कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

उत्तराखंड के लोकसाहित्य का आयामी परिदृश्य: प्रो. डी. डी. शर्मा

प्रिय पाठकों, आज हम आपको ले चलते हैं उत्तराखंड के लोक साहित्य की ओर और चर्चा करते हैं प्रो० डी० डी० शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक ‘उत्तराखंड के लोकसाहित्य का आयामी परिदृश्य’ की। 

पुस्तक के विषय में-

उत्तराखंड के लोकसाहित्य का आयामी परिदृश्य

     ‘उत्तराखंड के लोकसाहित्य का आयामी परिदृश्य’ पुस्तक के लेखक प्रो.डी.डी. शर्मा हैं। इस पुस्तक का पहला संस्करण वर्ष 2012 में अंकित प्रकाशन, हल्द्वानी से प्रकाशित हुआ है। यह शोधपरक पुस्तक है, जिसमें उत्तराखंड के लोकसाहित्य के विविध परिदृश्यों का विवेचन- विश्लेषण किया गया है। 

      इस पुस्तक को लेखक ने चार खंडों में विभाजित किया है। पहले खंड में कुल 6 अध्याय हैं। इस खंड का पहला अध्याय ‘लोकसाहित्य के विविध आयाम’ है। दूसरा अध्याय ‘कुमाउनी और गढ़वाली लोकसाहित्य की समानांतर धाराएँ’ है, जिसके अंतर्गत लेखक ने उत्तराखण्ड की पर्वतीय सांस्कृतिक छटाओं, लोकसाहित्य के घटकों, नारी सौंदर्य के अभिव्यंजक प्रतिमानों आदि पर चर्चा की है। तीसरे अध्याय का शीर्षक है, ‘लोकसाहित्य की उपादेयता’। चौथे अध्याय ‘लोकसाहित्य की देन’ में लेखक ने लोकजीवन के रूपों, सामाजिक- सांस्कृतिक परंपराओं, उत्तराखंड की लोक मान्यताओं, वेशभूषा, खान-पान, भवन व्यवस्था पर प्रकाश डाला है। पांचवें अध्याय ‘गाथात्मक लोकसाहित्य का वैशिष्ट्य’ में लेखक ने नूतन मिथकीय रूपांतरणों, देव शक्तियों के मानवीयकरणों, महाकाव्यीय पात्रों का विवेचन किया है। छठे अध्याय ‘लोकसाहित्य का काव्यशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य’ में लेखक ने अलंकार, छंद, रस योजना आदि पर चर्चा की है।

      पुस्तक का दूसरे खंड में कुल 2 अध्याय हैं। पहले अध्याय ‘लोकगीतों के रूप’ में लेखक ने लोकगीतों की उत्पत्ति, वर्गीकरण, गाथा गीत, नृत्य गीत, प्रणय गीत, वासंती गीत, प्रेमगाथा गीत, खदेड़ गीत, प्रतिद्वंदात्मक गीत, बैरा और छोपती, होली गीत, संस्कार गीत, खलिहान गीत, बाल गीत आदि पर प्रकाश डाला है। दूसरे अध्याय ‘अनुरंजनात्मक नृत्यगीत’ में लोकगीतों व गीति नृत्यों के अनुरंजनात्मक रूप, आड़े पाड़े, कंडाली, घसियारी, चांचरी, चौफुला, छपेली, छोपती, झुमैलो, झोड़ा, तांदी, ढुस्का, नट नटी, बंजारा, सरांव, होली आदि पर चर्चा की गई है। 

    पुस्तक के तीसरे खंड में एक अध्याय है, जिसके अंतर्गत उत्तराखंड के लोकरंजक नृत्यों छोलिया, ढोल नृत्य, गंडियारास, मुखौटा नृत्य, भैलोनृत्य, ठोङड़ानृत्य, डडियालानृत्य, थाली नृत्य, सुई नृत्य आदि का विवेचन विश्लेषण किया गया है। 

      पुस्तक के चौथे खंड में 2 अध्याय हैं। पहले अध्याय ‘देवाराधनात्मक नृत्यगीत’ में सांध्य गीत, देव गाथागीत, लोक मांगल्य आदि पर और दूसरे अध्याय ‘देवनृत्य’ में केदारा, घणेली, नारसिंह, नागर्जा, निरंकार, मंडाण, बगड्वाल, रणभूत आदि पर चर्चा की गई है। 

     इस पुस्तक से झोड़ा नृत्य गीत का एक उदाहरण दिया जा रहा है-

हीरा हिरूली बांद, तिलै धारू बोल। 
जीजा- हुड़की की पूड़ छोरी, हुड़की की पूड़
झिट घड़ी बैठि जोंला, बांजा डाली मूड़। 
सम्मिलित- झिट घड़ी बैठि जोंला, बांजा डाली मूड़। 
हीरा हिरूली बांद, बांजा डाली मूड़। 
किसनी खड़क्वाल नेगी, बांजा डाली मूड़। पृ० 208


पुस्तक का नाम- उत्तराखंड के लोकसाहित्य का आयामी परिदृश्य
विधा- शोध- समालोचना
रचनाकार- प्रो० डी० डी० शर्मा
प्रकाशक- अंकित प्रकाशन, हल्द्वानी
पुस्तक का मूल्य- 495 ₹ ( सजिल्द संस्करण) 
पृष्ठ संख्या- 277


लेखक के विषय में-

प्रो० डी० डी० शर्मा

     प्रो. डी० डी० शर्मा ( देवीदत्त शर्मा ) का जन्म 23 अक्टूबर, 1924 को उत्तराखंड के भीमताल ( नैनीताल ) में हुआ था। आपने संस्कृत और भाषाशास्त्र दो विषयों में पीएचडी की। तत्पश्चात् आपने पंजाब विश्वविद्यालय से डी. लिट की उपाधि प्राप्त की। आपने 1955 से 1992 तक अध्यापन एवं शोध के क्षेत्र में कार्य किया। आप पंजाब विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में प्रोफेसर व अध्यक्ष पद पर भी रहे। आपने शोध पर केंद्रित 55 से अधिक पुस्तकें लिखीं हैं। 

       हिमालयी संस्कृति के मूलाधार (1998), उत्तराखंड के लोकदेवता (2006), मध्य हिमालय के खश (2006), उत्तराखंड के लोकोत्सव एवं पर्वोत्सव (2007), उत्तराखंड का पौराणिक देवकुल ( 2008), उत्तराखंड की लोककलाएं एवं शिल्प कौशल (2009), उत्तराखंड का लोकजीवन एवं लोकसंस्कृति (2010), उत्तराखंड का सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास (5 खंड) आदि आपकी उत्तराखंड पर केंद्रित प्रमुख शोध पुस्तकें हैं। 

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