कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

छ्योड़ि पगली गै

      छ्योड़ि पगली गै

बाँजक हरिया-भरिया जङ्व में सरसराट-फरफराट करनीं ठंडि-ठंडि हाव चलणैछि। घुघुतीकि घूर-घूर हौर चाड़-पिटांङोकि चड़-चड़, पड़-पड़ वातावरण कैं मोहक बणूंनैछि। याँ जानवर भौतछि चाड़-पिटांङ भौत छि लेकिन मनखि जातिक दूर-दूर तक क्वे निशान नै छि। ये जङवक दुहरि तरफ पारि डाण में एक गौं छि। ये गौं का बुड़-बाड़ी कूँछि कि ये जङव में तीन सींग वाल भूत रूँनी। उँ मनखि कैं खै दिनी। मैं सोचन रैैथ्यूूं  कि मेरि किस्मत जरूर खराब छु, तबैत याँ पुजि रयूँ। हे भगवान! तुमै छौ म्यार रक्षक। इतुक में हिंसावक गिजोंक भितेर सड़सड़-पड़पड़कि आवाज सुणिबेर मेरि हालत पतलि हैगै। याँ जरूर तीन सींगों वाल भूत छु। हे भगवान! हे महाबलि हनुमान ज्यू! काँ जै रौछा तुम। डरल मेरि हाव ढिलि हैगै। म्यर मुख बटी आफी-आफी हनुमान चालीसाक पाठ हुण बैठौ -‘‘जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीश तिहुँ लोक उजागर….।’’  थ्वाड़ देर में  मैंल द्यखौ कि द्वी बन मुर्गि वाँ भिटे निकलिबेर दुहरि तरफ भाजि ग्या। आब मीं आपण कल्ज मजबूत बणैबेर अघिल कैं बढ़ते रयूँ। इतुक में म्यार कानों में फटाक-फटाक कि आवाज ऊँण बैठी। मैंल सोचो ये घनघोर जंगव में को हौल आँखिर! मीं अघिल बढ़ते रयूँ। अब आवाज साफ सुणींन रैथि। यस लागणौछी जसिकै द्वी-चार मनखियों में बातचीत चलि रै। मैंल द्वी रुखोंकि ओट में लुकिबेर वाँकि तरफ नजर घुमै। एक हट्ट-कट्ट मैंस बाँजक रुख कैं काटण लागी भै। चार मैंस वाँ बैठिबेर गपशप करन लागी भाय। एक ठुल घुमावदार मूँछन वाल मैंस दुहर थैं कूण लागि रौछी- ‘‘देख च्यला! पढ़न-लेखन त त्वील न्हाँथिन। सिखि ल्हे यो काम। द्वी नंबरक छु, मगर फैद भौत छु।’’

च्यल- ‘‘बाबू, योले क्वे काम भ्योई! ये हैं भल घरपन खूब क्यलाक रुख छन, उनूँकैं काटिबेर बेचि दिना। खालि इतुक दूर ऊन पड़ौ।’’

मूँछ वाल मैंस-‘‘चुप सला! खाल्लि थोड़े धरि राखौ त्यर दगड़ियोंल त्यर नौ बुद्द्धू (दुहर मैंस थैं) गबरु याँ औ। ये कैं बतौ कि बाँजक रुख और

क्यलाक रुख में कतु फर्क हुँछ।’’

इतुक में वाँ बाँजक रुख ढलकि पड़ौ और याँ म्यर दिमाग-कि करूँ समझ में नि ऊँण लागी भय। अगर मीं इनूकैं नै रोकनूँ त यों एक-एक कैबेर सब बाँजक रुख काटि द्याल। अगर रोकूँ त कैं मेरि हालत बाँजक रुख जसि नै करि दिन। खैर, एक उपाय म्यर मन में कुलबुलाण भैटो और मीं जोर-जोरल बुलाण बैठीं-‘‘पुलीस-पुलिस, भाजौ।’’ पुलीसक नाम सुणिबेर उनूँल दैंण तरफ नजर घुमैं न बौं तरफ। बनकाट वांई छाड़िबेर सब भाजि पड़ीं। उनर पछिल-पछिल मिं पुलीस-पुलीस कूँण-कूणैं लागी भईं। ये उपायल मकैं द्वी फैद भईं। एक त यो कि उनर पछिल-पछिल भाजनाक कारण मैंल गौंक बाट पै हाछी, दुहर बाँजक बोटोंकि रक्षा लै है गैछी।

