कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

लोकगायिका कबूतरी देवी का एक साक्षात्कार ( A Interview with Kumauni folk Singer Kabutari Devi )

लोक गौरवः कबूतरी देवी दगड़ि इंटरव्यू-

लोक कलाकारोंकैं उचित सम्मान मिलन चैं- कबूतरी देवी

( मशहूर कुमाउनी लोकगायिका कबूतरी देवीक 7 जुलाई, 2018 हुं निधन भौ। कबूतरी देवी आपण गीतों माध्यमल हमार बीच हमेशा रौलि। यो साक्षात्कार उनरि चेलि लोकगायिका हेमंती देवीक घर सेरी कुंडार (पिथौरागढ़) में दोफरीक 1.20 बाजी लेखक व शिक्षक डाॅ. पवनेश ठकुराठी द्वारा ल्ही गोछी।)

लोकगायिका दगड़ि बातचीत करते हुए लेखक

डाॅ. पवनेश: आपूंक जनम कब और कां भौछ?

कबूतरी देवी: जनमतिथि मिंकें याद न्हांथिन, लेकिन जनमस्थान छु म्यर लेटी गों। यो चंपावत जिला में पडूं।

डाॅ. पवनेश: आपूंक इज-बाबू को छि?

कबूतरी देवी: म्यर बौज्यू नौ छि देवराम और इजा नौ छि देवकी देवी। दुवै आपण जमानाक प्रसिद्ध लोकगायक छि।

डाॅ. पवनेश: आपूंल शिक्षा कतुक तक हासिल करी?

कबूतरी देवी: (हांसते हुए- सब एकनसै संवाल पुछनीं।) वी जमान में साधन नै छि, जै कारण मिं पढ़ि नै पायूं।

डाॅ. पवनेश: स्कूली शिक्षा त आपूं नै हासिल करि पाया, लेकिन गीत-संगीतकि शिक्षा आपूंल कांई नै हासिल करी?

कबूतरी देवी: मींस कैले नै सिखाय।

डाॅ. पवनेश: लोकगीत गानाकि शुरुआत कब भिटे भै?

कबूतरी देवी: मिंकें नानछना बै गीत गानाक शौक छि। बचपन में खेल करन बखत ले गीत गुनगुनांछी। हमर पुर परिवार गायन में रुचि धरछी। हम 10 बैंणी छि। सबूंकें गानाक शौक छि।

डाॅ. पवनेश: यानीकि आपूंक पुर पारिवारिक माहौल गीत-संगीत में रमीनाक छि?

कबूतरी देवी: होय-होय। येक बाद सबहैं पैंली आकाशवाणी नजीबाबाद में म्यर गायनक टेस्ट भौछ। वाईं बै गायनकि शुरुआत भै।

डाॅ. पवनेश: आकाशवाणी नजीबाबादक अलावा और किन-किन आकाशवाणी केंद्रों बै आपूंक लोकगीत प्रसारित भईं?

कबूतरी देवी: नजीबाबादक अलावा अल्मोड़ा, लखनऊ केंद्रों बै ले म्यर लोकगीत प्रसारित भईं।

डाॅ. पवनेश: एक दिनों आपूंक बीमार हुनांकि खबर ले अखबारों में पढ़ी। अच्छ्यालून कस छु आपूंक स्वास्थ्य?

कबूतरी देवी: तीन साल तक पथरीक इलाज चलौ। चेलिल साथ निभाछ और सरकारल ले आर्थिक मदद करी। आब थ्वाड़ आराम छु। फिरि ले इथकै-उथकै जान कम करि है। पिछाड़ि तीन सालों बै गायन दगड़ि रिश्त टुटि गो।

डाॅ. पवनेश: आपूंक परिवार में को-को छन?

