September 7, 2019
जिंदगी का हश्र
जिंदगी का हश्र
जिंदगी-जिंदगी कहता रहा,
मगर जिंदगी को कभी जान न पाया।
करता रहा दुनिया की बातें,
मगर खुद को कभी पहचान न पाया।
कभी दौलत के पीछे
कभी शोहरत के पीछे
हर पल-हर दिन भागता रहा
पर मुस्कुराने का कोई सामान न पाया।
जिंदगी- जिंदगी कहता रहा…..।
गुरूजन भी मिले
अरमान भी खिले
मगर खुद से खुद को मिलाने का
कोई ज्ञान न पाया ।
जिंदगी- जिंदगी कहता रहा……।
हृदय का सागर
उठ रही थी लहर
मोती भी थे वहां, कंकड़ भी थे
मगर मोतियों को मैं छान न पाया।
जिंदगी- जिंदगी कहता रहा…….।
पानी की मीन प्यासी रही
खुदा के घर उदासी रही
और एक दिन हंसा उड़ता चला गया
मगर उसने कोई मुकाम न पाया।
जिंदगी- जिंदगी कहता रहा…….।
© Dr. Pawanesh
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