इस युवक ने 20 वर्ष की उम्र में बनाई आठ पीढ़ी की वंशावली
ललित तुलेरा ने आठ पीढ़ी की वंशावली महज बीस वर्ष की उम्र में बनाई
बागेश्वर जिले में गरूड़ ब्लॉक से करीब 30 किलोमीटर दूर पहाड़ों में बसा गांव ‘सलखन्यारी’ के युवा ललित तुलेरा ने अपनी आठ पीढ़ी की वंशावली बनाई है। वे अभी २२ साल के हैं। उनका यह कार्य दो साल पहले 2019 में आंखिरी पड़ाव में पहुंच चुका था। तब वे 20 वर्ष के थे। वे आठ पीढ़ी की वंशावली इस वर्ष 2021 में प्रकाशित करवा रहे हैं। इसके अलावा उन्होंन कुछ साल पहलेे तक 3,000 से अधिक कुमाउनी कहावतें व मुहावरों का संकलन व इसी साल जून 2021 में कुमाउनी भाषा को विकास के उद्देश्य से ‘जो य गड. बगि रै’ नाम से कुमाउनी के युवा कवियों का सामूहिक कविता की किताब का संपादन भी किया है। वर्तमान में वे विद्यार्थी के साथ ही कुमाउनी की प्रसिद्ध मासिक पत्रिका ‘पहरू’ में बतौर उप संपादक कुमाउनी की सेवा में जुटे हैं। एक साल पूर्व कुमाउनी में उन्होंने ब्लॉग की शुरूआत भी की है।
• गांव के बुजुर्गों से मिली प्रेरणा/ बचपन से रचनात्मकता में मन रमता था-
रचनात्मक कामों में उनका बचपन से ही रूचि रही है। उन्हें वंशावली निर्माण की प्रेरणा गांव के बुजुर्गों से मिली क्योंकि वे अपने बुजुर्गों की बातों को वे काफी रूचि के साथ सुनते थे।
• कौन हैं ‘तुलेरा’ ?
ललित बताते बैं कि ‘तुलेरा’ क्षत्रिय हैं वर्ण में आते हैं और इनका गोत्र भारद्वाज है। ये कुमाउनी हैं। ‘बली बूबू’ को अपना अराध्य देव मानते हैं। बागेश्वर जिले का ‘सलखन्यारी’ गांव इन्होंने ने ही बसाया। वे यहां करीब दो सौ साल पहले चमोली जिले के ग्वालदम के पास वर्तमान ‘उलंग्रा’ गांव से आए थे। यहां वे कहां से आए इसका कोई प्रमाण नहीं। वे कहते हैं कि गांव के बुजुर्गों के अनुसार मुगल काल में बढ़ते अत्याचार से वे भी अन्य लोगों की तरह पश्चिम भारत से यहां आ गए थे। उनके बुजुर्ग बताते हैं कि चंद शासन काल में वे सामान तोलने का कार्य करते थे इसलिए उनको तुल्या्र( स्थानीय कुमाउनी भाषा में) /तुलेरा कहते हैं। पर इस बात में कितनी सच्चाई है कहा नहीं जा सकता। सलखन्यारी में इनकी आठवीं पीढ़ी हाल ही में शुरू हुई है।
• 15 वर्ष की आयु से शुरू किया वंशावली निर्माण का काम-
उन्होंने यह काम करीब 15 वर्ष की आयु से शुरू कर दिया था। तब वे नवीं के विद्यार्थी थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव की ही प्राइमरी स्कूल से हुई और इंटर तक की पढ़ाई इंटर कॉलेज मैगड़ीस्टेट जिला बागेश्वर से हुई है। वर्तमान में हिंदी से एम. ए. में पढ़ाई करते हैं।
• गांव के बुजुर्गों का सहयोग मिला-
वे कहते हैं की वंशावली के निर्माण के इस कार्य का श्रेय अपने तुलेरा बंधुओं को दिया है। उनकी मदद के बिना यह कार्य पूरा नहीं हो सकता था। इसके अलावा कुछ किताबें व इंटरनेट की मदद से उन्होंने वंशावली को तैयार करने में मदद ली है।
• दो भागों में बांटा है वंशावली का कार्य-
वंशावली का कार्य उन्होंने 46 पेज में पूर्ण किया है। वंशावली का कार्य दो भागों में बांटा है। उनके बुजुर्गों का कहना है कि (सलखन्यारी) बागेश्वर व (उलंग्रा) चमोली जिले के अलावा अल्मोड़ा जिले के जलना के पास तुलेड़ी गांव के उनके बिरादर रहते हैं। यद्यपि उनके शोध में यह साबित नहीं हो सका कि तुलेड़ी के ‘तुलेड़ा’ उनके बिरादर हैं। ‘तुलेड़ी’ संबंधी जानकारी को उन्होंने भाग दो में रखा है।
• वंशावली की विशेषताएं-
अमूमन वंशावलियों में पुरूषों के नाम मिलते हैं और पुरूषों के नाम से ही वंशावली पूर्ण कर दिया जाता है। ललित ने इस वंशावली में पुरूषों के नाम के अलावा महिलाओं के नाम को भी शामिल किया है यानी पुत्रियों व पत्नियों के नाम भी इस वंशावली में शामिल हैं। इसके अलावा कुछ नक्शे व शीर्षकों की मदद से ‘तुलेरा’ के बारे में जानकारी दी गई है।
वे बताते हैं कि अभी कुछ कमियां व गलतियां इस वंशावली में रह गई हैं अगले संस्करण में गांव के अन्य लोगों की मदद से वंशावली को और भी विस्तार देंगे और नई जानकारी को इकट्ठा करेंगे।
• वंशावली निर्माण का उद्देश्य-
उनका कहना है कि वे जाति प्रथा में रूची नहीं रखते क्योंकि इस धरती पर मनुष्य को जाति, वर्ण, धर्म से बहुत कष्ट व दुख झेलने पड़े हैं। उनका उद्देश्य अपने वंश की ऐतिहासिक जानकारी को इक्ट्ठा कर सहेजने का है ताकि वे अपने पूर्वजों को याद कर सकें। वे कहते हैं कि तुलेरा जाति के बारे में बहुत अधिक जानकारी व वंशावली में अभी बहुत कार्य किए जाने की आवश्यकता है।
लेखक का ई.मेल- [email protected]
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बहुत बढ़िया