जगदीश पांडेय की पेंटिगों का अलौकिक संसार
साथियों, आज हम आपको मिलाते हैं कूची के बाजीगर जगदीश पांडेय जी से-
कूची के बाजीगर: जगदीश पांडेय
जीवन परिचय-
मशहूर चित्रकार जगदीश पांडेय का जन्म 9 अगस्त, 1958 को अल्मोड़ा के जागेश्वर में हुआ। आपके पिता का नाम श्री डी. डी. पांडेय और माता का नाम श्रीमती तारा देवी है। आपने इंटरमीडिएट करने के बाद कमर्शियल डिजाइन में डिप्लोमा हासिल किया। जगदीश पांडेय को बचपन से ही पेंटिंग बनाने का शौक था। यही कारण है कि आप 63 साल की उम्र में भी बड़ी संजीदगी से कैनवास पर अपना जौहर दिखाते हैं।
जगदीश पांडेय की पेंटिगों का अलौकिक संसार-
जगदीश पांडेय की पेंटिगों का फलक अत्यधिक व्यापक है। इनकी पेंटिंगें पहाड़ के समाज, लोकजीवन और लोक संस्कृति को तो चित्रित करती ही हैं, साथ ही सामयिक और राष्ट्रीय- अंतर्राष्ट्रीय विषय भी इनकी पेंटिंगों में उभरकर सामने आये हैं। गोलू देवता, संत नीब करौली बाबा, केदारनाथ, जागेश्वर धाम, पर्वतीय नारी, हिमालय, ओम पर्वत, बोगनवेलिया, आधुनिक नारी, प्रधानमंत्री मोदी, आदि समेत सैकड़ों तस्वीरें वो अब तक बना चुके हैं। इनकी पेंटिगें देश भर में सराही गई हैं।
देश भर में लगा चुके हैं कला प्रदर्शनियां-
जगदीश पांडेय जी देशभर में अनेक स्थानों पर अपनी कला प्रदर्शनी लगा चुके हैं। वे अब तक मुंबई, दिल्ली, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, हल्द्वानी, नैनीताल, बरेली, लखनऊ, हरिद्वार, रूड़की, मेरठ, मुजफ्फरनगर, धर्मशाला, हरियाणा, इलाहाबाद आदि स्थानों पर अपनी कला प्रदर्शनियां लगा चुके हैं। इन प्रदर्शनियों में उनके द्वारा बनाई उत्तराखण्ड के लोक-समाज व संस्कृति पर केंद्रित पेंटिंगें काफी सराही जाती हैं।
फिल्मों में कला निर्देशन-
पांडेय जी ने ‘मधुली’ ऐतिहासिक फीचर फिल्म और ‘राजवंशी गोलूदेव’ फीचर फिल्मों में कला निर्देशक का कार्य किया है।
लेखन का भी रखते हैं शौक-
पांडेय जी को पेंटिंग बनाने के साथ-साथ लेखन का भी शौक है। उन्होंने ‘पांडेय वंशावली’ पुस्तक का लेखन किया है और ‘घर लौटि आ’ कुमाउनी एल्बम के गीतों की रचना की है।
तोड़ा चीन का रिकॉर्ड-
पांडेय जी ने अपनी कला से साल 2018 में चीन का रिकॉर्ड तोड़ ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में अपना नाम दर्ज किया है।
पुरस्कार व सम्मान-
पांडेय जी कला के क्षेत्र में योगदान हेतु अनेक बार सम्मान भी किया जा चुका है। उन्हें कला श्री सम्मान, दिल्ली ( 2016), सोर कलाकार कल्याण समिति सम्मान और दर्जनों संस्थाओं द्वारा प्रशस्ति पत्र आदि प्राप्त हो चुके हैं, लेकिन इन सबके बावजूद उनकी कला का सम्यक् मूल्यांकन होना अभी बाकी है।
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