र में बनाई बागेश्वर जिले में गरूड़ ब्लॉक से करीब 30 किलोमीटर दूर पहाड़ों में बसा गांव ‘सलखन्यारी’ के युवा ललित तुलेरा ने अपनी आठ पीढ़ी की वंशावली बनाई है। वे अभी २२ साल के हैं। उनका यह कार्य दो साल पहले
जन्मदिन विशेष: लोक संस्कृति के कुशल चितेरे: ब्रजेंद्र लाल साह रंगकर्मी व रचनाकार ब्रजेंद्र लाल साह का जन्म 13 अक्टूबर, 1928 को अल्मोड़ा में हुआ था। आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण की और विशेषकर हिंदी कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास आदि विधाओं में अपनी लेखनी चलाई। शैलसुता, अष्टावक्र और गंगानाथ
पिथौरागढ़ की विशिष्ट लोक नाट्य परंपरा: हिलजात्रा पिथौरागढ़ जनपद के सोर घाटी में लगभग 400 सालों से हिलजात्रा लोक उत्सव की परंपरा चली आ रही है। वर्षा ऋतु के आगमन पर स्थानीय निवासियों के द्वारा सामूहिक रूप से इसका आयोजन किया जाता है। हिलजात्रा कृषि से जुड़ा लोकोत्सव है, जिसमें स्थानीय
पहाड़ की सौगात: लिंगुड़े की सब्जी उत्तराखंड न सिर्फ एक ऐसा राज्य है जहां प्राकृतिक सौंदर्य अपनी विशेषताएँ लिए हुए है, बल्कि यहाँ अनेकानेक जड़ी बूटियों के भंडार भी मौजूद हैं। इन्हीं में से एक है चौमास (बरसात) के दिनों यानि आजकल मिलने वाली प्रसिद्ध सब्जी लिंगुड़ा (linguda)। लिंगुड़ा का
साथियों, कुमाउनी भाषा-साहित्य के अनन्य सेवक मथुरादत्त मठपाल जी का विगत 9 मई को निधन हो गया। मठपाल जी का कुमाउनी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यह आलेख उन्हीं को समर्पित- दुदबोलि के उन्नायक: मथुरादत्त मठपाल कुमाउनी के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले संपादक व रचनाकार मथुरादत्त मठपाल का
श्रद्धेय गुरू व साहित्यकार प्रो. शेर सिंह बिष्ट का 19 अप्रैल, 2021 को निधन हो गया। उनके निधन से साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र की अपूरणीय क्षति हुई है। यहाँ प्रस्तुत है प्रो. बिष्ट के शैक्षिक व साहित्यिक योगदान का संक्षिप्त विवरण- प्रो. शेर सिंह बिष्ट: गोल्ड मेडल से हिंदी विभागाध्यक्ष तक की यात्रा जन्म और
श्री लक्ष्मी भंडार, हुक्का क्लब की रामलीला साथियो, यदि कोरोना वायरस न फैला होता तो आजकल पूरे देशभर में रामलीला के मंचन से माहौल राममय हुआ रहता। हमारे कुमाऊं अंचल में रामलीला नाटक के मंचन की परंपरा का इतिहास 160 वर्ष से भी अधिक पुराना है। इसी परंपरा में अल्मोड़ा जनपद के श्री