कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

जिंदगी का हश्र

            जिंदगी का हश्र

जिंदगी-जिंदगी कहता रहा,

मगर जिंदगी को कभी जान न पाया।

करता रहा दुनिया की बातें,

मगर खुद को कभी पहचान न पाया।

 

कभी दौलत के पीछे

कभी शोहरत के पीछे

हर पल-हर दिन भागता रहा

पर मुस्कुराने का कोई सामान न पाया।

जिंदगी- जिंदगी कहता रहा…..।

 

गुरूजन भी मिले

अरमान भी खिले

मगर खुद से खुद को मिलाने का

कोई ज्ञान न पाया ।

जिंदगी- जिंदगी कहता रहा……।

 

हृदय का सागर

उठ रही थी लहर

मोती भी थे वहां, कंकड़ भी थे

मगर मोतियों को मैं छान न पाया।

जिंदगी- जिंदगी कहता रहा…….।

 

पानी की मीन प्यासी रही

खुदा के घर उदासी रही

और एक दिन हंसा उड़ता चला गया

मगर उसने कोई मुकाम न पाया।

जिंदगी- जिंदगी कहता रहा…….।

 

© Dr. Pawanesh

 

Share this post

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!