कबूतरी देवी: एक च्यल भूपेंद्र और द्वी चेली मंजू और हेमंती देवी छन। अच्छ्यालून मिं हेमंतीक घर रूं। यो वीकै घर छु। मेरि लोकगीत गायनकि विरासत आब योई चेलि संभालछि।

डाॅ. पवनेश: आपूंक प्रसिद्ध लोकगीत को-को छन? एक-द्वी गीत आपूंक मधुर कंठ बै सुणन चांनू।

कबूतरी देवी: पहाड़ को ठंडो पानी और आज पानी झौं-झौं म्यर गाई प्रसिद्ध लोकगीत छन। एक-द्वी अंतरा सुणूल बांकि नै-

1. पहाड़ को ठंडो पानी, सुनूं कति मीठी वाणी।

छोड़नि नि लागनी

पहाड़ में हिमालय, वां देवता रूंनी।

देवी-देव वास करनीं, देवभूमि कूंनी।

देवभूमि छोड़िबेर जाननि नि लागनी।

छोड़नि नि लागनी।

2. आज पानी झौं-झौं

भोल पानी झौं-झौं,

पोरखिन तें न्है जूंला।

इस्टेशन समां पुजै दे मलै,

पछिल वीराना ह्वै जूंला।

भात पकायो बासमती को,

भूख लाया खाय जूंला।

उदासी लागनी बेला,

पहाड़ ऐ जूंला।

इस्टेशन समां पुजै दे मलै

पछिल वीराना…….।

   इनर अलावा ‘के संध्या झूलि रै, नीलकंठ हिमाल’ लोकगीत ले भौत प्रसिद्ध भौछ।

डाॅ. पवनेश: भौत सुंदर। अच्छा लोकगीतों अलावा आपूंल और को-को किसमाक गीत गाईं?

कबूतरी देवी: लोकगीतों अलावा मींल न्यौली, फाग, ऋतुरैंण लोकगीत ले गाईं। एक ऋतुरैंण छु-

जेठो म्हैंण जेठो होलो रंगीलो बैशाख……

हां बै रंगीलो बैशाख…..

ऋतुरैंण कें चैती ले कूंनी, किलैकी यो चैतक म्हैण में गाई जांछि।

डाॅ. पवनेश: आपूंल आपण गीत आफी लिखीं या कसै और गीतकारल……?

कबूतरी देवी: म्यर सब गीत भानुराम सुकोटी ज्यूल लिखि राखीं।

डाॅ. पवनेश: लोकगीतोंक क्षेत्र में काम करना लिजी आपूकें मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला एवं विज्ञान शोध समिति, अल्मोड़ा, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, दिल्ली, पहाड़, नैनीताल, निसर्ग सृजन संस्थान, लखनऊ आदि कयेक संस्थाओं बै सम्मानित करी गो। सम्मानोंक बार में आपूंक कि खयालात छन?

कबूतरी देवी: सम्मान भल हुंनी। सम्मानों कें स्वीकार करन चैं।

डाॅ. पवनेश: लोकगीत-संगीत क लिजी सरकार कस काम करनै?

कबूतरी देवी: सरकार काम करनी छ, लेकिन बीचक दलाल सब बिगाड़ि दिनीं।

डाॅ. पवनेश: उत्तराखण्ड सरकारल लोक कलाकारों लिजी कसि योजना चलै राखीं?

कबूतरी देवी: उत्तराखण्ड सरकारल लोक कलाकारों लिजी पेंशन योजना चलै राखी। योजना ठीक छ, लेकिन ये योजना में पेंशन राशि जादे हुन चैं। सरकारल जो राशि धरि राखी वी में लोककलाकारोंकि गुजर-बसर नै हुनि, यसै कारण लोक कलाकारोंकि पेंशन राशि बढ़ाई जानि चैं।

डाॅ. पवनेश: पेंशन राशि कतुक तक हुन चैं?

कबूतरी देवी: लोककलाकारोंकि मासिक पेंशन पांच-छै हजार हैं जादे हुन चैं।

डाॅ. पवनेश: नई लोकगायकों और कलाकारों लिजी आपूं कि कूंन चाला?

कबूतरी देवी: नई गायकोंक गीत म्यर समझ में नै ऊंना। नानतिन लोक संगीत में रुचि ल्हिनी और भल काम करनीं त भलि बात छु। अच्छ्यालून टी.वी. में पवनदीप राजन भौत द्यखीनौ। उ म्यरै नाति छु।

डाॅ. पवनेश: भौत बढ़िया। आपूं दगड़ि बातचीत करिबेर भल लागौ। आपूंक धन्यवाद।

कबूतरी देवी: नमस्कार! धन्यवाद।

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