दुहर दिन गौं में खबर फैलि गै कि पधान ज्यूल जङ्व में भूत द्यखौ। उ भूत पुलीस-पुलीस कुण रौछी। गौं वालोंल येक यो मतलब निकालौ कि पुलीस अच्छयालून पकड़-धकड़ करन लागिरै। जरूर उ जङव में गश्त करन मरै होलि। दरअसल में ऊँ बोट कटूँणि वाल ठुल मूँछन वाला मैंस क्वे हौर नै हमार गौंक पधान ज्यू छि। पधानज्यूकि साँठ-गाँठ भै भू-माफिया दगड़ि। भू-माफियाक लीडर भय गबरु। वीक शराबक धंध ले जोर-शोरल चलि रौछी। गौं में एक मासाप भाय। उनर नौं छि रामलाल। रामलाल मासाप उसिकैं त हाईस्कूल, इंटर, बीए थर्ड डिवीजन भाय। एम.ए. बड़ मुश्किलल सेकन डिवीजन ऐ गैछी। डबल दीबेर भ्यार भिटे बी.एड करौ। किस्मत चमकि भै, दुहर आरक्षण ले भय। झटपट मासाप बणि गाय। रामलाल मासापल जब पनर अगस्तक दिन गौंक विकासाक बार में भाषण दीछ कि गौंक ठीक ढङल विकास नै हुण लागि रय। तब भिटै पधान ज्यू उर्फ प्रधान ज्यू मासाप दगड़ि खार खानी भै। योई रामलाल मासापक च्यल भयूँ मीं जीतलाल उर्फ जीतू। गौंक इंटर काॅलेज में पढ़न लागी भयूँ। बुद्धू क्वे हौर नै, म्यर दगड़ू छ। उ थ्वाड़ मंदबुद्धि छि, मीं थ्वाड़ होशियार। दरअसल में वीकैं दगड़ू बणूँनक एक खास कारण छि। आपूं लोगन कै बतूंई? नै बतूं? शरम ऊणैं। खैर ये जमान में छ्योड़ि नै शरमान त मीं किलै शरमूं। सुणौ! बुद्धूकि एक बैणीं छि, चट्टी गोरि-फनार। वीक नौ छि गीता, लेकिन वीक इज-बाबू और दगड़ू सब वीथैं गीतू कूंछी। तुमै देखि लियौ, जीतू-गीतू। कतू भल मेल खाणौ! एक दिन जब वील पछिल बै ऐबेर मेरि कानि में हाथ धरौ, बबाहो मींकैं त जसिकैं द्वी सौ बोल्टक झट्क लागौ। मुनि बटी खुटि तक प्रीतक एहसास हुण बैठौ। येक बाद त जती-कती हमर आँखि चार है जानीं भै। साँचि कूँ त वीक जीतू कूँण मीकैं इतुक भल लागछि-इतुक भल लागछि! कि बतूँ आब। समझि ल्हियो भौत भल लागछि और उहैं जादे भल उकैं म्यर गीतू कूँण लागछि। वीक-म्यर बीच में सब ठीक-ठाक छि। बस, एक्कै दीवार छि। उ ठाकुर छि, मैं हरिजन।

एक दिन उ पन्यार जाई भै। मीं ले वीक पछिल-पछिल लागि गयूँ। प्रीतकि रीत भै। के बुलाण, न कूँण। बस वीकैं चाण में भयूँ। दिन दहाड़े स्वीण ऊँण लागी भाय। म्यर छातीक वौं वाल हिस्स गीत गान बैठौ- ‘‘कसिकै बणलि तू मेरी जोड़ीदार, कसि काटूँलो दिन बिन त्यार।’’ वील हौले हौले म्यर नजिक ऐबेर कौ-‘‘जीतू! फौंल म्यर माथि में धरि दियो।’’ अहा कतुक भलि आवाज छि। आगराक् पेठाकि चारि मिठि, मक्खनकि चारि कोमल। मैंल

