कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

उत्तराखंड का बोधगया: काकड़ीघाट

उत्तराखंड का बोधगया: काकड़ीघाट

       काकड़ीघाट नैनीताल जनपद की अल्मोड़ा सड़क पर स्थित वह जगह है, जहाँ पर अगस्त, 1890 में हिमालय यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद को एक पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। वर्तमान में वह पीपल का पेड़ यद्यपि अब मौजूद नहीं है, किंतु उसी स्थान पर विवेकानंद की स्मृति को जीवंत रखने के लिए एक अन्य पीपल के पौधे का रोपण किया गया है, जो धीरे-धीरे वृहद आकार लेता जा रहा है। 

     वस्तुतः अगस्त, 1890 में स्वामी विवेकानंद अपने शिष्य स्वामी अखंडानंद के साथ नैनीताल से पैदल अल्मोड़ा के लिए प्रस्थान किये। अल्मोड़ा की राह में तीसरे दिन वह लोग काकड़ीघाट में एक झरने के किनारे पानी की चक्की के पास ठहरे। इसके बाद स्वामी विवेकानंद स्नान करने के बाद पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान करने बैठे। ध्यान में एक घंटा बीत जाने के बाद स्वामी जी ने अपने गुरूभाई स्वामी अखंडानंद से कहा- “अभी-अभी मैं अपने जीवन के एक महत्वपूर्ण क्षण से गुजरा हूँ। इस पीपल वृक्ष के नीचे मेरे जीवन की एक महान समस्या का समाधान हो गया है। मैंने सूक्ष्म ब्रह्माण्ड और वृहत् ब्रह्माण्ड के एकत्व का अनुभव किया है। जो कुछ ब्रह्माण्ड में है वही इस शरीर रूपी पिंड में भी है।”

     अतः जिस प्रकार से साधना के पश्चात् सिद्धार्थ को बोधगया ( बिहार ) में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई, उसी प्रकार से विवेकानंद को भी काकड़ीघाट में पीपल के वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसीलिए काकड़ीघाट को उत्तराखंड का बोधगया कहना अनुचित नहीं होगा। यहाँ ‘ज्ञान’ से आशय एक ‘विलक्षण अनुभूति’ से है, जो योगी (साधक) को योग (साधना) के दौरान अनुभव होती है। 

         आज से करीब 120 साल पहले स्वामी विवेकानंद जब दूसरी बार अल्मोड़ा पहुंचे तो उनका अभूतपूर्व स्वागत हुआ था। 11 मई 1897 के दिन खजांची बाजार में उन्होंने जन समूह को संबोधित भी किया। स्वामी जी ने अपने भाषण में कहा कि यह हमारे पूर्वजों के स्वप्नों का प्रदेश है। भारत जननी श्री पार्वती की जन्मभूमि है। यह वह पवित्र स्थान है, जहां भारत का प्रत्येक सच्चा धर्मपिपासु व्यक्ति अपने जीवन का अंतिम काल बिताने का इच्छुक रहता है। यह वही भूमि है जहां निवास करने की कल्पना मैं अपने बाल्यकाल से ही कर रहा हूं। 

      वस्तुतः स्वामी विवेकानंद हिमालय की इन वादियों को धार्मिक शिक्षा का केंद्र बनाने का स्वप्न देखते थे। 

आप सभी को युवा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ🌷

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