फौंल थमा और धरि दीछ।

मैं कि जाणूँ मेरि किस्मत खराब चलि रै। म्यर ऊपर राहु-केतु रिटण लागि रौ। दूर बटी खिमुलि काकि यो सब चाई भै। वील गौं में धीराट पाड़ि देछ- ‘‘छ्योड़ि पगली गै। वीकैं छूत-अछूतक के पत्त न्हांथिन। येक भगवान मालिक छु।’’ गीतू कैं आफी होश नै भै कि मैं कि करि बैठ्यूं। वील फौंल बटी पाणि फोकौ और दुबारा पाणि भरिबेर ल्हिगै।

आब हम एक-दुहार थैं मिलनाक मौक चाँछी। बात करनाक मौक चाँछी। एक दिन हम आपण-आपण गोरु-बाकारा ल्हिजैबेर ग्वाव हुँ बाट लागि गाय। बाँ जङ्व में हमूँल खूब काफल टिपिबेर खाईं। मीं काफल टिपिबेर उकैं खिलूँछी और उ मीकैं। एक दिन यो खंून- खिलूनाक कार्यक्रम बड़ जोर-शोरल चलि रौछि कि पधानज्यू बीच में टपकि पड़ीं। उनूँल द्वी थाप गीतू कैं जड़ि दीं- ‘‘इजा,ठीक कूँथि। तू पगलि गेछै। तबै ऊँछी ग्वाला? घर हिट फिरि बतूँछ तुकैं।’’ उनूँल वीक हाथ पकड़ौ और खींच बेर घर खिन ल्हि गाय। मीं चाईंयक-चाईं रै गयूँ।

आज एक म्हैंण हैगो। गीतूक बार में कसै के पत्त न्हांथिन। क्वे कूँनी वीक ब्या हैगो, क्वे कूँनी पधान ज्यूल वीकैं भितेर गोठ्या राखौ। मींल आपण मन में कौल करि राखौ कि आज जरूर पत्त लगूँल-आँखिर उ काँ छ? येकैं लिजी मींल बुद्धू कैं आज जबाब दीबेर आमक् बगीच में बुलाछ। मैंल वीथैं पुछौ – ‘‘बुद्धू! तेरि बैंणि काँ छ?’’

बुद्धू- ‘‘घरै छ।’’

‘‘भ्यार किलै नै ऊँनि?’’

‘‘वीक खुट में चोट लागिरै।’’

‘‘कसिकै?’’

‘‘बाबूल शराब पीबेर वीकैं खूब मारौ।’’

इतुक कैबेर बुद्धू रुण बैठौ- ‘‘मीं अस्पताल जूँल। वाँ बै पुलिस बुलैबेर ल्यूँल। म्यर बाबू कभै भल काम नि करनीं’’।

मैंकैं आज पत्त चलौ कि बुद्धू कतु भल मैंस छु। मैंल उकैंएक टाॅफि दीबेर घर खिन लगाछ। मींल आपण मन में निश्चय करौ कि आज गीतूक घरवालों थैं मनैकि बात बतै दिण चैं। यस सोचिबेर मीं पधानज्यूक घर गयूँ और बेझिझक आपणि बात राखी- ‘‘पधानज्यू मैं गीतूक दगड़ि ब्या करन चाँ।’’ पधानज्यूल कौ-‘‘च्यला! ये जनम में त कभै नै है सकन, अघिल जनम में ठाकुरक खानदान में पैद भये, फिरि सोचे ब्याक बार में।’’ मैंल खूब बिनति करी। हाथ ज्वोड़यूँ। खुट पड्यूंं,  लेकिन सब बेकार। पधानज्यूल एक नै मानि और मींकैं निराश हैबेर घर ऊँण पड़ौ। द्वी म्हैंण बाद पत्त चलौ। गीतूक खुट आब ठीक हैगो, लेकिन उ हर बखत उदास रुँछि। गौं वाल कूँनी कि उ रोज पन्यार जाण बखत वाँ फौंल में पाणि भरिबेर एक बार फोकछि, फिरि दुबारा भरिबेर घर खिल ल्हिजाँछि। खिमुलि काकि कूँछि, उ पैंली पगली रैथि, आब भलिकै पगली गै। बुद्धू बतूणौछि कि बाबू वीक ब्या अघिल म्हैंण गबरु ठेकदार दगड़ि करनी वाल छन।

 

© Dr. Pawanesh

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